धम्मचक्र प्रवर्तन सूत्र भगवान बुद्ध का प्रथम उपदेश-प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे

धम्मचक्र प्रवर्तन सूत्र: इतिहास, विशेषताएँ और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि**  1. धम्मचक्र प्रवर्तन सूत्र क्या है?
धम्मचक्र प्रवर्तन सूत्र (पाली: **धम्मचक्कप्पवत्तन सुत्त**) बौद्ध धर्म का सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण उपदेश है, जिसे भगवान बुद्ध ने **आषाढ़ पूर्णिमा** के दिन **सारनाथ** में अपने पहले पाँच शिष्यों को दिया था। यह उपदेश **त्रिपिटक** के **संयुत्तनिकाय** में संग्रहित है और बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों—**चार आर्य सत्य** और **अष्टांगिक मार्ग**—को प्रस्तुत करता है ।  *2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि**  - **समय एवं स्थान**:  - **528 ईसा पूर्व** में बुद्ध ने बोधगया में ज्ञान प्राप्ति के बाद सारनाथ (वाराणसी के निकट) पहुँचकर यह उपदेश दिया।  - यह घटना **आषाढ़ पूर्णिमा** (जुलाई-अगस्त) के दिन हुई, जिसे **धम्मचक्र दिवस** या **गुरु पूर्णिमा** के रूप में मनाया जाता है ।  
- **प्रथम शिष्य**:    बुद्ध ने यह उपदेश **पंचवर्गीय भिक्खुओं** (पाँच तपस्वियों) को दिया, जिनके नाम थे:    1. **कौण्डिन्य (अज्ञात कौण्डिन्य)
  2. **वप्पा**  
  3. **भद्रिय**  
  4. **महानाम**  
  5. **अश्वजित**  
  इनमें से **कौण्डिन्य** पहले व्यक्ति थे जिन्होंने बुद्ध के उपदेश को समझकर **धर्मचक्षु (धर्म की दृष्टि)** प्राप्त की ।  *3. उपदेश देने का कारण**  
- **मध्यम मार्ग की शिक्षा**:  
  बुद्ध ने इस उपदेश में **दो अतियों** (कामसुख और आत्मपीड़ा) से बचकर **मध्यम मार्ग** अपनाने का संदेश दिया।  
- **दुःख से मुक्ति**:  
  उन्होंने बताया कि **चार आर्य सत्य** (दुःख, दुःख का कारण, दुःख का निरोध और दुःख निरोध का मार्ग) के माध्यम से निर्वाण प्राप्त किया जा सकता है ।  
*4. उपदेश की विशेषताएँ**  
1. **चार आर्य सत्य**:  
   - दुःख (संसार दुखमय है)  
   - दुःख का कारण (तृष्णा या लालसा)  
   - दुःख का निरोध (तृष्णा का त्याग)  
   - दुःख निरोध का मार्ग (अष्टांगिक मार्ग) ।  
2. **अष्टांगिक मार्ग**:  
   - सम्यक् दृष्टि, संकल्प, वाणी, कर्म, आजीविका, व्यायाम, स्मृति और समाधि।  
   - यह मार्ग **नैतिकता, ध्यान और प्रज्ञा** पर आधारित है ।  
3. **धर्मचक्र की अवधारणा**:  
   - बुद्ध ने धर्म को एक चक्र के रूप में प्रस्तुत किया, जो **अज्ञानता से मुक्ति** की ओर ले जाता है।  
   - यह उपदेश **बौद्ध संघ (सांघा)** की स्थापना का आधार बना ।  *5. ऐतिहासिक महत्व**  
- **बौद्ध धर्म का प्रारंभ**:  
  इस उपदेश के बाद बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार शुरू हुआ और **त्रिपिटक** की नींव पड़ी।  
- **विश्व प्रभाव**:  
  यह उपदेश आज भी **थेरवाद, महायान और वज्रयान** परंपराओं में पूज्य है।  
- **आधुनिक समय में**:  
  - **14 अक्टूबर 1956** को डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने इसी दिन **धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस** मनाते हुए बौद्ध धर्म अपनाया ।   **6. निष्कर्ष**  
धम्मचक्र प्रवर्तन सूत्र न केवल बौद्ध धर्म की आधारशिला है, बल्कि यह **मानवता को नैतिकता, करुणा और ज्ञान** का मार्ग दिखाता है। इसकी शिक्षाएँ आज भी विश्वभर में **शांति और आत्मज्ञान** का संदेश देती हैं ।

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