श्रीलंका का प्राचीन पुरातात्विक इतिहास-प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे
श्रीलंका का प्राचीन पुरातात्विक इतिहास
श्रीलंका का प्राचीन इतिहास 3,000 वर्ष पुराना है, जिसमें मानव बस्तियों के प्रमाण 125,000 वर्ष पुराने मिले हैं। पुरातात्विक साक्ष्यों के अनुसार, यहाँ के प्रारंभिक निवासियों का संबंध उत्तर भारतीय लोगों से था, और सिंहली भाषा गुजराती व सिंधी से जुड़ी है ।
त्रिपिटक का संकलन और लिपिबद्धीकरण
1. **संकलनकर्ता**: त्रिपिटक (विनयपिटक, सुत्तपिटक, अभिधम्मपिटक) का संकलन प्रथम बौद्ध संगीति (483 ईसा पूर्व) में हुआ, जिसमें बुद्ध के उपदेशों को व्यवस्थित किया गया ।
2. **लिपिबद्धीकरण**: इसे श्रीलंका में **राजा वट्टगामणी अभय** (29 ईसा पूर्व) के शासनकाल में पालि भाषा में लिखा गया। उद्देश्य था बौद्ध शिक्षाओं को मौखिक परंपरा से बचाकर संरक्षित करना ।
महेंद्र और संघमित्रा का अनुराधापुरम आगमन
- **समय**: तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में मौर्य सम्राट अशोक के पुत्र **महेंद्र** और पुत्री **संघमित्रा** श्रीलंका आए ।
- **उद्देश्य**: बौद्ध धर्म का प्रचार करना। संघमित्रा बोधि वृक्ष की एक शाखा लाईं, जिसे अनुराधापुरम में रोपा गया भगवान बुद्ध और श्रीलंका
- **श्रीलंका आगमन**: ऐतिहासिक रूप से बुद्ध के श्रीलंका आने का प्रमाण नहीं है, लेकिन बौद्ध ग्रंथों के अनुसार, उन्होंने **तीन बार** द्वीप की यात्रा की ।
- **उपदेश**: बुद्ध ने **"त्रिरत्न"** (बुद्ध, धम्म, संघ) की शरण लेने का संदेश दिया। उन्होंने गृहस्थों को नैतिक जीवन (पंचशील) और करुणा का मार्ग सिखाया ।
बौद्ध धर्म के गहन अध्ययन का उद्देश्य
1. **धर्म का संरक्षण**: त्रिपिटक को लिपिबद्ध करने का मुख्य उद्देश्य बौद्ध सिद्धांतों को विलुप्त होने से बचाना था ।
2. **सामाजिक एकता**: श्रीलंका में बौद्ध धर्म ने हिंदू-बौद्ध सहअस्तित्व को बढ़ावा दिया, जिसे बाद में अंग्रेजों ने खंडित किया ।
महत्वपूर्ण स्थल
- **श्रीपद चोटी (एडम्स पीक)**: हिंदू, बौद्ध और मुस्लिमों के लिए पवित्र स्थल, जहाँ शिव/बुद्ध/आदम के पदचिह्न हैं ।
- **दांत मंदिर (कैंडी)**: बुद्ध के दांत का संरक्षण स्थल, जो श्रीलंका की धार्मिक पहचान का प्रतीक है ।
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