डॉ. भदन्त आनन्द कौसल्यायन: जीवन, कार्य और विरासत -प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे

## डॉ. भदन्त आनन्द कौसल्यायन: जीवन, कार्य और विरासत  


### 1. **जीवन परिचय एवं आध्यात्मिक यात्रा**  

- **जन्म एवं प्रारंभिक जीवन**: जन्म 5 जनवरी 1905 को अविभाजित पंजाब के अंबाला जिले के सोहना गाँव में। बचपन का नाम **हरिनाम दास** था। पिता रामशरण दास अध्यापक थे ।  

- **गृहत्याग**: 21 वर्ष की आयु में सामाजिक कुरीतियों और देश की गुलामी से विचलित होकर घर छोड़ा। देशाटन के दौरान कांगड़ा की जनजातियों के बच्चों को शिक्षित किया ।  

- **बौद्ध दीक्षा**: 1928 में श्रीलंका में **महास्थाविर लुनुपोकुने धम्मानंद** के मार्गदर्शन में भिक्षु बने। नाम "भदन्त आनन्द कौसल्यायन" धारण किया ।  

- **परिनिर्वाण**: 22 जून 1988 को नागपुर में देहावसान ।  


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### 2. **हिंदी प्रचार सभा से जुड़ाव एवं योगदान**  

- **राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा**: 1942-1951 तक **प्रधानमंत्री** पद पर रहे। हिंदी को जनभाषा बनाने के लिए ग्रामीण स्तर पर कार्यक्रम चलाए ।  

- **भाषा आंदोलन**: महात्मा गांधी के साथ मिलकर हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने हेतु दक्षिण भारत में प्रचार अभियान चलाया ।  

- **अखबार संपादन**: सारनाथ से "**धर्मदूत**" पत्रिका का संपादन किया, जिसमें हिंदी के साथ बौद्ध दर्शन को जोड़ा ।  


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### 3. **साहित्यिक योगदान: अनुवाद एवं मौलिक रचनाएँ**  

- **प्रमुख कृतियाँ**: 100+ पुस्तकें हिंदी, अंग्रेजी, पाली व पंजाबी में लिखीं। प्रमुख रचनाएँ:  

  - *मौलिक*: "मनुस्मृति क्यों जलाई?", "भगवद्गीता की बुद्धिवादी समीक्षा", "यदि बाबा ना होते" ।  

  - *अनुवाद*: पालि त्रिपिटक का हिंदी अनुवाद, डॉ. अंबेडकर की "द बुद्धा एंड हिज धम्मा" का हिंदी रूपांतर ।  

- **साहित्यिक शैली**: व्यंग्य और प्रवचनात्मक शैली में सामाजिक विषमताओं पर प्रहार। "जो भूल न सका" जैसे संस्मरणों में आत्मकथात्मक झलक ।  


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### 4. **बौद्ध भिक्षु के रूप में प्रचार-प्रसार**  

- **वैश्विक धर्मदूत**: थाईलैंड, जापान, लंदन व श्रीलंका में बौद्ध सम्मेलनों को संबोधित किया। **श्रीलंका विद्यालंकार विश्वविद्यालय** में हिंदी विभाग के अध्यक्ष रहे (1959-1968) ।  

- **डॉ. अंबेडकर से सहयोग**: 1956 में नागपुर में हुए ऐतिहासिक बौद्ध दीक्षा समारोह में सक्रिय भूमिका। अंबेडकर के साथ "चलते बुद्ध" की अवधारणा पर चर्चा ।  

- **शोध केंद्र स्थापना**: वर्धा स्थित **डॉ. भदन्त आनन्द कौसल्यायन बौद्ध अध्ययन केन्द्र** (2005) उनके नाम पर समर्पित ।  


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### 5. **प्रमुख ग्रंथों की सूची एवं विषयवस्तु**  

| **क्रम** | **ग्रंथ का नाम**         | **प्रकार**       | **विषय**                          |  

|----------|---------------------------|------------------|-----------------------------------|  

| 1        | भिक्खु के पत्र          | संस्मरण         | भिक्षु जीवन की चुनौतियाँ          |  

| 2        | धम्मपद                  | अनुवाद          | बौद्ध सूत्रों का हिंदी रूपांतर    |  

| 3        | राम कहानी राम की जुबानी | विश्लेषण        | रामायण की बुद्धिवादी व्याख्या     |  

| 4        | पालि शब्दकोश            | कोश ग्रंथ       | पालि-हिंदी शब्दावली               |  

| 5        | बौद्ध धर्म: एक बुद्धिवादी अध्ययन | दर्शन        | बौद्ध दर्शन का वैज्ञानिक विवेचन  |  

*स्रोत: *  


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### 6. **पुरस्कार एवं सम्मान**  

- **साहित्य वाचस्पति**: प्रयाग विश्वविद्यालय द्वारा हिंदी साहित्य में योगदान हेतु (1960) ।  

- **विद्या वीरधि**: नालंदा महाविहार से पालि साहित्य के अनुवाद के लिए (1972) ।  

- **राष्ट्रीय प्रतिष्ठा**: महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा ने बौद्ध अध्ययन केंद्र का नामकरण उनके नाम पर किया ।  


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### 7. **सामाजिक योगदान एवं शैक्षणिक पहल**  

- **शिक्षा क्रांति**:  

  - बोधगया में बाल श्रमिकों के लिए विद्यालय स्थापित किया ।  

  - नागपुर में "**राहुल बाल सदन**" अनाथालय की स्थापना, जहाँ सभी जातियों के बच्चों को शिक्षा दी जाती थी ।  

- **दलित उत्थान**: डॉ. अंबेडकर के सामाजिक आंदोलनों से जुड़कर छुआछूत विरोधी अभियान चलाया ।  

- **किसान संघर्ष**: विदर्भ के किसान आत्महत्याओं पर बौद्ध दृष्टिकोण से शोध को प्रोत्साहित किया ।  


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### 8. **दीक्षा भूमि से बुद्ध भूमि तक: एक प्रतीकात्मक सफर**  

- **दीक्षा भूमि, नागपुर**: 1956 में डॉ. अंबेडकर के नेतृत्व में हुए बौद्ध धर्मांतरण समारोह में सक्रिय भागीदारी। लाखों दलितों को बौद्ध धर्म से जोड़ा ।  

- **बुद्ध भूमि, कामठी**: 1983 में नागपुर के निकट कामठी स्थित "**बुद्ध भूमि**" आश्रम बनाया, जहाँ बौद्ध धम्म का प्रचार व सामाजिक कार्य केंद्रित रहे ।  

- **दर्शन का सार**: "चलते बुद्ध" की अवधारणा को प्रतिपादित किया—बुद्ध का गतिशील रूप समाज परिवर्तन का प्रतीक ।  


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### 9. **विरासत एवं ऐतिहासिक प्रभाव**  

- **बौद्ध पुनर्जागरण**: भारत में बौद्ध धर्म के पुनरुत्थान में रत्नत्रय (राहुल सांकृत्यायन, जगदीश कश्यप व कौसल्यायन) की भूमिका ।  

- **शैक्षणिक संस्थाएँ**: वर्धा विश्वविद्यालय का बौद्ध अध्ययन केंद्र आज भी पालि ग्रंथों के हिंदी अनुवाद पर शोध कर रहा है ।  

- **प्रेरणास्रोत**: उनका कथन—*"मैं पोस्टमैन हूँ, जो पैसा आता है, उसे दूसरों में बाँट देता हूँ"*—सेवा भावना का प्रतीक ।  


> **"बाबासाहेब का यह चीवरधारी सेनानी उनके सपनों का भारत बनाने की जंग में लड़ते-लड़ते शहीद हो गया"** — अपने निधन से पूर्व डॉ. कौसल्यायन का अंतिम संदेश ।

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