Posts

Showing posts from July, 2025

सम्राट अशोक के अभिलेख और उसकी विशेषता और उनका योगदान

सम्राट अशोक के **40 शिलालेखों** (अभिलेखों) को **ब्राह्मी लिपि** और प्राकृत भाषा में उत्कीर्ण किया गया था। ये शिलालेख पत्थरों और स्तंभों पर मिलते हैं, जिनमें अशोक के धम्म (धर्म) के सिद्धांत, प्रशासनिक नीतियाँ और बौद्ध धर्म के प्रचार संबंधी आदेश शामिल हैं।  *1. अशोक के अभिलेखों का लिप्यंतरण, मूल स्वरूप और अर्थ**   *प्रमुख शिलालेखों का उदाहरण (शिलालेख-12):**   **मूल (ब्राह्मी लिपि में प्राकृत):**   *"देवानांप्रिय प्रियदर्शी राजा सर्वत्र पियदसिनं च सुसमतानं च एवमाह"*   **लिप्यंतरण (IAST):**   *"Devānaṃpriya Priyadarśī rājā sarvatra piyadasinaṃ ca susamataṃ ca evamāha"*   **हिंदी अर्थ:**   *"देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी राजा (अशोक) कहते हैं कि सभी संप्रदायों के लोगों का सम्मान किया जाना चाहिए और उनमें सद्भाव बना रहना चाहिए।"*  **उपदेश:**   - अशोक ने **सहिष्णुता, अहिंसा और नैतिक जीवन** पर जोर दिया।  उन्होंने **धम्म (धर्म)** का पालन करने, पशु-बलि रोकने, माता-पिता की सेवा करने और सत्य बोलने का संदेश दि...

संगमेश्वर कॉलेज, सोलापुर: एक विस्तृत परिचय

# संगमेश्वर कॉलेज, सोलापुर: एक विस्तृत परिचय ## इतिहास और स्थापना संगमेश्वर कॉलेज, सोलापुर की स्थापना जून 1953 में दो दूरदर्शी संस्थापकों - स्वर्गीय श्री नागप्पा बी. काडादी और स्वर्गीय श्री मादेप्पा बी. काडादी द्वारा की गई थी । इसकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य था: "सामान्य रूप से शिक्षा का प्रसार करना और ज्ञान की किसी भी शाखा में निर्देश देना जब भी और जहां भी संभव हो" । यह संस्थान सोलापुर शहर के ऐतिहासिक सात रास्ता चौक पर स्थित है और सात दशकों से उच्च शिक्षा का प्रमाण बना हुआ है । यह कन्नड़ भाषाई अल्पसंख्यक संस्थान है और पुण्यश्लोक अहिल्यादेवी होलकर सोलापुर विश्वविद्यालय से संबद्ध है । ## संस्था का आदर्श वाक्य और उद्देश्य संगमेश्वर कॉलेज का आदर्श वाक्य है: **"कायकवे कैलास"** (कर्म ही पूजा है) । इसका मूल उद्देश्य शिक्षा के माध्यम से समाज का समग्र विकास करना है। ## संस्था के प्रमुख योगदान और उपलब्धियां 1. **शैक्षणिक मान्यताएं**: NAAC द्वारा लगातार 'A' ग्रेड (तीसरे चक्र में CGPA 3.39) से मान्यता प्राप्त  2. **स्वायत्तता**: 2020-21 से UGC द्वारा स्वायत्तता प्राप्त...

सोलापुर महानगरपालिका का इतिहास-प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे

सोलापुर महानगरपालिका (Solapur Municipal Corporation) का इतिहास काफी पुराना है और यह ब्रिटिश शासनकाल से जुड़ा हुआ है। सोलापुर शहर की नगरपालिका स्थापना 19वीं सदी में हुई थी। आइए इसके इतिहास, स्थापना और प्रमुख व्यक्तियों के बारे में विस्तार से जानते हैं। ### **सोलापुर नगरपालिका की स्थापना** - सोलापुर नगरपालिका की स्थापना **1866** में हुई थी।  - यह ब्रिटिश राज के दौरान बॉम्बे प्रेसीडेंसी के अंतर्गत आता था। - 1866 में इसे **"म्युनिसिपल काउंसिल"** का दर्जा मिला और यह एक छोटे नगर प्रशासन के रूप में कार्य करने लगा। ### **प्रथम नगराध्यक्ष (पहले चेयरमैन)** - सोलापुर नगरपालिका के **प्रथम अध्यक्ष (चेयरमैन)** **राव बहादुर श्रीनिवासराव पंढारपुरकर** थे, जिन्होंने 1866 से 1871 तक कार्य किया। - उस समय नगरपालिका का मुख्य कार्य शहर की सफाई, जलापूर्ति और बुनियादी ढांचे का विकास करना था। ### **नगरपालिका के विकास में योगदान देने वाले प्रमुख व्यक्ति** 1. **राव बहादुर श्रीनिवासराव पंढारपुरकर** – प्रथम अध्यक्ष, जिन्होंने नगरपालिका की नींव रखी। 2. **बालासाहेब जयकर** – स्वतंत्रता सेनानी और सामाजिक कार्...

डॉ भरत पिक एम सतपाल महाथेरो एक विद्वान बौद्ध दार्शनिक का जीवन वृतांत-प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे

प्रो. डॉ. भिक्खु एम. सत्यपाल महथेरो: एक विद्वान्, शिक्षक एवं बौद्ध दार्शनिक का जीवन-कृतित्व -प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे संगमेश्वर कॉलेज सोलापूर 9766997174smdudde@gmail. com *प्रस्तावना**   भारतीय बौद्ध विद्वानों की परंपरा में प्रो. डॉ. भिक्खु एम. सत्यपाल महथेरो का नाम एक प्रकाशस्तंभ के समान है। उनका जीवन बौद्ध दर्शन, पाली साहित्य, शिक्षा और समाज कल्याण के प्रति समर्पित रहा है। उनकी विद्वता, लेखन क्षमता और धम्म प्रचार की अद्वितीय शैली ने उन्हें एक प्रमुख बौद्ध विचारक के रूप में स्थापित किया है।   जीवन परिचय**   **जन्म एवं प्रारंभिक जीवन**   डॉ. सत्यपाल महथेरो का जन्म **1 मार्च 1994** को **उमरखेड तालुका, यवतमाल जिला, महाराष्ट्र** में हुआ। उनके बचपन से ही धार्मिक एवं शैक्षणिक वातावरण ने उन्हें आध्यात्मिक जिज्ञासा की ओर प्रेरित किया।  *शिक्षा**   उन्होंने **एम.ए.** तथा **पीएच.डी.** की उपाधि प्राप्त की और **1969 में NET (UGC)** उत्तीर्ण किया। उनकी शोध-दक्षता ने उन्हें बौद्ध दर्शन एवं पाली भाषा के क्षेत्र में विशेषज्ञ बनाया।   **द...

बौद्ध संगीतियों का इतिहास एवं त्रिपिटक का विकास-प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे

### बौद्ध संगीतियों (संगायनों) का इतिहास एवं त्रिपिटक का विकास   बौद्ध धर्म में **संगीति** (संगायन) का अर्थ है—बौद्ध भिक्षुओं की महासभा, जहाँ बुद्ध के उपदेशों को संकलित, संशोधित और लिपिबद्ध किया गया। अब तक **6 बौद्ध संगीतियाँ** हुई हैं, लेकिन प्रमुख रूप से **4 संगीतियों** को मान्यता दी जाती है।   --- ## **1. प्रथम बौद्ध संगीति (483 ईसा पूर्व)**   - **स्थान:** राजगृह (वर्तमान बिहार) की **सप्तपर्णी गुफा**    - **शासक:** मगध के राजा **अजातशत्रु**    - **अध्यक्ष:** **महाकश्यप**    - **प्रमुख सहयोगी:** आनंद (सुत्तपिटक का वाचन) और उपाली (विनयपिटक का वाचन)    - **उद्देश्य:**     - बुद्ध के महापरिनिर्वाण (544 ईसा पूर्व) के बाद उनके उपदेशों को संकलित करना।     - भिक्षुओं के बीच फैल रहे मतभेदों को दूर करना।   - **क्या हुआ?**     - बुद्ध के उपदेशों को **सुत्तपिटक** (भाषण) और **विनयपिटक** (नियम) में विभाजित किया गया।     - इन्हें **पाली भाषा** में मौखिक रूप से ...