प्रेमाश्रयी शाखा काव्य की अवधारणा और उसकी विशेषताएं स्पष्ट कीजिए-प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे
**प्रेमाश्रयी शाखा** हिंदी साहित्य की **भक्ति काव्य धारा** की एक महत्वपूर्ण शाखा है, जिसमें **प्रेम** और **भक्ति** को केंद्रीय विषय के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह शाखा मुख्यतः **सूफी और कृष्ण भक्ति काव्य** से प्रभावित है, जहाँ ईश्वर के प्रति प्रेम को सांसारिक प्रेम के रूपकों (अलंकारों) द्वारा व्यक्त किया जाता है।
**प्रेमाश्रयी शाखा की अवधारणा:**
1. **प्रेम को भक्ति का माध्यम मानना:** इस शाखा में ईश्वर (कृष्ण, राम या सूफी प्रेम-पात्र) के प्रति अनन्य प्रेम को ही मोक्ष का मार्ग माना गया है।
2. **सांसारिक प्रेम का आध्यात्मिक रूपांतरण:** नायक-नायिका के माध्यम से जगत्-प्रेम को परमात्मा से जोड़ा गया है।
3. **सूफी और भक्ति का समन्वय:** इसमें सूफियों की **प्रेम-दर्शन** और हिंदू भक्ति की **सगुण उपासना** का मिश्रण है।
**प्रेमाश्रयी शाखा की विशेषताएँ:**
1. **प्रेम की प्रधानता:**
- इसमें **विरह, मिलन, सौंदर्य-वर्णन** और **भक्ति-भावना** प्रमुख हैं।
- प्रेम को **दिव्य अनुभूति** के रूप में चित्रित किया गया है।
2. **रसों का प्रयोग:**
- **शृंगार रस** (विरह और मिलन दोनों) और **शांत रस** का प्रभावी उपयोग।
- भक्ति रस के साथ-साथ **वात्सल्य रस** (कृष्ण-लीला में) भी मिलता है।
3. **अलंकारों की भरमार:**
- उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, अतिशयोक्ति आदि अलंकारों का सुंदर प्रयोग।
- **नख-शिख वर्णन** (नायिका के अंग-प्रत्यंग का वर्णन) और **बारहमासा** (ऋतु वर्णन) जैसी शैलियाँ प्रचलित।
4. **भाषा और शैली:**
- **ब्रजभाषा** का प्रमुखता से प्रयोग।
- **दोहा, चौपाई, कवित्त, सवैया** जैसे छंदों का उपयोग।
- सरल, मधुर एवं संगीतात्मक भाषा।
5. **प्रमुख कवि एवं रचनाएँ:**
- **मलिक मुहम्मद जायसी** – *पद्मावत* (सूफी प्रेमाख्यान)
- **कुतुबन** – *मृगावती*
- **मंझन** – *मधुमालती*
- **विहारी लाल** – *बिहारी सतसई* (कृष्ण-प्रेम पर आधारित)
**निष्कर्ष:**
प्रेमाश्रयी शाखा ने हिंदी साहित्य में **प्रेम को आध्यात्मिक ऊँचाई** प्रदान की और सूफी तथा भक्ति परंपरा के बीच एक सेतु का काम किया। इसकी **भावप्रवणता, संगीतात्मकता** और **रहस्यवादी प्रेम-दर्शन** ने इसे हिंदी काव्य की एक अमर विधा बना दिया।
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