सूरदास का साहित्यिक परिचय-प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे

### **सूरदास का साहित्यिक परिचय**  

#### **1. जीवन परिचय**  
- **जन्म**: सूरदास का जन्म **1478 ई.** (अनुमानित) में **रुनकता** गाँव (आगरा-मथुरा क्षेत्र) में हुआ था। कुछ विद्वान उनका जन्मस्थान **सीही** (फरीदाबाद) भी मानते हैं ।  
- **मृत्यु**: **1583 ई.** में गोवर्धन के निकट **पारसौली** गाँव में हुई ।  
- **पारिवारिक पृष्ठभूमि**: इनके पिता **पंडित रामदास** सारस्वत ब्राह्मण थे। माता का नाम **जमुनादास बाई** था ।  
- **अंधत्व विवाद**: कुछ स्रोतों के अनुसार सूरदास जन्मांध थे, परंतु उनकी रचनाओं में प्रकृति और रंगों का सूक्ष्म वर्णन इस दावे को चुनौती देता है। संभवतः वे बाद में अंधे हुए होंगे ।  
- **गुरु**: वल्लभाचार्य ने उन्हें श्रीनाथ मंदिर (गोवर्धन) में कीर्तनकार नियुक्त किया, जहाँ उन्होंने कृष्णभक्ति पर अधिकांश रचनाएँ लिखीं ।  

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#### **2. साहित्यिक विशेषताएँ**  
- **भाषा**: **ब्रजभाषा** का सरल, मधुर एवं संगीतमय प्रयोग। इनकी भाषा में लोकजीवन की झलक और मुहावरेदार अभिव्यक्ति मिलती है ।  
- **रस**: वात्सल्य और श्रृंगार रस के सम्राट। बालकृष्ण की लीलाओं का मनोहारी चित्रण तथा गोपियों के विरह का हृदयस्पर्शी वर्णन ।  
- **भावपक्ष**:  
  - **भक्ति**: कृष्ण के प्रति सख्य भाव की भक्ति।  
  - **मानवीकरण**: कृष्ण को एक सामान्य बालक के रूप में चित्रित करना (जैसे—"मैया मोरी मैं नहिं माखन खायो") ।  
  - **दार्शनिकता**: भक्ति के माध्यम से जीवन के गहन सत्यों को उजागर करना।  

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#### **3. प्रमुख रचनाएँ**  
1. **सूरसागर**:  
   - इसे सूरदास की **महानतम कृति** माना जाता है, जिसमें **12,000 से अधिक पद** संकलित हैं (हालाँकि अब केवल 5,000-8,000 पद ही उपलब्ध हैं) ।  
   - इसमें कृष्ण की **बाल लीलाएँ** (जैसे—माखन चोरी), **गोपी-विरह**, और **भ्रमरगीत** जैसे प्रसंग शामिल हैं ।  

2. **सूरसारावली**:  
   - **1,107 छंदों** वाला यह ग्रंथ एक विशाल "होली गीत" के रूप में रचा गया है ।  

3. **साहित्य लहरी**:  
   - **118 दृष्टकूट पदों** का संग्रह, जिसमें अलंकारों और नायिका-भेद का वर्णन है। इसे सूरदास की **रचनात्मक प्रतिभा** का उदाहरण माना जाता है ।  

4. **अन्य रचनाएँ**:  
   - *नल-दमयन्ती*, *ब्याहलो* (अप्राप्य), *गोवर्धन लीला* आदि ।  

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#### **4. हिंदी साहित्य में योगदान**  
- **ब्रजभाषा का उत्थान**: सूरदास ने ब्रजभाषा को साहित्यिक गरिमा प्रदान की और इसे **लोकप्रिय भाषा** बनाया ।  
- **वात्सल्य रस के प्रणेता**: बालकृष्ण के प्रति यशोदा के स्नेह का ऐसा **सजीव चित्रण** हिंदी साहित्य में अद्वितीय है ।  
- **भक्ति आंदोलन की धुरी**: वल्लभाचार्य के **पुष्टिमार्ग** और **अष्टछाप** के प्रमुख कवि के रूप में उनकी भूमिका ।  

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#### **5. उद्धरण एवं प्रसिद्ध पंक्तियाँ**  
- *"मैया मोरी मैं नहिं माखन खायो!"*  
- *"खेलत यह विधि हरि होरी हो, हरि होरी हो वेद विदित यह बात।"* (सूरसारावली) ।  

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### **निष्कर्ष**  
सूरदास हिंदी साहित्य के **सर्वकालिक महान कवियों** में से एक हैं, जिन्होंने भक्ति, संगीत और काव्य का अद्भुत समन्वय किया। उनकी रचनाएँ आज भी **श्रद्धा और सौंदर्यबोध** का प्रतीक मानी जाती हैं।  

**संदर्भ**: विभिन्न शोध आलेखों एवं पुस्तकों के आधार पर संकलित।

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