भगवान बुद्ध के वर्षावास की परंपरा

भगवान बुद्ध के वर्षावास और इस परंपरा से जुड़ी विस्तृत जानकारी निम्नलिखित है:

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### **1. भगवान बुद्ध के 45 वर्षावास के प्रमुख स्थल**
भगवान बुद्ध ने बुद्धत्व प्राप्ति के बाद 45 वर्षों तक वर्षावास (चातुर्मास) विभिन्न स्थानों पर बिताए। इनमें से कुछ प्रमुख स्थान और उनसे जुड़े तथ्य:

- **श्रावस्ती (जेतवन विहार)**: यह सबसे प्रमुख स्थान था, जहाँ बुद्ध ने सर्वाधिक 25 वर्षावास बिताए। यहाँ अनाथपिण्डिक द्वारा दान किए गए जेतवन विहार में उन्होंने अधिकांश उपदेश दिए ।
- **वैशाली (वेदौलिया)**: बुद्ध ने अपना अंतिम (45वाँ) वर्षावास वैशाली के वेदौलिया गाँव में बिताया। यह स्थान अब बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में स्थित है। यहाँ उन्होंने "अत्त दीपा विहरथ" (अपने दीपक स्वयं बनो) का उपदेश दिया ।
- **राजगृह**: यहाँ बुद्ध ने कई वर्षावास बिताए, विशेषकर वेणुवन विहार में।
- **वैशाली (कोल्हुआ)**: पाँचवें वर्षावास का स्थल, जहाँ बुद्ध ने महिला भिक्षुणी संघ की स्थापना की ।
- **कुशीनगर**: यहाँ बुद्ध ने अंतिम समय में निर्वाण प्राप्त किया, लेकिन वर्षावास के दौरान भी यात्राएँ कीं ।

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### **2. वर्षावास की अवधि और परंपरा का प्रारंभ**
- **अवधि**: वर्षावास प्रतिवर्ष आषाढ़ पूर्णिमा से आश्विन पूर्णिमा तक (तीन महीने) चलता है। इस वर्ष (2025) यह 21 जुलाई से शुरू हुआ ।
- **परंपरा का उद्गम**: बुद्ध ने इसकी शुरुआत अपने समय में की थी, जब भिक्षुओं के वर्षा ऋतु में विचरण से फसलों और छोटे जीवों को नुकसान होता था। इसलिए उन्होंने नियम बनाया कि भिक्षु एक ही स्थान पर रहकर ध्यान और अध्ययन करें ।

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### **3. वर्षावास का महत्व और विशेषताएँ**
- **जीव हत्या से बचाव**: वर्षा ऋतु में कीड़े-मकोड़ों की बहुलता के कारण भिक्षुओं का विचरण निषिद्ध है ।
- **ध्यान और अध्ययन**: इस अवधि में भिक्षु बुद्ध के सिद्धांतों (जैसे अष्टांगिक मार्ग, चार आर्य सत्य) का गहन अध्ययन करते हैं ।
- **धम्म प्रचार**: भिक्षु उपासकों को धर्मोपदेश देते हैं और "एवं मे सुतं" (ऐसा मैंने सुना) जैसे वाक्यों से उपदेश प्रारंभ करते हैं ।

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### **4. वर्षावास के दौरान किए जाने वाले कार्य**
- **व्रत और अनुष्ठान**: भिक्षु एक ही स्थान पर रहकर पंचशील, अष्टशिल, और उपोसथ व्रत का पालन करते हैं ।
- **सामूहिक पाठ**: "बुद्ध और उनका धम्म" जैसी पुस्तकों का सामूहिक अध्ययन किया जाता है ।
- **चीवर दान**: वर्षावास के अंत में भिक्षुओं को नए वस्त्र (चीवर) दान किए जाते हैं ।

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### **5. ऐतिहासिक और पुरातात्विक प्रमाण**
- वैशाली के वेदौलिया गाँव में बौद्ध कालीन अवशेष (जैसे अनिरुद्ध टीला और प्राचीन कूप) मिले हैं, जो बुद्ध के वर्षावास की पुष्टि करते हैं ।
- पालि ग्रंथों (जैसे मज्झिम निकाय) में "वेलुवगाम" (वेदौलिया का प्राचीन नाम) का उल्लेख है ।

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### **निष्कर्ष**
वर्षावास बौद्ध धर्म की एक अनूठी परंपरा है, जो आज भी थाईलैंड, म्यांमार, श्रीलंका आदि देशों में प्रचलित है। यह अहिंसा, ध्यान, और सामुदायिक जीवन का प्रतीक है। बुद्ध के जीवन से जुड़े इन स्थलों को संरक्षित करने की आवश्यकता है, विशेषकर वेदौलिया जैसे गाँवों में, जहाँ अभी भी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है ।

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