भरत मुनि का नाट्यशास्त्र उद्भव विकास प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे


भरत मुनि द्वारा रचित **नाट्यशास्त्र** भारतीय कला, संस्कृति और नाट्य परंपरा का आधारभूत ग्रंथ है। इसकी रचना, विशेषताएँ, गुण और प्रासंगिकता निम्नलिखित बिंदुओं में विस्तार से समझाई गई हैं:

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### 1. **रचनाकाल और निर्माण**  
- **समयकाल**: भरत मुनि का जीवनकाल **400 ईसा पूर्व से 100 ईस्वी** के बीच माना जाता है, और नाट्यशास्त्र की रचना इसी अवधि में हुई ।  
- **स्थान**: संभवतः इसका प्रणयन **कश्मीर** में हुआ था ।  
- **विशेष उल्लेख**: नाट्यशास्त्र को **"पंचम वेद"** की संज्ञा दी गई है, क्योंकि इसमें चार वेदों (ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद) के तत्वों को समाहित किया गया है ।  

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### 2. **नाट्यशास्त्र की विशेषताएँ**  
- **विस्तृत विषय-क्षेत्र**: इसमें नाटक, संगीत, नृत्य, अभिनय, रंगमंच, वेशभूषा, रस सिद्धांत, ताल, स्वर, और दर्शकों की भूमिका जैसे विविध पहलुओं का समग्र विवेचन है ।  
- **अभिनय के चार अंग**:  
  1. **वाचिक** (संवाद),  
  2. **आंगिक** (शारीरिक अभिव्यक्ति),  
  3. **सात्विक** (भावनात्मक अभिनय),  
  4. **आहार्य** (वेशभूषा और मेकअप) ।  
- **रस सिद्धांत**: "विभाव-अनुभाव-संचारीभाव संयोग से रस निष्पत्ति" का प्रसिद्ध सूत्र इसी ग्रंथ में प्रतिपादित है ।  

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### 3. **नाट्यशास्त्र के प्रमुख गुण**  
- **सार्वभौमिकता**: इसमें ज्ञान, विद्या, शिल्प, कला, योग और कर्म सभी का समावेश है ।  
- **तकनीकी विवरण**: रंगमंच निर्माण, नेपथ्य (मंच सज्जा), नृत्य की ताल-लय, और वाद्य यंत्रों के प्रयोग का विस्तृत विवरण ।  
- **लोक-केंद्रित दृष्टि**: नाटकों की कथावस्तु, पात्रों के मानक, और सामाजिक विविधता को ध्यान में रखकर रचना ।  

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### 4. **प्रासंगिकता और ऐतिहासिक महत्व**  
- **आधुनिक थिएटर का आधार**: नाट्यशास्त्र में वर्णित सिद्धांत आज भी नाटक, फिल्मों और प्रदर्शन कलाओं में प्रयुक्त होते हैं ।  
- **वैश्विक प्रभाव**: विदेशी विद्वानों जैसे फेड्रिक हाल, हेमान (जर्मन), और रैग्नो (फ्रांसीसी) ने इसका अनुवाद और अध्ययन किया ।  
- **शाश्वत दर्शन**: भरत मुनि का कथन "जीवन एक रंगमंच है" आज भी मानवीय अभिव्यक्ति की व्याख्या करता है ।  

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### 5. **कालखंड और विकास यात्रा**  
- **प्राचीन काल**: देवासुर संग्राम जैसे पौराणिक विषयों पर प्रथम नाटकों का मंचन ।  
- **मध्यकाल**: संस्कृत टीकाकारों (जैसे अभिनवगुप्त) द्वारा व्याख्या ।  
- **आधुनिक काल**: 19वीं सदी में यूरोपीय विद्वानों द्वारा पुनर्खोज और प्रकाशन ।  

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### निष्कर्ष  
नाट्यशास्त्र न केवल एक ग्रंथ बल्कि **कला का विश्वकोश** है, जिसकी प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है। यह नाट्यकला के साथ-साथ मानवीय भावनाओं और सामाजिक संरचना को समझने का माध्यम भी है। भरत मुनि की यह रचना भारतीय सांस्कृतिक विरासत का अमूल्य हिस्सा है ।  


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