पंढरपुर विट्ठल रुक्मिणी मंदिर का इतिहास और महत्व
### **पंढरपुर विठ्ठल-रुक्मिणी मंदिर का इतिहास और महत्व**
#### **1. मंदिर का निर्माण और निर्माता**
- **निर्माणकाल**: मंदिर का प्रारंभिक निर्माण **12वीं शताब्दी** (1108–1152 ई.) में **होयसल राजवंश** के राजा **विष्णुवर्धन** द्वारा करवाया गया था ।
- **पुनर्निर्माण**: 13वीं शताब्दी में **यादव राजा वीर सोमेश्वर** ने इसका विस्तार किया और 1237 ई. में मंदिर के रखरखाव के लिए एक गाँव दान किया ।
- **वर्तमान संरचना**: आज जो मंदिर दिखाई देता है, वह **17वीं-18वीं शताब्दी** के दक्कनी स्थापत्य शैली में बना है, जिसमें गुंबद और मेहराबों का प्रयोग हुआ है ।
#### **2. निर्माण का उद्देश्य**
- **भक्त पुंडलिक की भक्ति**: मंदिर का निर्माण **पुंडलिक** नामक एक भक्त की कथा से जुड़ा है, जिसने अपने माता-पिता की सेवा के कारण भगवान विष्णु (विठ्ठल) को विट (ईंट) पर खड़ा होने के लिए प्रेरित किया ।
- **वारकरी संप्रदाय का केंद्र**: यह मंदिर **वारकरी पंथ** (भक्ति आंदोलन) का प्रमुख केंद्र बना, जहाँ संत ज्ञानेश्वर, नामदेव, तुकाराम जैसे संतों ने भक्ति की परंपरा को बढ़ावा दिया ।
#### **3. भक्ति संप्रदाय और इसके भेद**
- **वारकरी पंथ**: यह भगवान विठ्ठल को कृष्ण का अवतार मानता है और आषाढी व कार्तिकी एकादशी पर लाखों भक्त पैदल यात्रा (दिंडी) करके पंढरपुर आते हैं ।
- **द्वैत और अद्वैत मत**: कुछ भक्त विठ्ठल को विष्णु का रूप मानते हैं, जबकि अन्य इसे कृष्ण का स्वरूप मानते हैं। इस परंपरा में जाति-बंधनों से ऊपर उठकर भक्ति की जाती है ।
#### **4. मंदिर की कला एवं वास्तुकला**
- **होयसल शैली**: मूल मंदिर होयसल कला से प्रभावित था, जिसमें जटिल नक्काशीदार स्तंभ और शिल्पकारी थी ।
- **विशेष स्थापत्य**: मंदिर में **16 स्तंभों वाला सभामंडप**, गरुड़ स्तंभ और विठ्ठल-रुक्मिणी के अलग-अलग गर्भगृह हैं ।
#### **5. राजाओं का योगदान और सम्राट अशोक से संबंध**
- **होयसल और यादव राजाओं** ने मंदिर को संरक्षण दिया, लेकिन **सम्राट अशोक** से इसका कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है ।
- **विजयनगर साम्राज्य** के कृष्णदेवराय ने विठ्ठल की मूर्ति को कर्नाटक ले जाने का प्रयास किया, लेकिन भक्त भानुदास ने इसे वापस लाया ।
#### **6. विशेष जानकारी**
- **चंद्रभागा नदी**: मंदिर के पास बहने वाली भीमा नदी को **चंद्रभागा** कहा जाता है, जिसमें स्नान करने को पापमोचन माना जाता है ।
- **मंदिर में सुधार**: 2024 में मंदिर का जीर्णोद्धार शुरू हुआ, जिसमें प्राचीन शिल्पों को पुनर्स्थापित किया जा रहा है ।
पंढरपुर का विठ्ठल-रुक्मिणी मंदिर **भक्ति, इतिहास और कला** का अनूठा संगम है। यह न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि महाराष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान भी है।
### **पंढरपुर विठ्ठल-रुक्मिणी मंदिर का पुरातात्विक महत्व और विशेषताएँ**
#### **1. पुरातात्विक महत्व**
- **प्राचीन मूल**: पंढरपुर का उल्लेख **ईस्वी सन 516** के ताम्रपटों में मिलता है, जो इसके प्राचीन होने का प्रमाण देता है ।
- **मध्यकालीन शिलालेख**: मंदिर के उत्तर भाग की दीवार पर **"84वाँ शिलालेख"** लगा है, जिसे भक्त पाठ घिसकर मुक्ति की कामना से छूते हैं। यह शिलालेख मंदिर के जीर्णोद्धार का संकेत देता है ।
- **हाल की खोज**: 2024 में मंदिर के जीर्णोद्धार के दौरान **एक गुप्त तहखाना** मिला, जिसमें 15वीं-16वीं शताब्दी की विष्णु, व्यंकटेश और तुलजा भवानी की मूर्तियाँ, पादुका और प्राचीन सिक्के मिले ।
#### **2. मंदिर की वास्तुकला और निर्माण कला**
- **होयसल शैली**: मूल मंदिर का निर्माण **12वीं शताब्दी** में होयसल राजा **विष्णुवर्धन** ने करवाया था। बाद में यादव राजा **वीर सोमेश्वर** ने 1237 ई. में इसका विस्तार किया ।
- **16 स्तंभों वाला सभामंडप**: मंदिर की मुख्य विशेषता है, जिसमें एक स्तंभ पर चाँदी का आवरण चढ़ा है, जिसे **"गरुड़ स्तंभ"** कहा जाता है ।
- **प्राचीन घंटा**: मंदिर परिसर में एक विशाल प्राचीन घंटा है, जिसे भक्त दर्शन से पहले बजाते हैं। यह घंटा मराठा कालीन माना जाता है ।
#### **3. 84वाँ शिलालेख और इसका रहस्य**
- **स्थान**: मंदिर के उत्तरी दीवार पर लगा यह शिलालेख भक्तों के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है।
- **मान्यता**: ऐसा विश्वास है कि इस शिलालेख को स्पर्श करने से **84 लाख योनियों** से मुक्ति मिलती है ।
- **ऐतिहासिक संदर्भ**: यह शिलालेख मंदिर के **8वें जीर्णोद्धार** का उल्लेख करता है, जो 12वीं शताब्दी के बाद हुआ था ।
#### **4. मुख्य द्वार और प्राचीन मूर्तियाँ**
- **नामदेव द्वार**: मंदिर के पूर्वी प्रवेश द्वार को **"नामदेव द्वार"** कहा जाता है, जो संत नामदेव की स्मृति में बनाया गया है ।
- **प्राचीन मूर्तियाँ**:
- **हनुमान द्वार** के पास खुदाई में मिली **विष्णु, व्यंकटेश और महिषासुरमर्दिनी** की मूर्तियाँ 15वीं-16वीं शताब्दी की हैं ।
- मंदिर के गर्भगृह में **विठ्ठल-रुक्मिणी** की मूल मूर्ति है, जिसे **पुंडलिक भक्त** की कथा से जोड़ा जाता है ।
#### **5. धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व**
- **वारकरी पंथ का केंद्र**: यह मंदिर संत ज्ञानेश्वर, नामदेव, तुकाराम जैसे संतों की भक्ति परंपरा का प्रतीक है ।
- **आषाढी एकादशी**: लाखों भक्त **दिंडी यात्रा** करके पंढरपुर आते हैं, जो महाराष्ट्र की सबसे बड़ी धार्मिक यात्रा है ।
### **निष्कर्ष**
पंढरपुर मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि **पुरातात्विक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर** भी है। इसकी वास्तुकला, शिलालेख और हाल की खोजें इसके गौरवशाली अतीत को उजागर करती हैं।
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