भक्ति काल की परिस्थितियों सामाजिक ,राजनीतिक-प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे
भक्ति काल (लगभग 1375-1700 ई.) हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण कालखंड था, जिसमें सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों ने साहित्य को गहराई से प्रभावित किया। यहाँ इन परिस्थितियों का विस्तृत विवेचन प्रस्तुत है:
**राजनीतिक परिस्थितियाँ**
1. **शासन व्यवस्था और संघर्ष**:
- यह काल तुगलक, लोधी और मुगल वंशों के शासन का था। तुगलक और लोधी शासक अत्याचारी तथा सांप्रदायिक थे, जिन्होंने इस्लामी कानूनों को थोपा।
- मुगल काल में अकबर ने धार्मिक सहिष्णुता और राजपूतों से संबंध सुधारे, लेकिन बाबर, हुमायूँ और शाहजहाँ के समय युद्धों एवं अशांति का वातावरण रहा।
- छोटे राज्यों के बीच सत्ता संघर्ष और विदेशी आक्रमणों ने स्थिरता को प्रभावित किया।
2. **प्रशासनिक शोषण**:
- किसानों और सामान्य जनता पर भारी कर लादे गए। अलाउद्दीन खिलजी और अन्य शासकों ने कृषि उपज का बड़ा हिस्सा राजस्व के रूप में वसूला।
- तुलसीदास जैसे कवियों ने इस शोषण को "राजा भूमि चोर बन गए" जैसे शब्दों में उजागर किया।
**सामाजिक परिस्थितियाँ**
1. **जातिगत विषमता और शोषण**:
- हिंदू समाज में जाति-पाति का कठोर बंधन था। शूद्रों और अछूतों के साथ भेदभाव होता था, जिन्हें धार्मिक और सामाजिक अधिकारों से वंचित रखा गया।
- निम्न जातियों के लोगों को मुस्लिम शासकों के अत्याचारों से बचने के लिए धर्मांतरण करना पड़ा।
2. **मुस्लिम प्रभाव और सामाजिक परिवर्तन**:
- मुस्लिम शासकों द्वारा हिंदू कन्याओं का अपहरण और बलात विवाह जैसी घटनाएँ आम थीं। इससे हिंदू समाज में बाल विवाह और पर्दा प्रथा बढ़ी।
- सती प्रथा, बहुविवाह और नारी शिक्षा का अभाव समाज की प्रमुख समस्याएँ थीं।
3. **धार्मिक पाखंड और भक्ति आंदोलन**:
- ब्राह्मणों और साधुओं द्वारा धर्म के नाम पर पाखंड फैलाया जाता था। भक्ति काल के संतों (कबीर, रैदास) ने इन आडंबरों का विरोध किया।
- सूफी संतों और भक्ति आंदोलन ने हिंदू-मुस्लिम एकता का संदेश दिया, जिससे समाज में सहिष्णुता बढ़ी।
**निष्कर्ष**
भक्ति काल की राजनीतिक परिस्थितियाँ अस्थिरता, युद्ध और शोषण से भरी थीं, जबकि सामाजिक परिस्थितियाँ जातिगत भेदभाव, धार्मिक कट्टरता और नारी उत्पीड़न से प्रभावित थीं। इन चुनौतियों के बीच भक्ति आंदोलन ने समाज को आध्यात्मिक एकता और सामाजिक समरसता का मार्ग दिखाया।
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