अमीर खुसरो का परिचय -प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे

अमीर ख़ुसरो (1253–1325 ई.) भारतीय उपमहाद्वीप के एक प्रमुख कवि, संगीतकार, सूफ़ी संत और विद्वान थे, जिन्हें हिंदी-उर्दू साहित्य और भारतीय शास्त्रीय संगीत के विकास में अग्रणी योगदान के लिए जाना जाता है। उनका पूरा नाम **अबुल हसन यमीनुद्दीन ख़ुसरो** था, और उन्हें "तूती-ए-हिंद" (भारत का तोता) और "कव्वाली के जनक" के रूप में भी जाना जाता है ।

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### **जीवन परिचय**  
1. **जन्म एवं पारिवारिक पृष्ठभूमि**:  
   - अमीर ख़ुसरो का जन्म **1253 ई.** में उत्तर प्रदेश के एटा ज़िले के पटियाली कस्बे में हुआ था।  
   - उनके पिता, अमीर सैफ़ुद्दीन, मध्य एशिया के तुर्क (लाचन जाति) से थे, जो चंगेज़ खाँ के आक्रमणों से बचकर भारत आए थे। उनकी माँ, दौलत नाज़, एक भारतीय मुस्लिम महिला थीं, जो दिल्ली के एक राजपूत परिवार से थीं ।  
   - 8 वर्ष की आयु में पिता की मृत्यु के बाद उनका पालन-पोषण दिल्ली में हुआ और वे सूफ़ी संत **हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया** के शिष्य बने ।  

2. **शिक्षा एवं प्रारंभिक जीवन**:  
   - बचपन से ही कविता और संगीत में रुचि रखने वाले ख़ुसरो ने 9 वर्ष की आयु में कविता लिखना शुरू किया और 20 वर्ष की आयु तक प्रसिद्ध हो गए ।  
   - उन्होंने फ़ारसी, अरबी, तुर्की, ब्रजभाषा और खड़ी बोली में लगभग **5 लाख छंद** रचे ।  

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### **साहित्यिक एवं सांस्कृतिक योगदान**  
1. **भाषाई समन्वय**:  
   - ख़ुसरो ने **हिंदवी** (हिंदी-फ़ारसी मिश्रित भाषा) को लोकप्रिय बनाया और खड़ी बोली के प्रथम कवि माने जाते हैं।  
   - उनकी प्रसिद्ध पंक्ति:  
     > "तुर्क-ए-हिंदुस्तानीम, दर हिन्दवी गोयम"  
     (मैं हिंदुस्तान का तुर्क हूँ और हिंदवी में बोलता हूँ) ।  

2. **प्रमुख रचनाएँ**:  
   - **फ़ारसी में**: *ख़मसा-ए-ख़ुसरो* (पाँच मसनवियाँ), *ख़ज़ाइनुल फ़ुतुह* (अलाउद्दीन खिलजी की विजयों का वर्णन)।  
   - **हिंदी/ब्रजभाषा में**: पहेलियाँ, मुकरियाँ, दोहे जैसे "गोरी सोवे सेज पर..." और "छाप तिलक सब छीनी..." ।  

3. **संगीत में योगदान**:  
   - **कव्वाली, ख़याल, तराना** जैसी शैलियों का आविष्कार किया।  
   - **सितार** और **तबला** के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई (मृदंग को काटकर तबला बनाया) ।  

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### **राजदरबार और सूफ़ी जीवन**  
- ख़ुसरो ने **11 सुल्तानों** (गुलाम वंश, खिलजी वंश, तुग़लक़ वंश) के शासनकाल में राजकवि के रूप में कार्य किया।  
- जलालुद्दीन खिलजी ने उन्हें "अमीर" की उपाधि दी, जबकि अलाउद्दीन खिलजी ने "मुलुकशुअरा" (राष्ट्रकवि) घोषित किया ।  
- उनकी सूफ़ी विचारधारा ने हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया, और वे निज़ामुद्दीन औलिया के प्रति गहरी भक्ति रखते थे ।  

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### **मृत्यु एवं विरासत**  
- 1325 ई. में दिल्ली में उनका निधन हुआ। उन्हें निज़ामुद्दीन औलिया के समीप दफ़नाया गया।  
- आज भी उनकी रचनाएँ कव्वाली और शास्त्रीय संगीत में जीवित हैं, और उन्हें **भारतीय सांस्कृतिक समन्वय का प्रतीक** माना जाता है ।  

**उद्धरण**:  
> "खुसरो दरिया प्रेम का, उलटी वा की धार,  
> जो उबरो सो डूब गया, जो डूबा सो पार।"  

अमीर ख़ुसरो की जीवन यात्रा भाषा, संगीत और सामाजिक सद्भाव की एक अद्वितीय मिसाल है।

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