अनामिका की कविता नमक की समीक्षा कीजिए
# समीक्षा: अनामिका की कविता "नमक"
## कविता का परिचय
अनामिका की कविता "नमक" एक गहन मानवीय अनुभव को व्यक्त करने वाली रचना है जो नमक के माध्यम से जीवन के विभिन्न पहलुओं को छूती है। यह कविता नमक को केवल एक पदार्थ के रूप में नहीं, बल्कि एक प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करती है जो दुख, संवेदनशीलता, सामाजिक अन्याय और मानवीय संबंधों को व्यक्त करता है ।
## कविता की विषयवस्तु
कविता की शुरुआत में ही अनामिका नमक को "धरती का दुख और उसका स्वाद भी" बताती हैं, जो एक विरोधाभासी किन्तु गहन अभिव्यक्ति है । वे आगे कहती हैं:
"पृथ्वी का तीन भाग नमकीन पानी है
और आदमी का दिल नमक का पहाड़"
यहाँ नमक मानवीय संवेदनशीलता का प्रतीक बन जाता है - जो आसानी से पिघल जाता है, जिसे आहत किया जा सकता है ।
## सामाजिक व्यंग्य
कविता में सरकारी दफ्तरों को "शाही नमकदान" कहकर एक तीखा सामाजिक व्यंग्य किया गया है। कवयित्री कहती हैं कि ये दफ्तर "बड़ी नफासत से छिड़क देते हैं हरदम हमारे जले पर नमक!" । यहाँ नमक जख्मों पर छिड़के जाने वाले नमक का प्रतीक बन जाता है, जो सिस्टम द्वारा किए जाने वाले मानसिक उत्पीड़न को दर्शाता है।
## स्त्री जीवन की पीड़ा
अनामिका विशेष रूप से औरतों के चेहरे के नमक की बात करती हैं, जो उन पर भारी पड़ता है । यहाँ 'चेहरे का नमक' शब्द प्रयोग स्त्री के सम्मान, इज्जत और उसकी पीड़ा को दर्शाता है। कवयित्री का यह प्रश्न - "पूछिए उन औरतों से - कितना भारी पड़ता है उनको उनके चेहरे का नमक!" - समाज में स्त्री की स्थिति पर एक मार्मिक टिप्पणी है ।
## ऐतिहासिक संदर्भ
कविता में गांधी जी के नमक सत्याग्रह का भी सूक्ष्म संदर्भ आता है - "गाँधी जी जानते थे नमक की क़ीमत" । यहाँ नमक औपनिवेशिक शोषण के विरुद्ध संघर्ष का भी प्रतीक बन जाता है।
## काव्यगत विशेषताएँ
1. **प्रतीकात्मकता**: नमक यहाँ बहुस्तरीय प्रतीक के रूप में प्रयुक्त हुआ है - संवेदनशीलता, पीड़ा, सामाजिक अन्याय और जीवन के स्वाद का प्रतीक ।
2. **विरोधाभास**: "नमक दुख है धरती का और उसका स्वाद भी" जैसे पंक्तियों में विरोधाभासी अभिव्यक्ति कविता को गहराई प्रदान करती है ।
3. **लय और प्रवाह**: कविता में एक स्वाभाविक लय है जो पाठक को बाँधे रखती है ।
4. **सामाजिक यथार्थ**: कविता समाज के विभिन्न वर्गों - स्त्रियों, सरकारी तंत्र के शिकार लोगों, नमकहलालों (वफादारों) की पीड़ा को उजागर करती है ।
## निष्कर्ष
अनामिका की "नमक" कविता एक साधारण पदार्थ के माध्यम से असाधारण मानवीय अनुभवों को व्यक्त करने वाली रचना है। यह कविता नमक को भौतिक पदार्थ से उठाकर एक सार्वभौमिक प्रतीक में बदल देती है जो मानवीय संवेदनाओं, सामाजिक विसंगतियों और ऐतिहासिक संघर्षों को व्यक्त करता है। अनामिका की यह कविता उनके काव्य कौशल और सामाजिक संवेदनशीलता का उत्कृष्ट उदाहरण है ।
कविता का अंत इस विश्वास के साथ होता है कि "ईश्वर के आँसू और आदमी का पसीना - ये ही वो नमक है कि जिससे थिराई रहेगी ये दुनिया" । यह पंक्ति मानवीय संघर्ष और दैवीय करुणा के संयोग से विश्व के संतुलन की बात करती है, जो कविता को एक आशावादी समापन प्रदान करती है।
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