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Showing posts from June, 2025

श्रीलंका का प्राचीन पुरातात्विक इतिहास-प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे

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 श्रीलंका का प्राचीन पुरातात्विक इतिहास   श्रीलंका का प्राचीन इतिहास 3,000 वर्ष पुराना है, जिसमें मानव बस्तियों के प्रमाण 125,000 वर्ष पुराने मिले हैं। पुरातात्विक साक्ष्यों के अनुसार, यहाँ के प्रारंभिक निवासियों का संबंध उत्तर भारतीय लोगों से था, और सिंहली भाषा गुजराती व सिंधी से जुड़ी है ।   त्रिपिटक का संकलन और लिपिबद्धीकरण   1. **संकलनकर्ता**: त्रिपिटक (विनयपिटक, सुत्तपिटक, अभिधम्मपिटक) का संकलन प्रथम बौद्ध संगीति (483 ईसा पूर्व) में हुआ, जिसमें बुद्ध के उपदेशों को व्यवस्थित किया गया ।   2. **लिपिबद्धीकरण**: इसे श्रीलंका में **राजा वट्टगामणी अभय** (29 ईसा पूर्व) के शासनकाल में पालि भाषा में लिखा गया। उद्देश्य था बौद्ध शिक्षाओं को मौखिक परंपरा से बचाकर संरक्षित करना ।    महेंद्र और संघमित्रा का अनुराधापुरम आगमन   - **समय**: तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में मौर्य सम्राट अशोक के पुत्र **महेंद्र** और पुत्री **संघमित्रा** श्रीलंका आए ।   - **उद्देश्य**: बौद्ध धर्म का प्रचार करना। संघमित्रा बोधि वृक्ष क...

कहानी का स्वरूप स्पष्ट कीजिए-प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे

कहानी का **स्वरूप** उसकी संरचना, शैली और प्रस्तुति को दर्शाता है। यह कहानी को एक विशिष्ट रूप देता है और पाठकों के साथ उसके संवाद का तरीका तय करता है। निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से कहानी के स्वरूप को स्पष्ट किया जा सकता है: --- ### 1. **भाषा और शैली (Language and Style)**    - **सरल या जटिल भाषा**: कहानी की भाषा साधारण, व्यावहारिक या साहित्यिक हो सकती है।    - **शैली**: वर्णनात्मक, संवादात्मक, व्यंग्यात्मक, या काव्यात्मक शैली अपनाई जा सकती है।    - **बिंब और प्रतीक**: कहानी में प्रतीकात्मक भाषा या बिंबों का प्रयोग हो सकता है। ### 2. **कथानक (Plot)**    - **रेखीय (Linear)**: घटनाएँ क्रमबद्ध तरीके से चलती हैं।    - **अरेखीय (Non-linear)**: फ्लैशबैक, समयांतराल, या घटनाओं का उलटफेर हो सकता है।    - **संघनित या विस्तृत**: कहानी संक्षिप्त या विस्तृत हो सकती है। ### 3. **पात्र (Characters)**    - **मुख्य पात्र (Protagonist)**: कहानी का नायक/नायिका।    - **खलनायक (Antagonist)**: विरोधी शक्ति।    - **गोल य...
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### **कान्हेरी बौद्ध लेणी, मुंबई: एक विस्तृत अध्ययन**   #### **1. इतिहास एवं निर्माण**   - **स्थान**: संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान (बोरीवली), मुंबई में स्थित ।   - **निर्माण काल**: **ई.पू. 1ली शताब्दी से ई.स. 10वीं शताब्दी** तक (लगभग 2000 वर्ष पुराना) ।   - **निर्माता**:     - प्रारंभिक गुफाएँ **हीनयान बौद्ध भिक्षुओं** द्वारा बनाई गईं।     - बाद में **सातवाहन राजा वाशिष्ठीपुत्र सतकर्णी** (ई.स. 2री शताब्दी) और अन्य शासकों ने विस्तार किया ।     - **गौतमीपुत्र सातकर्णी** (ई.स. 173–211) के काल में चैत्य गुफाओं का निर्माण हुआ ।   --- #### **2. शिलालेखों की जानकारी**   - **कुल शिलालेख**: **51 शिलालेख** और **26 वचननामे (एपिग्राफ्स)** ।   - **भाषाएँ**:     - **ब्राह्मी लिपि** (प्राचीनतम)     - **देवनागरी**     - **पहलवी** (पारसी प्रभावित) ।   - **महत्वपूर्ण शिलालेख**:     - **गुफा संख्या 90** में सातवा...

*प्रतीत्यसमुत्पाद सिद्धांत: भगवान बुद्ध का कार्य-कारण का दर्शन-प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे

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### **प्रतीत्यसमुत्पाद सिद्धांत: भगवान बुद्ध का कार्य-कारण का दर्शन**   #### **1. प्रतीत्यसमुत्पाद क्या है?**   प्रतीत्यसमुत्पाद (Pratītyasamutpāda) बौद्ध दर्शन का **मूलभूत सिद्धांत** है, जिसका अर्थ है—**"शर्तों के आधार पर उत्पन्न होना"** या **"क्रमागत उत्पत्ति का सिद्धांत"**। इसे **"कारण और प्रभाव का नियम"** भी कहा जाता है।   - **महत्व**: यह सिद्धांत **जन्म-मृत्यु के चक्र (संसार)** और **दुःख के मूल कारण** को समझने की कुंजी है।   - **बुद्ध का कथन**: *"जो प्रतीत्यसमुत्पाद को देखता है, वह धर्म को देखता है; जो धर्म को देखता है, वह प्रतीत्यसमुत्पाद को देखता है।"* (मज्झिम निकाय)   --- ### **2. सिद्धांत का उद्देश्य**   1. **दुःख के मूल कारण को समझना**: जीवन में दुःख क्यों और कैसे उत्पन्न होता है।   2. **जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति**: इस चक्र को तोड़ने का मार्ग दिखाना।   3. **अनित्य (क्षणभंगुरता) की प्रकृति को समझना**: सभी वस्तुएँ कैसे परस्पर निर्भर और परिवर्तनशील हैं।   --- ### **3. 12 निदा...

आर्य अष्टांगिक मार्ग अर्थ महत्व और जीवन में प्रयोग

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**आर्य अष्टांगिक मार्ग: अर्थ, महत्व और जीवन में प्रयोग**  *1. आर्य अष्टांगिक मार्ग क्या है?**   आर्य अष्टांगिक मार्ग बौद्ध धर्म का **मूलभूत सिद्धांत** है, जिसे भगवान बुद्ध ने **धम्मचक्र प्रवर्तन सूत्र** में प्रस्तुत किया। यह **चार आर्य सत्यों** में वर्णित **दुःख निरोध का मार्ग** है, जो **नैतिकता (शील), ध्यान (समाधि) और प्रज्ञा (पञ्ञा)** पर आधारित है।   *2. अष्टांगिक मार्ग के आठ अंग (स्पष्टीकरण)**   **अंग**            | **अर्थ**                                    **व्यावहारिक उपयोग | **1. सम्यक् दृष्टि** | सत्य को समझना (अनित्य, दुःख, अनात्म की समझ)                           | विवेकपूर्ण सोच विकसित करना | | **2. सम्यक् संकल्प** | शुद्ध इच्छाएँ (करुणा, अहिंसा, त्याग)                          ...

धम्मचक्र प्रवर्तन सूत्र भगवान बुद्ध का प्रथम उपदेश-प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे

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धम्मचक्र प्रवर्तन सूत्र: इतिहास, विशेषताएँ और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि**  1. धम्मचक्र प्रवर्तन सूत्र क्या है? धम्मचक्र प्रवर्तन सूत्र (पाली: **धम्मचक्कप्पवत्तन सुत्त**) बौद्ध धर्म का सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण उपदेश है, जिसे भगवान बुद्ध ने **आषाढ़ पूर्णिमा** के दिन **सारनाथ** में अपने पहले पाँच शिष्यों को दिया था। यह उपदेश **त्रिपिटक** के **संयुत्तनिकाय** में संग्रहित है और बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों—**चार आर्य सत्य** और **अष्टांगिक मार्ग**—को प्रस्तुत करता है ।  *2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि**  - **समय एवं स्थान**:  - **528 ईसा पूर्व** में बुद्ध ने बोधगया में ज्ञान प्राप्ति के बाद सारनाथ (वाराणसी के निकट) पहुँचकर यह उपदेश दिया।  - यह घटना **आषाढ़ पूर्णिमा** (जुलाई-अगस्त) के दिन हुई, जिसे **धम्मचक्र दिवस** या **गुरु पूर्णिमा** के रूप में मनाया जाता है ।   - **प्रथम शिष्य**:    बुद्ध ने यह उपदेश **पंचवर्गीय भिक्खुओं** (पाँच तपस्वियों) को दिया, जिनके नाम थे:    1. **कौण्डिन्य (अज्ञात कौण्डिन्य)   2. **वप्पा**     ...

महापरिनिर्वाण सुत्त एक विस्तृत अध्ययन-प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे

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 **महापरिनिर्वाण सुत्त: एक विस्तृत अध्ययन**   *1. महापरिनिर्वाण सुत्त का पूर्ण अर्थ**   महापरिनिर्वाण सुत्त (संस्कृत: महापरिनिर्वाण सूत्र) थेरवाद बौद्ध ग्रंथ **त्रिपिटक** के **सुत्तपिटक** के **दीघनिकाय** का 16वाँ सूत्र है। यह भगवान बुद्ध के अंतिम दिनों, उनके देहान्त (परिनिर्वाण) और उसके बाद के घटनाक्रम का विस्तृत वर्णन करता है"महापरिनिर्वाण" का शाब्दिक अर्थ है **"पूर्ण मुक्ति"** या **"अंतिम निर्वाण"**, जो बुद्ध के शरीर के परित्याग और संसारिक बंधनों से मुक्ति को दर्शाता है ।  *2. महापरिनिर्वाण सुत्त की विशेषताएँ**  - **सबसे लंबा सूत्र**: त्रिपिटक का यह सबसे विस्तृत सूत्र है, जो बुद्ध के अंतिम उपदेशों, यात्राओं और शिष्यों के साथ संवादों को समेटे हुए है ।  - **ऐतिहासिक महत्व**: यह बुद्ध की मृत्यु का प्राथमिक स्रोत है और बौद्ध धर्म के इतिहास को समझने में मदद करता है ।  - **दार्शनिक गहराई**: इसमें **अनित्य (अनिश्चितता), अनात्म (निरात्मवाद), और अनीश्वर (ईश्वर की अनुपस्थिति)** जैसे बौद्ध दर्शन के मूल सिद्धांतों की पुष्टि की गई है । ...

पंढरपुर विट्ठल रुक्मिणी मंदिर का इतिहास और महत्व

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### **पंढरपुर विठ्ठल-रुक्मिणी मंदिर का इतिहास और महत्व**   #### **1. मंदिर का निर्माण और निर्माता**   - **निर्माणकाल**: मंदिर का प्रारंभिक निर्माण **12वीं शताब्दी** (1108–1152 ई.) में **होयसल राजवंश** के राजा **विष्णुवर्धन** द्वारा करवाया गया था ।   - **पुनर्निर्माण**: 13वीं शताब्दी में **यादव राजा वीर सोमेश्वर** ने इसका विस्तार किया और 1237 ई. में मंदिर के रखरखाव के लिए एक गाँव दान किया ।   - **वर्तमान संरचना**: आज जो मंदिर दिखाई देता है, वह **17वीं-18वीं शताब्दी** के दक्कनी स्थापत्य शैली में बना है, जिसमें गुंबद और मेहराबों का प्रयोग हुआ है ।   #### **2. निर्माण का उद्देश्य**   - **भक्त पुंडलिक की भक्ति**: मंदिर का निर्माण **पुंडलिक** नामक एक भक्त की कथा से जुड़ा है, जिसने अपने माता-पिता की सेवा के कारण भगवान विष्णु (विठ्ठल) को विट (ईंट) पर खड़ा होने के लिए प्रेरित किया ।   - **वारकरी संप्रदाय का केंद्र**: यह मंदिर **वारकरी पंथ** (भक्ति आंदोलन) का प्रमुख केंद्र बना, जहाँ संत ज्ञानेश्वर, नामदेव, तुकाराम ज...

भरत मुनि का नाट्यशास्त्र उद्भव विकास प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे

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भरत मुनि द्वारा रचित **नाट्यशास्त्र** भारतीय कला, संस्कृति और नाट्य परंपरा का आधारभूत ग्रंथ है। इसकी रचना, विशेषताएँ, गुण और प्रासंगिकता निम्नलिखित बिंदुओं में विस्तार से समझाई गई हैं: --- ### 1. **रचनाकाल और निर्माण**   - **समयकाल**: भरत मुनि का जीवनकाल **400 ईसा पूर्व से 100 ईस्वी** के बीच माना जाता है, और नाट्यशास्त्र की रचना इसी अवधि में हुई ।   - **स्थान**: संभवतः इसका प्रणयन **कश्मीर** में हुआ था ।   - **विशेष उल्लेख**: नाट्यशास्त्र को **"पंचम वेद"** की संज्ञा दी गई है, क्योंकि इसमें चार वेदों (ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद) के तत्वों को समाहित किया गया है ।   --- ### 2. **नाट्यशास्त्र की विशेषताएँ**   - **विस्तृत विषय-क्षेत्र**: इसमें नाटक, संगीत, नृत्य, अभिनय, रंगमंच, वेशभूषा, रस सिद्धांत, ताल, स्वर, और दर्शकों की भूमिका जैसे विविध पहलुओं का समग्र विवेचन है ।   - **अभिनय के चार अंग**:     1. **वाचिक** (संवाद),     2. **आंगिक** (शारीरिक अभिव्यक्ति),     3. **स...

नालासोपारा का प्राचीन इतिहास एवं सम्राट अशोक का संबंध-प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे

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### 📜 **नालासोपारा का प्राचीन इतिहास एवं सम्राट अशोक का संबंध**   #### 1. **प्राचीन नाम एवं महत्व**   - नालासोपारा को प्राचीन काल में **शूर्पारक** या **सोपारा** कहा जाता था। यह पश्चिमी भारत का एक प्रमुख बंदरगाह था, जो मेसोपोटामिया, मिस्र, ग्रीस, रोम और पूर्वी अफ्रीका के साथ व्यापार करता था ।   - यह बौद्ध धर्म का महत्वपूर्ण केंद्र था और यहाँ **सम्राट अशोक** ने एक स्तूप का निर्माण करवाया था ।   --- #### 2. **सम्राट अशोक का अभिलेख एवं विशेषताएँ**   - अशोक ने **ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी** में नालासोपारा में एक शिलालेख उत्कीर्ण करवाया, जो **ब्राह्मी लिपि** में है। यह अभिलेख उसके **14 प्रमुख शिलालेखों** में से एक है ।   - **विशेषता**:     - इस अभिलेख में अशोक ने **धम्म (धर्म) के प्रचार** और **प्रजा के कल्याण** की बात कही है।     - यह अभिलेख अशोक के साम्राज्य की पश्चिमी सीमा को निर्धारित करता है, जो पश्चिमी समुद्र तक फैली थी ।     - अभिलेख का एक हिस्सा **मुंबई के प्रिंस ऑफ वेल्स ...

नालंदा विश्वविद्यालय का प्राचीन इतिहास-प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे

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### 📜 **नालंदा विश्वविद्यालय: सम्पूर्ण इतिहास एवं विश्लेषण**   #### 🏛️ **1. स्थापना एवं काल खंड**   - **स्थापना**: 5वीं शताब्दी ईस्वी (लगभग 427 ई.) में गुप्त सम्राट **कुमारगुप्त प्रथम** द्वारा ।   - **काल खंड**:     - **स्वर्ण युग**: 5वीं से 12वीं शताब्दी तक (600 वर्ष)।     - **अंत**: 1193 ई. में तुर्क आक्रमणकारी **बख्तियार खिलजी** द्वारा विध्वंस ।   - **पुनर्जन्म**: 2010 में भारतीय संसद के अधिनियम द्वारा नए रूप में स्थापित, जिसे 2014 से शैक्षणिक गतिविधियाँ प्रारंभ हुईं ।   --- #### 👑 **2. राज्याश्रय एवं विकास**   नालंदा को क्रमिक शासक वंशों का संरक्षण मिला:   | शासक वंश         | योगदान                                                                 |   |-------------------|--...

सूरदास का साहित्यिक परिचय-प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे

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### **सूरदास का साहित्यिक परिचय**   #### **1. जीवन परिचय**   - **जन्म**: सूरदास का जन्म **1478 ई.** (अनुमानित) में **रुनकता** गाँव (आगरा-मथुरा क्षेत्र) में हुआ था। कुछ विद्वान उनका जन्मस्थान **सीही** (फरीदाबाद) भी मानते हैं ।   - **मृत्यु**: **1583 ई.** में गोवर्धन के निकट **पारसौली** गाँव में हुई ।   - **पारिवारिक पृष्ठभूमि**: इनके पिता **पंडित रामदास** सारस्वत ब्राह्मण थे। माता का नाम **जमुनादास बाई** था ।   - **अंधत्व विवाद**: कुछ स्रोतों के अनुसार सूरदास जन्मांध थे, परंतु उनकी रचनाओं में प्रकृति और रंगों का सूक्ष्म वर्णन इस दावे को चुनौती देता है। संभवतः वे बाद में अंधे हुए होंगे ।   - **गुरु**: वल्लभाचार्य ने उन्हें श्रीनाथ मंदिर (गोवर्धन) में कीर्तनकार नियुक्त किया, जहाँ उन्होंने कृष्णभक्ति पर अधिकांश रचनाएँ लिखीं ।   --- #### **2. साहित्यिक विशेषताएँ**   - **भाषा**: **ब्रजभाषा** का सरल, मधुर एवं संगीतमय प्रयोग। इनकी भाषा में लोकजीवन की झलक और मुहावरेदार अभिव्यक्ति मिलती है ।   - ...

जायसी का साहित्यिक परिचय-प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे

### **मलिक मोहम्मद जायसी का साहित्यिक परिचय**   #### **1. जीवन परिचय**   - **जन्म**: जायसी का जन्म **1492 ई.** (अनुमानित) में **जायस नगर**, रायबरेली (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। उनके जन्मस्थान को लेकर कुछ विद्वानों में मतभेद है, परंतु उनकी स्वयं की पंक्ति **"जायस नगर मोर अस्थानू"** से यह स्पष्ट होता है कि वे जायस के निवासी थे ।   - **मृत्यु**: **1542 ई.** में अमेठी के निकट जंगल में एक शिकारी द्वारा गोली लगने से उनकी मृत्यु हुई ।   - **व्यक्तिगत जीवन**: जायसी शारीरिक रूप से विकलांग थे—एक आँख और एक कान से वंचित। उनके गुरु **सैयद अशरफ़** थे, जिन्होंने उन्हें सूफ़ी मत की दीक्षा दी ।   --- #### **2. साहित्यिक विशेषताएँ**   - **भाषा**: जायसी ने **अवधी भाषा** में रचनाएँ कीं, जो लोकप्रिय और सरल थी। उनकी भाषा में लोकोक्तियाँ, मुहावरे और सूक्तियों का सुंदर प्रयोग मिलता है ।   - **शैली**: उन्होंने **दोहा-चौपाई** छंद और **मसनवी शैली** (फारसी प्रभाव) का उपयोग किया। उनकी रचनाओं में सूफ़ी प्रेमाख्यानों की परंपरा दिखाई देती है । ...

तुलसीदास का साहित्यिक परिचय-प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे

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तुलसीदास हिंदी साहित्य के महान कवि और भक्तिकाल की रामभक्ति शाखा के प्रमुख स्तंभ हैं। उनका जन्म **संवत् 1589 (सन् 1532 ई.)** में राजापुर, बांदा जिले (उत्तर प्रदेश) में हुआ माना जाता है, हालाँकि कुछ विद्वान इनका जन्मस्थान सोरों (एटा, उत्तर प्रदेश) भी बताते हैं। इनके बचपन का नाम **रामबोला** था।   ### **प्रमुख रचनाएँ:** 1. **रामचरितमानस** – अवधी भाषा में रचित यह महाकाव्य भगवान राम की गाथा पर आधारित है और हिंदू धर्म का एक पवित्र ग्रंथ माना जाता है। इसमें सात कांड (बाल कांड, अयोध्या कांड, अरण्य कांड, किष्किंधा कांड, सुन्दर कांड, लंका कांड और उत्तर कांड) हैं।   2. **विनय पत्रिका** – भक्ति भाव से ओतप्रोत स्तुतियों का संग्रह।   3. **कवितावली** – रामकथा पर आधारित कविताएँ।   4. **गीतावली** – कृष्ण भक्ति से प्रेरित पद्य रचनाएँ।   5. **दोहावली** – नीति और भक्ति से संबंधित दोहे।   6. **हनुमान चालीसा** – हनुमान जी की स्तुति में लिखा गया प्रसिद्ध भक्ति गीत।   ### **साहित्यिक विशेषताएँ:** - तुलसीदास ने **अवधी और ब्रजभाषा**...

राम भक्ति काव्य की अवधारणा और उसकी विशेषताएं -प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे

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### **राम भक्ति काव्य: अवधारणा एवं विशेषताएँ**   #### **1. अवधारणा**   राम भक्ति काव्य **भक्ति आंदोलन** का एक प्रमुख अंग है, जिसमें **भगवान राम की भक्ति** को केंद्र में रखकर काव्य रचना की जाती है। यह मुख्यतः **मध्यकालीन भारतीय साहित्य** (12वीं से 18वीं शताब्दी) में विकसित हुआ और **भक्ति के सगुण रूप** को प्रस्तुत करता है।   - **मूल आधार**: वाल्मीकि रामायण, तुलसीदास की **रामचरितमानस**, संत कवियों की रचनाएँ।   - **उद्देश्य**: राम के चरित्र के माध्यम से **धार्मिक भावना, नैतिक मूल्य और समर्पण** को प्रसारित करना।   --- #### **2. प्रमुख विशेषताएँ**   ##### **(क) भक्ति की अभिव्यक्ति**   - **सगुण भक्ति**: राम को **मर्यादा पुरुषोत्तम** के रूप में चित्रित किया गया है।   - **भावपूर्ण वर्णन**: भक्त और भगवान के बीच प्रेम संबंध को काव्यात्मक शैली में प्रस्तुत किया जाता है।     - उदाहरण: तुलसीदास की चौपाई – *"सिय राम मय सब जग जानी, करहु प्रणाम जोरि जुग पानी।"*   ##### **(ख) नैतिक एवं आदर...

शरद चंद्र पवार जीवन कार्य एवं योगदान -प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे

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## **शरद चंद्र पवार: जीवन, कार्य एवं योगदान**   ### **1. प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा**   - **जन्म**: 12 दिसंबर 1940, बारामती, पुणे (महाराष्ट्र)    - **परिवार**: पिता गोविंदराव पवार (किसान नेता), माता शारदाबाई (शिक्षा समिति प्रमुख)    - **शिक्षा**:     - बारामती के सरकारी स्कूल से प्राथमिक शिक्षा।     - पुणे विश्वविद्यालय से **बी.कॉम** (Brihan Maharashtra College of Commerce)    - **प्रारंभिक प्रभाव**: छात्र राजनीति में सक्रिय, 1956 में गोवा मुक्ति आंदोलन में भाग लिया    --- ### **2. राजनीतिक करियर का संक्षिप्त इतिहास**   - **1967**: पहली बार बारामती से **विधायक** चुने गए (कांग्रेस पार्टी)    - **1978**: महाराष्ट्र के **सबसे युवा मुख्यमंत्री** (38 वर्ष की आयु में)    - **1991-1993**: केंद्र में **रक्षा मंत्री** (पी.वी. नरसिम्हा राव सरकार)    - **2004-2014**: **कृषि मंत्री** (मनमोहन सिंह सरकार)    - **1999**: कांग्रेस से अलग होकर **राष्ट्रवा...

प्रेमाश्रयी शाखा काव्य की अवधारणा और उसकी विशेषताएं स्पष्ट कीजिए-प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे

**प्रेमाश्रयी शाखा** हिंदी साहित्य की **भक्ति काव्य धारा** की एक महत्वपूर्ण शाखा है, जिसमें **प्रेम** और **भक्ति** को केंद्रीय विषय के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह शाखा मुख्यतः **सूफी और कृष्ण भक्ति काव्य** से प्रभावित है, जहाँ ईश्वर के प्रति प्रेम को सांसारिक प्रेम के रूपकों (अलंकारों) द्वारा व्यक्त किया जाता है।    **प्रेमाश्रयी शाखा की अवधारणा:** 1. **प्रेम को भक्ति का माध्यम मानना:** इस शाखा में ईश्वर (कृष्ण, राम या सूफी प्रेम-पात्र) के प्रति अनन्य प्रेम को ही मोक्ष का मार्ग माना गया है।   2. **सांसारिक प्रेम का आध्यात्मिक रूपांतरण:** नायक-नायिका के माध्यम से जगत्-प्रेम को परमात्मा से जोड़ा गया है।   3. **सूफी और भक्ति का समन्वय:** इसमें सूफियों की **प्रेम-दर्शन** और हिंदू भक्ति की **सगुण उपासना** का मिश्रण है।    **प्रेमाश्रयी शाखा की विशेषताएँ:** 1. **प्रेम की प्रधानता:**      - इसमें **विरह, मिलन, सौंदर्य-वर्णन** और **भक्ति-भावना** प्रमुख हैं।      - प्रेम को **दिव्य अनुभूति** के रूप में...

डॉ. भदन्त आनन्द कौसल्यायन: जीवन, कार्य और विरासत -प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे

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## डॉ. भदन्त आनन्द कौसल्यायन: जीवन, कार्य और विरासत   ### 1. **जीवन परिचय एवं आध्यात्मिक यात्रा**   - **जन्म एवं प्रारंभिक जीवन**: जन्म 5 जनवरी 1905 को अविभाजित पंजाब के अंबाला जिले के सोहना गाँव में। बचपन का नाम **हरिनाम दास** था। पिता रामशरण दास अध्यापक थे ।   - **गृहत्याग**: 21 वर्ष की आयु में सामाजिक कुरीतियों और देश की गुलामी से विचलित होकर घर छोड़ा। देशाटन के दौरान कांगड़ा की जनजातियों के बच्चों को शिक्षित किया ।   - **बौद्ध दीक्षा**: 1928 में श्रीलंका में **महास्थाविर लुनुपोकुने धम्मानंद** के मार्गदर्शन में भिक्षु बने। नाम "भदन्त आनन्द कौसल्यायन" धारण किया ।   - **परिनिर्वाण**: 22 जून 1988 को नागपुर में देहावसान ।   --- ### 2. **हिंदी प्रचार सभा से जुड़ाव एवं योगदान**   - **राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा**: 1942-1951 तक **प्रधानमंत्री** पद पर रहे। हिंदी को जनभाषा बनाने के लिए ग्रामीण स्तर पर कार्यक्रम चलाए ।   - **भाषा आंदोलन**: महात्मा गांधी के साथ मिलकर हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में प...

कृष्ण भक्ति काव्य की अवधारणाएं और उसकी विशेषताएं -प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे

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**कृष्ण भक्ति काव्य की अवधारणा**   कृष्ण भक्ति काव्य मध्यकालीन भारतीय साहित्य की एक प्रमुख धारा है, जिसमें भगवान कृष्ण की भक्ति को केंद्र में रखकर काव्य रचना की गई है। यह भक्ति आंदोलन का हिस्सा है और इसका उद्देश्य ईश्वर (कृष्ण) के प्रति प्रेम, समर्पण और आध्यात्मिक लगाव को व्यक्त करना है। इस काव्य में कृष्ण को दिव्य प्रेमी, बाल गोपाल या रासलीला के नायक के रूप में चित्रित किया गया है। *कृष्ण भक्ति काव्य की प्रमुख विशेषताएं:** 1. **प्रेम और भक्ति का समन्वय**      - इसमें भक्ति (श्रद्धा) और प्रेम (माधुर्य भाव) का अद्भुत संयोग देखने को मिलता है।      - भक्त कृष्ण को अपना प्रियतम मानकर उनसे प्रेमालाप करता है, जैसा कि मीराबाई और सूरदास के पदों में देखा जा सकता है। 2. **कृष्ण के विविध रूपों का वर्णन**      - **बाल कृष्ण (बाल लीला):** सूरदास ने बाल कृष्ण की शरारतों, माखन चोरी और यशोदा माँ के स्नेह का मार्मिक चित्रण किया है।      - **द्वारिकाधीश और राजनीतिज्ञ:** कृष्ण के महाभारत कालीन रूप और उनके उपदेश (जैसे...

ज्ञानाश्रयी शाखा की अवधारणा और उसकी विशेषताएं प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे

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**ज्ञानाश्रयी शाखा** भक्ति आंदोलन की एक प्रमुख धारा थी, जिसका विकास मध्यकालीन भारत में हुआ। इस शाखा ने **ज्ञान (आत्मज्ञान) और भक्ति के माध्यम से मोक्ष प्राप्ति** पर बल दिया।  --**ज्ञानाश्रयी शाखा की अवधारणा**   1. **ज्ञान और भक्ति का समन्वय**:      - इस शाखा के अनुयायियों का मानना था कि **भक्ति के साथ-साथ आत्मज्ञान (ब्रह्मज्ञान) आवश्यक है**।      - इन्होंने **अद्वैत वेदांत** के सिद्धांतों को भक्ति से जोड़ा।  2. **निर्गुण ब्रह्म की उपासना**:      - ये संत **निराकार (निर्गुण) ईश्वर** में विश्वास रखते थे और मूर्तिपूजा का विरोध करते थे।      - ईश्वर को **सर्वव्यापी और निर्विकार** माना गया।   3. **गुरु का महत्व**:   इनके अनुसार, **गुरु के मार्गदर्शन के बिना मोक्ष संभव नहीं** है।  4. **भेदभाव का विरोध**:      - जाति-पाति, ऊँच-नीच और धार्मिक आडंबरों का खंडन किया।  - इन संतों ने **समानता और सामाजिक न्याय** पर जोर दिया।  3. **वैराग्य और साधना ...

भक्ति काल की परिस्थितियों सामाजिक ,राजनीतिक-प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे

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भक्ति काल (लगभग 1375-1700 ई.) हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण कालखंड था, जिसमें सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों ने साहित्य को गहराई से प्रभावित किया। यहाँ इन परिस्थितियों का विस्तृत विवेचन प्रस्तुत है:  **राजनीतिक परिस्थितियाँ**   1. **शासन व्यवस्था और संघर्ष**:      - यह काल तुगलक, लोधी और मुगल वंशों के शासन का था। तुगलक और लोधी शासक अत्याचारी तथा सांप्रदायिक थे, जिन्होंने इस्लामी कानूनों को थोपा।      - मुगल काल में अकबर ने धार्मिक सहिष्णुता और राजपूतों से संबंध सुधारे, लेकिन बाबर, हुमायूँ और शाहजहाँ के समय युद्धों एवं अशांति का वातावरण रहा।      - छोटे राज्यों के बीच सत्ता संघर्ष और विदेशी आक्रमणों ने स्थिरता को प्रभावित किया।   2. **प्रशासनिक शोषण**:      - किसानों और सामान्य जनता पर भारी कर लादे गए। अलाउद्दीन खिलजी और अन्य शासकों ने कृषि उपज का बड़ा हिस्सा राजस्व के रूप में वसूला।      - तुलसीदास जैसे कवियों ने इस शोषण को "राजा भूमि चोर बन गए" जैस...

विद्यापति मैथिल कोकिल का साहित्यिक परिचय-प्रा डॉ संघप्रकाश। दुड्डे

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# विद्यापति: मैथिल कोकिल का साहित्यिक परिचय विद्यापति भारतीय साहित्य के उन विरल कवियों में से हैं जिन्होंने मध्यकाल में भक्ति और शृंगार की अद्भुत समन्वयात्मक धारा प्रवाहित की। 14वीं-15वीं शताब्दी में रचनारत इस महाकवि को 'मैथिल कोकिल' की उपाधि से विभूषित किया गया, जो उनकी काव्य-माधुर्य का प्रतीक है। विद्यापति का साहित्यिक व्यक्तित्व बहुआयामी है - वे एक साथ शैव भक्त, राजदरबारी कवि, शृंगार रस के सिद्धहस्त चितेरे और मैथिली भाषा के प्रणेता थे। ## जीवन परिचय एवं ऐतिहासिक संदर्भ विद्यापति का जन्म 1352 ईस्वी के आसपास बिहार के मधुबनी जिले के बिस्फी (वर्तमान विपसी) गाँव में हुआ था । उनके पिता गणपति ठाकुर और माता गंगा देवी थीं, हालाँकि कुछ स्रोतों में माता का नाम हांसिनी देवी भी उल्लिखित है । विद्यापति तिरहुत के राजा शिवसिंह और कीर्तिसिंह के आश्रित कवि थे, जिन्होंने उन्हें 'विपसी' गाँव दान में दिया और 'अभिनव जयदेव' की उपाधि से सम्मानित किया । उनकी शिक्षा-दीक्षा महामहोपाध्याय हरि मिश्र के मार्गदर्शन में हुई और वे संस्कृत, अवहट्ठ तथा मैथिली भाषाओं के प्रकांड पंडि...

अमीर खुसरो का परिचय -प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे

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अमीर ख़ुसरो (1253–1325 ई.) भारतीय उपमहाद्वीप के एक प्रमुख कवि, संगीतकार, सूफ़ी संत और विद्वान थे, जिन्हें हिंदी-उर्दू साहित्य और भारतीय शास्त्रीय संगीत के विकास में अग्रणी योगदान के लिए जाना जाता है। उनका पूरा नाम **अबुल हसन यमीनुद्दीन ख़ुसरो** था, और उन्हें "तूती-ए-हिंद" (भारत का तोता) और "कव्वाली के जनक" के रूप में भी जाना जाता है । --- ### **जीवन परिचय**   1. **जन्म एवं पारिवारिक पृष्ठभूमि**:      - अमीर ख़ुसरो का जन्म **1253 ई.** में उत्तर प्रदेश के एटा ज़िले के पटियाली कस्बे में हुआ था।      - उनके पिता, अमीर सैफ़ुद्दीन, मध्य एशिया के तुर्क (लाचन जाति) से थे, जो चंगेज़ खाँ के आक्रमणों से बचकर भारत आए थे। उनकी माँ, दौलत नाज़, एक भारतीय मुस्लिम महिला थीं, जो दिल्ली के एक राजपूत परिवार से थीं ।      - 8 वर्ष की आयु में पिता की मृत्यु के बाद उनका पालन-पोषण दिल्ली में हुआ और वे सूफ़ी संत **हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया** के शिष्य बने ।   2. **शिक्षा एवं प्रारंभिक जीवन**:      - बचप...