*प्रतीत्यसमुत्पाद सिद्धांत: भगवान बुद्ध का कार्य-कारण का दर्शन-प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे

### **प्रतीत्यसमुत्पाद सिद्धांत: भगवान बुद्ध का कार्य-कारण का दर्शन**  

#### **1. प्रतीत्यसमुत्पाद क्या है?**  
प्रतीत्यसमुत्पाद (Pratītyasamutpāda) बौद्ध दर्शन का **मूलभूत सिद्धांत** है, जिसका अर्थ है—**"शर्तों के आधार पर उत्पन्न होना"** या **"क्रमागत उत्पत्ति का सिद्धांत"**। इसे **"कारण और प्रभाव का नियम"** भी कहा जाता है।  
- **महत्व**: यह सिद्धांत **जन्म-मृत्यु के चक्र (संसार)** और **दुःख के मूल कारण** को समझने की कुंजी है।  
- **बुद्ध का कथन**: *"जो प्रतीत्यसमुत्पाद को देखता है, वह धर्म को देखता है; जो धर्म को देखता है, वह प्रतीत्यसमुत्पाद को देखता है।"* (मज्झिम निकाय)  

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### **2. सिद्धांत का उद्देश्य**  
1. **दुःख के मूल कारण को समझना**: जीवन में दुःख क्यों और कैसे उत्पन्न होता है।  
2. **जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति**: इस चक्र को तोड़ने का मार्ग दिखाना।  
3. **अनित्य (क्षणभंगुरता) की प्रकृति को समझना**: सभी वस्तुएँ कैसे परस्पर निर्भर और परिवर्तनशील हैं।  

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### **3. 12 निदान (जन्म-मृत्यु का चक्र)**  
प्रतीत्यसमुत्पाद **12 कड़ियों (निदान)** में समझाया गया है, जो दुःख के उत्पत्ति और निरोध का क्रम दर्शाता है:  

| **क्रम** | **कारण (निदान)**         | **प्रभाव**                     | **व्याख्या** |
|---------|--------------------------|--------------------------------|-------------|
| 1.      | अविद्या (अज्ञान)         | संस्कार (मानसिक संचय)         | अज्ञान से कर्म बनते हैं। |
| 2.      | संस्कार                 | विज्ञान (चेतना)               | कर्म चेतना को प्रभावित करते हैं। |
| 3.      | विज्ञान                 | नाम-रूप (मन और शरीर)          | चेतना से मन-शरीर का निर्माण। |
| 4.      | नाम-रूप                 | षडायतन (6 इंद्रियाँ)           | शरीर और मन इंद्रियों को जन्म देते हैं। |
| 5.      | षडायतन                  | स्पर्श (संवेदना)              | इंद्रियाँ वस्तुओं के संपर्क में आती हैं। |
| 6.      | स्पर्श                   | वेदना (अनुभूति)               | संपर्क से सुख-दुःख की अनुभूति। |
| 7.      | वेदना                   | तृष्णा (लालसा)                 | अनुभूति से इच्छाएँ जन्म लेती हैं। |
| 8.      | तृष्णा                   | उपादान (आसक्ति)               | लालसा से मोह और आसक्ति पैदा होती है। |
| 9.      | उपादान                  | भव (अस्तित्व)                 | आसक्ति से नया जन्म तय होता है। |
| 10.     | भव                      | जाति (जन्म)                   | अस्तित्व से जन्म होता है। |
| 11.     | जाति                    | जरा-मरण (बुढ़ापा-मृत्यु)      | जन्म से मृत्यु निश्चित है। |
| 12.     | जरा-मरण                | पुनः अविद्या (चक्र जारी)      | मृत्यु के बाद फिर अज्ञान से चक्र शुरू।  

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### **4. जीवन की सार्थकता और क्षणभंगुरता**  
1. **अनित्य (क्षणभंगुरता)**:  
   - यह सिद्धांत बताता है कि **सब कुछ परिवर्तनशील** है—कोई भी वस्तु स्थायी नहीं।  
   - जन्म, यौवन, बुढ़ापा और मृत्यु सभी **अनित्यता** के उदाहरण हैं।  

2. **जीवन की सार्थकता**:  
   - बुद्ध ने सिखाया कि **तृष्णा (लालसा) और अविद्या (अज्ञान)** को समाप्त करके ही **निर्वाण (मुक्ति)** प्राप्त की जा सकती है।  
   - इस चक्र को तोड़ने के लिए **अष्टांगिक मार्ग** का पालन आवश्यक है।  

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### **5. सिद्धांत का वैश्विक महत्व**  
- **विज्ञान से तुलना**: आधुनिक विज्ञान भी **कारण-प्रभाव (Causality)** को मानता है, जैसे बौद्ध दर्शन।  
- **मनोविज्ञान में**: यह सिद्धांत **मानसिक पीड़ा के कारणों** को समझने में मदद करता है।  
- **जीवन प्रबंधन**: इससे हम **आसक्ति, क्रोध और लालच** से मुक्त होकर संतुलित जीवन जी सकते हैं।  

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### **6. निष्कर्ष**  
प्रतीत्यसमुत्पाद सिद्धांत **बुद्ध की गहन अंतर्दृष्टि** है, जो हमें सिखाता है कि:  
1. **दुःख का कारण** हमारी **तृष्णा और अज्ञान** है।  
2. **जीवन नश्वर** है, इसलिए **आसक्ति त्यागो**।  
3. **मुक्ति का मार्ग** **धम्म के अनुसरण** में है।  

> *"यदि यह है, तो वह है; यदि यह उत्पन्न होता है, तो वह उत्पन्न होता है।"* — बुद्ध का यह कथन प्रतीत्यसमुत्पाद का सार है।  

इस सिद्धांत को समझकर मनुष्य **अज्ञान के अंधकार** से निकलकर **प्रज्ञा (ज्ञान) के प्रकाश** में आ सकता है।

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