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Showing posts from January, 2025

NAAC परिप्रेक्ष्य दस्तावेज़ीकरणविभाग स्तर पर आवश्यक दस्तावेज़

NAAC परिप्रेक्ष्य दस्तावेज़ीकरण विभाग स्तर पर आवश्यक दस्तावेज़ 1सभी विभाग सदस्यों के डिग्री प्रमाण पत्र और मार्कशीट 2NET/SET प्रमाण पत्र 3. पीएचडी डिग्री और डॉक्टरेट थीसिस का सारांश 4UGC रिफ्रेशर/ओरिएंटेशन/अल्पकालिक पाठ्यक्रम में भाग लिया 5किसी अन्य प्रशिक्षण का प्रमाण पत्र 6विश्वविद्यालय निकायों में नियुक्ति का पत्र 7. पेपर-सेटर, परीक्षक, मॉडरेटर के रूप में विश्वविद्यालय पत्र 8. पीएचडी/मास्टर छात्रों के लिए मार्गदर्शक के रूप में पत्र 9. परामर्श के लिए पत्र 10प्रत्येक विभाग सदस्य की उपस्थिति पुस्तिका 11प्रत्येक विभाग सदस्य की शैक्षणिक योजना पुस्तिका 12छात्रों के लिए आयोजित अतिथि वक्ता/कार्यशालाओं के पत्र/फोटो 13छात्रों के लिए आयोजित यात्राओं/क्षेत्र यात्राओं/औद्योगिक यात्राओं के लिए पत्र 14विभाग के किसी भी सहयोग/संबंध या समझौता ज्ञापन के लिए पत्र 15विभाग की विस्तार गतिविधियों की तस्वीरें या संबंधित दस्तावेज़ 16फ्रीशिप/छात्रवृत्ति प्राप्त करने वाले छात्रों की सूची 17छात्रों के प्रमाण पत्र भागीदारी 18छात्रों की उपलब्धियों के प्रमाण पत्र 19छात्रों के प्रोजेक्ट या असाइनमेंट के नमूने। यदि ऑ...

उपन्यास का उद्भव और विकास स्पष्ट कीजिए

आधुनिक कालीन हिंदी उपन्यास का उद्भव और विकास हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण चरण है। यहाँ इसके मुख्य बिंदुओं को विस्तार से समझाया गया है: ### उद्भव: 1. **अठारहवीं शताब्दी का अंत और उन्नीसवीं शताब्दी का आरंभ**: यह वह समय था जब पश्चिमी साहित्य और विचारों का प्रभाव भारतीय समाज पर पड़ने लगा था। अंग्रेज़ी शासन के दौरान शिक्षा और सामाजिक संरचना में बदलाव आए, जिसने हिंदी उपन्यास की नींव रखी। 2. **फोर्ट विलियम कॉलेज का योगदान**: इस काल में फोर्ट विलियम कॉलेज (1800) का स्थापित होना भी महत्वपूर्ण था। इस संस्थान ने हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 3. **प्रारंभिक उपन्यास**: प्रारंभिक हिंदी उपन्यासों में "परीक्षा गुरु" (1882) जो श्रीनिवास दास द्वारा लिखा गया था, को हिंदी का पहला उपन्यास माना जाता है। ### विकास: 1. **भारतीय समाज और संस्कृति का प्रतिबिंब**: प्रारंभिक उपन्यासों में भारतीय समाज और संस्कृति का गहरा चित्रण मिलता है। इनमें तत्कालीन समाज की समस्याओं, संघर्षों और परिवर्तनों को प्रमुखता दी गई है। 2. **आचार्य चतुरसेन और प्रेमचंद का योगदान**:    - **प...

कहानी का उद्भव और विकास स्पष्ट कीजिए

कहानी का उद्भव और विकास एक लंबी और रोचक यात्रा है जो प्राचीन काल से आधुनिक युग तक फैली हुई है। यहाँ कुछ मुख्य बिंदुओं के माध्यम से इस यात्रा को प्रस्तुत किया गया है: ### उद्भव: 1. **प्राचीन काल**: कहानी का प्रारंभ मौखिक परंपरा में हुआ। प्राचीन मानव अपने अनुभवों, भावनाओं, और ज्ञान को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक मौखिक रूप से संप्रेषित करते थे। इस काल में लोककथाएँ और पौराणिक कथाएँ प्रमुख थीं। 2. **लिखित परंपरा**: लिखित परंपरा की शुरुआत के साथ, कहानियों को लिखित रूप में संरक्षित किया जाने लगा। प्राचीन सभ्यताओं जैसे सुमेर, मिस्र, भारत, और ग्रीस की पौराणिक कथाएँ और महाकाव्य (महाभारत, रामायण, ग्रीक मिथकों की कहानियाँ) इस काल की मुख्य विशेषताएँ थीं। ### विकास: 3. **मध्यकालीन काल**:    - **फोल्कलोर और लोककथाएँ**: इस काल में भी मौखिक और लिखित परंपराएँ समान रूप से महत्वपूर्ण थीं। लोककथाएँ और दंतकथाएँ समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थीं।    - **कहानियों का संकलन**: विभिन्न क्षेत्रों में कहानियों का संकलन और संरक्षित करने का कार्य हुआ। "पंचतंत्र" और "हितोपदेश" जैसी कृतियाँ इस क...

UGC NET New Rules 2025: असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती के नियम बदले, मास्टर्स डिग्री धारकों को बड़ा फायदा

UGC NET New Rules 2025: असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती के नियम बदले, मास्टर्स डिग्री धारकों को बड़ा फायदा UGC NET New Rules 2025: University Grants Commission (UGC) ने हाल ही में असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती के लिए नए नियम प्रस्तावित किए हैं। ये नए नियम शिक्षा क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव लाने वाले हैं। इन नियमों के तहत, अब मास्टर्स डिग्री धारकों को असिस्टेंट प्रोफेसर बनने के लिए UGC NET परीक्षा पास करने की अनिवार्यता नहीं होगी। यह बदलाव उच्च शिक्षा में गुणवत्ता बनाए रखते हुए भर्ती प्रक्रिया को अधिक समावेशी बनाने का प्रयास है। इन नए नियमों का मुख्य उद्देश्य शिक्षण पेशे में प्रवेश के लिए अधिक विकल्प प्रदान करना है। UGC का मानना है कि इससे विविध योग्यताओं वाले उम्मीदवारों को उच्च शिक्षा में अपना योगदान देने का मौका मिलेगा। यह कदम National Education Policy (NEP) 2020 के अनुरूप है, जो शिक्षा क्षेत्र में बहु-विषयक दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है। UGC NET New Rules 2025 की मुख्य बातें UGC NET New Rules 2025 के तहत असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती के लिए कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। आइए इन नियमों की एक झलक द...

जब तक बिमलाए" चित्रा मुद्गल कृत रेखा चित्र को स्पष्ट कीजिए

"जब तक बिमलाए" चित्रा मुद्गल कृत रेखा चित्र एक मर्मस्पर्शी और भावनात्मक रचना है, जो एक माँ के दिल की गहराइयों को उजागर करती है। **मुख्य विषय**: एक माँ का अपने बेटे के प्रति प्यार और चिंता **पात्र**: * माँ: जो अपने बेटे की हर छोटी से छोटी बात का ध्यान रखती है और उसकी खुशी के लिए हमेशा चिंतित रहती है। * बेटा: जो अपनी माँ के प्यार और देखभाल से बड़ा हो रहा है और जल्द ही अपने जीवन के नए पड़ाव में कदम रखेगा। **रेखा चित्र के मुख्य बिंदु**: 1. **माँ का प्यार**: माँ के दिल की गहराइयों में छिपा हुआ प्यार और चिंता को उजागर किया गया है। 2. **बेटे की परवरिश**: माँ ने अपने बेटे को कैसे बड़ा किया और उसकी हर जरूरत का ध्यान रखा, इसका वर्णन किया गया है। 3. **आने वाला समय**: माँ की चिंता और आशंका को दिखाया गया है जब उसका बेटा जल्द ही अपने जीवन के नए पड़ाव में कदम रखेगा। 4. **भावनात्मक जुड़ाव**: माँ और बेटे के बीच के गहरे भावनात्मक जुड़ाव को दर्शाया गया "जब तक बिमलाए" चित्रा मुद्गल कृत रेखा चित्र की विशेषताएं यह हैं: 1. **भावनात्मक गहराई**: रेखा चित्र में माँ और बेटे के बीच के भावनात्म...

साधू सिंह" कन्हैयालाल मिश्र द्वारा रचित रेखाचित्र को स्पष्ट कीजिए

"साधू सिंह" कन्हैयालाल मिश्र द्वारा रचित एक रेखाचित्र है, जिसमें उन्होंने एक साधारण से दिखने वाले व्यक्ति साधू सिंह के चरित्र को व्यंग्यात्मक ढंग से चित्रित किया है। **मुख्य विषय**: साधू सिंह का दोहरा चरित्र और समाज में उसकी दखल **पात्र**:  * साधू सिंह: एक साधारण से दिखने वाला व्यक्ति जो अपने बाहरी स्वरूप से अलग अपने अंदर गहरी चालाकी और दूरदर्शिता रखता है। * अन्य पात्र: साधू सिंह के परिवार के सदस्य और समाज के अन्य लोग जो उसके दोहरे चरित्र से अनजान हैं। **रेखाचित्र के मुख्य बिंदु**: 1. साधू सिंह का बाहरी स्वरूप और उसके अंदर की चालाकी को उजागर किया गया है। 2. उसके दोहरे चरित्र को व्यंग्यात्मक ढंग से चित्रित किया गया है, जिसमें वह समाज में एक साधारण व्यक्ति के रूप में दिखता है लेकिन अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। 3. समाज में उसकी दखल और प्रभाव को दर्शाया गया है,  "साधू सिंह" कन्हैयालाल मिश्र द्वारा रचित रेखाचित्र का विस्तृत स्पष्टीकरण यह है: **मुख्य विषय**: साधू सिंह का दोहरा चरित्र और समाज में उसकी दखल **पात्र**: * साधू सिंह: एक साधारण स...

लल्लू कब लौटेगी" बनारसी दास चतुर्वेदी द्वारा रचित रेखचित्र को स्पष्ट कीजिए

"लल्लू कब लौटेगी" बनारसी दास चतुर्वेदी द्वारा रचित एक हास्यमय रेखा चित्र है, जिसमें उन्होंने एक सरकारी कार्यालय में होने वाली देरी और लापरवाही को व्यंग्यात्मक ढंग से चित्रित किया है। इस रेखा चित्र में, चतुर्वेदी जी ने: * लल्लू नामक एक कर्मचारी को दिखाया है, जो हमेशा काम में देरी से आता है और अपने काम को टालता रहता है। * सरकारी कार्यालय की सुस्त और लापरवाही भरी व्यवस्था को उजागर किया है, जहां काम समय पर नहीं होता है। * लल्लू के साथ-साथ अन्य कर्मचारियों की भी देरी और लापरवाही को दिखाया है, जो कार्यालय के काम को प्रभावित करती है। * आम नागरिकों को परेशान करने वाली इस व्यवस्था पर व्यंग्य किया है, जो अपने काम के लिए सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगाते रहते हैं। कुछ उदाहरण पंक्तियाँ यह हैं: "लल्लू कब लौटेगा, यही सवाल है हर रोज़... सरकारी दफ्तर में समय की कोई कीमत नही है "लल्लू कब लौटेगी" बनारसी दास चतुर्वेदी द्वारा रचित रेखा चित्र का विस्तृत स्पष्टीकरण यह है: **मुख्य विषय**: सरकारी कार्यालयों में होने वाली देरी और लापरवाही **पात्र**: * लल्लू: एक सरकारी कर्मचारी जो हमेशा ...

एक नेत्र हैं की दृष्टि -एक चित्र- विष्णु प्रभाकर द्वारा रचित रेखाचित्र का स्पष्टीकरण कीजिए

"एक नेत्रहीन की दृष्टि" विष्णु प्रभाकर द्वारा रचित एक मर्मस्पर्शी रेखाचित्र है, जिसमें उन्होंने एक नेत्रहीन व्यक्ति के जीवन और दृष्टिकोण को चित्रित किया है। इस रेखाचित्र में, प्रभाकर जी ने नेत्रहीन के: * आंतरिक दृष्टि को दर्शाया है, जो शारीरिक दृष्टि की अनुपस्थिति में भी जीवन को देखने का एक नया तरीका है। * जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण को चित्रित किया है, जो चुनौतियों का सामना करने और उन पर विजय पाने की भावना को दर्शाता है। * स्पर्श और श्रवण इंद्रियों के माध्यम से दुनिया को अनुभव करने और समझने की क्षमता को दर्शाया है। * समाज में नेत्रहीन लोगों के प्रति दृष्टिकोण और उनके अधिकारों की लड़ाई को भी उजागर किया है। कुछ उदाहरण पंक्तियाँ यह हैं: "मेरी आँखें नहीं देखतीं, लेकिन मेरा दिल देखता है... मैं दुनिया को स्पर्श से जानता हूँ, श्रवण से समझता हूँ... नेत्रहीनता नहीं है कमजोरी, बल्कि एक नई दृष्टि है जीवन की।" यह रेखाचित्र नेत्रहीन लोगों के प्रति सम्मान और समझ बढ़ाने में मदद करता है और उनके जीवन की चुनौतियों और उपलब

वकील साहब -रेखाचित्र- विनय मोहन शर्मा

"वकील साहब" विनय मोहन शर्मा द्वारा रचित एक हास्यमय रेखाचित्र है, जिसमें उन्होंने एक वकील के चरित्र को व्यंग्यात्मक ढंग से चित्रित किया है। इस रेखाचित्र में, शर्मा जी ने वकील साहब के विभिन्न पहलुओं को दर्शाया है, जैसे कि: * उनकी बड़बोलापन और झूठे वादे * उनकी मुवक्किलों को लूटने की कला * उनकी अदालत में अपने विरोधियों को हराने के लिए किए जाने वाले हथकंडे * उनकी अपने पैसे और प्रतिष्ठा के प्रति लालसा रेखाचित्र में शर्मा जी ने वकील साहब के चरित्र का मजाक उड़ाया है और समाज में वकीलों की भूमिका पर व्यंग्य किया है। कुछ उदाहरण पंक्तियाँ यह हैं: "वकील साहब की जुबान है चमकदार,  मुवक्किलों को लूटने का हुनर है कमालदार... अदालत में जीतने के लिए कानून नहीं,  जीतने के लिए जरूरत है तो सिर्फ जुबानी दालदार!" यह रेखाचित्र हास्य और व्यंग्य का एक अच्छा नमूना है और वकीलों के प्रति आम लोगों की राय को दर्शाता है।

तुम्हारी स्मृति- रेखा चित्र माखनलाल चतुर्वेदी रेखा चित्र को स्पष्ट कीजिए

"तुम्हारी स्मृति" रेखा चित्र माखनलाल चतुर्वेदी जी द्वारा रचित एक सुंदर रेखा चित्र है, जिसमें उन्होंने अपनी प्रियतमा की स्मृति को चित्रित किया है। इस रेखा चित्र में चतुर्वेदी जी ने अपनी प्रियतमा के विभिन्न पहलुओं को दर्शाया है, जैसे कि: * उसकी आँखों की गहराई और सुंदरता * उसके बालों की लंबाई और कालिमा * उसके होंठों की मुस्कान और सुंदरता * उसके चेहरे की खूबसूरती और आकर्षण चतुर्वेदी जी ने इस रेखा चित्र में अपनी प्रियतमा के प्रति अपने प्रेम और श्रद्धा को व्यक्त किया है, और उसकी स्मृति को अमर बनाने का प्रयास किया है। रेखा चित्र की शैली में लिखी कुछ पंक्तियाँ यह हैं: "तुम्हारी स्मृति मेरे मन में बसी है एक मधुर सपने की तरह खिली है तुम्हारी आँखों की गहराई में डूब जाऊँ तुम्हारे बालों की लंबाई में खो जाऊँ" यह रेखा चित्र हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है और प्रेम और स्मृति की भावना को सुंदरता से व्यक्त करता है।

टीवी चैनल के अर्थव्यवस्था स्पष्ट कीजिए

टीवी चैनल की अर्थव्यवस्था में निम्नलिखित घटक शामिल हैं: 1. **विज्ञापन राजस्व**: टीवी चैनलों का मुख्य आय स्रोत विज्ञापन है। विज्ञापनदाता अपने उत्पादों या सेवाओं को प्रमोट करने के लिए टीवी चैनलों पर विज्ञापन देते हैं। 2. **सब्सक्रिप्शन राजस्व**: कुछ टीवी चैनल दर्शकों से सब्सक्रिप्शन शुल्क लेते हैं, जिससे वे चैनल की सेवाओं का उपयोग कर सकते हैं। 3. **लाइसेंसिंग राजस्व**: टीवी चैनल अपने कंटेंट को अन्य प्लेटफ़ॉर्म पर लाइसेंस देकर राजस्व अर्जित करते हैं। 4. **स्पॉन्सरशिप राजस्व**: टीवी चैनल कुछ कार्यक्रमों या आयोजनों के लिए स्पॉन्सरशिप लेते हैं, जिससे उन्हें अतिरिक्त राजस्व मिलता है। 5. **डिजिटल राजस्व**: टीवी चैनल अपने डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म से राजस्व अर्जित करते हैं, जैसे कि यूट्यूब, फ़ेसबुक आदि पर विज्ञापन और कंटेंट बेचकर। इन आय स्रोतों से टीवी चैनल अपने परिचालन खर्चों को पूरा करते हैं, जैसे कि: * कंटेंट निर्माण और अधिग्रहण * कर्मचारियों की तनख्वाह और लाभ * प्रचार और विज्ञापन * तकनीकी और आधारभूत संरचना की लागतें

टीवी चैनल के अर्थव्यवस्था स्पष्ट कीजिए

टीवी चैनल की अर्थव्यवस्था में निम्नलिखित घटक शामिल हैं: 1. **विज्ञापन राजस्व**: टीवी चैनलों का मुख्य आय स्रोत विज्ञापन है। विज्ञापनदाता अपने उत्पादों या सेवाओं को प्रमोट करने के लिए टीवी चैनलों पर विज्ञापन देते हैं। 2. **सब्सक्रिप्शन राजस्व**: कुछ टीवी चैनल दर्शकों से सब्सक्रिप्शन शुल्क लेते हैं, जिससे वे चैनल की सेवाओं का उपयोग कर सकते हैं। 3. **लाइसेंसिंग राजस्व**: टीवी चैनल अपने कंटेंट को अन्य प्लेटफ़ॉर्म पर लाइसेंस देकर राजस्व अर्जित करते हैं। 4. **स्पॉन्सरशिप राजस्व**: टीवी चैनल कुछ कार्यक्रमों या आयोजनों के लिए स्पॉन्सरशिप लेते हैं, जिससे उन्हें अतिरिक्त राजस्व मिलता है। 5. **डिजिटल राजस्व**: टीवी चैनल अपने डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म से राजस्व अर्जित करते हैं, जैसे कि यूट्यूब, फ़ेसबुक आदि पर विज्ञापन और कंटेंट बेचकर। इन आय स्रोतों से टीवी चैनल अपने परिचालन खर्चों को पूरा करते हैं, जैसे कि: * कंटेंट निर्माण और अधिग्रहण * कर्मचारियों की तनख्वाह और लाभ * प्रचार और विज्ञापन * तकनीकी और आधारभूत संरचना की लागतें

संचार माध्यमों का सिनेमा जगत पर परिणाम स्पष्ट कीजिए

जनसंचार माध्यमों का सिनेमा जगत पर बहुत ही गहरा और बहुआयामी प्रभाव है। यहाँ कुछ मुख्य बिंदु दिए गए हैं: 1. **संवेदनशीलता और सामाजिक मुद्दे**: सिनेमा जनसंचार माध्यमों का उपयोग करके समाज में संवेदनशीलता और सामाजिक मुद्दों को उजागर करता है। फिल्में सामाजिक न्याय, भेदभाव, गरीबी, और मानवाधिकार जैसे मुद्दों पर प्रकाश डालती हैं, जिससे जनता में जागरूकता बढ़ती है। 2. **संस्कृति और पहचान**: सिनेमा समाज की संस्कृति और पहचान को संरक्षित और प्रसारित करता है। विभिन्न भाषाओं, संस्कृतियों और परंपराओं को सिनेमा के माध्यम से व्यापक दर्शकों तक पहुँचाया जाता है। 3. **प्रेरणा और आदर्श**: सिनेमा के माध्यम से प्रेरणादायक कहानियाँ और आदर्श प्रस्तुत किए जाते हैं, जो लोगों को अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रेरित करते हैं। 4. **मनोरंजन और आराम**: सिनेमा जनसंचार का एक प्रमुख मनोरंजन स्रोत है। यह दर्शकों को तनाव से राहत देता है और मनोरंजन का एक महत्वपूर्ण साधन प्रदान करता है। 5. **आर्थिक प्रभाव**: सिनेमा उद्योग का जनसंचार माध्यमों के माध्यम से व्यापक आर्थिक प्रभाव होता है। यह रोजगार उत्पन्न करता है, पर...

जनसंचार का इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में प्रभाव स्पष्ट कीजिए

जनसंचार का इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर प्रभाव बहुत व्यापक और गहरा है। यहाँ कुछ मुख्य बिंदु दिए गए हैं: 1. **तत्काल सूचना का प्रसार**: इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, जैसे टेलीविजन, रेडियो और इंटरनेट, सूचना के तुरंत प्रसार का साधन है। यह त्वरित रूप से खबरों और घटनाओं को लोगों तक पहुँचाता है। 2. **विचारधारा और जनमत निर्माण**: इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जनमत निर्माण और लोगों की विचारधारा को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। समाचार चैनल, टॉक शो और बहसें जनता की धारणाओं को आकार देती हैं। 3. **शिक्षा और जागरूकता**: इलेक्ट्रॉनिक मीडिया शिक्षा और सामाजिक जागरूकता बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है। डॉक्युमेंट्री, शैक्षिक कार्यक्रम और समाजिक मुद्दों पर आधारित शो लोगों को शिक्षित और जागरूक बनाते हैं। 4. **मनोरंजन**: यह मनोरंजन के विभिन्न रूप प्रदान करता है, जैसे फिल्में, संगीत, नाटक, और रियलिटी शो, जो लोगों के जीवन का हिस्सा बन गए हैं। 5. **विज्ञापन और व्यापार**: इलेक्ट्रॉनिक मीडिया व्यापार और विज्ञापन के लिए एक प्रभावी प्लेटफार्म है। उत्पादों और सेवाओं के विज्ञापन व्यापक दर्शकों तक पहुँचते हैं, जिससे व्...

जनसंचार का प्रिंट मीडिया में महत्व प्रभाव महत्व स्पष्ट कीजिए

जनसंचार (Mass Communication) का प्रिंट मीडिया पर गहरा प्रभाव है और यह विभिन्न दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है: 1. **सूचना का प्रसार**: प्रिंट मीडिया, जैसे समाचार पत्र और पत्रिकाएँ, जनसंचार का एक प्रमुख माध्यम हैं जो लोगों को समय पर और विश्वसनीय समाचार प्रदान करती हैं। यह समाज में सूचना के प्रसार का एक महत्वपूर्ण साधन है। 2. **जनमत निर्माण**: प्रिंट मीडिया जनमत निर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। संपादकीय, लेख और समाचार विश्लेषण के माध्यम से यह लोगों को विभिन्न मुद्दों पर जानकारी और दृष्टिकोण प्रदान करती है। 3. **शिक्षा और जागरूकता**: प्रिंट मीडिया शिक्षा और जागरूकता बढ़ाने में सहायक होती है। यह विभिन्न सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर लेख प्रकाशित कर समाज को जागरूक बनाती है। 4. **विज्ञापन**: प्रिंट मीडिया व्यापार और उद्योग के लिए विज्ञापन का एक प्रभावी माध्यम है। विज्ञापन के माध्यम से उत्पादों और सेवाओं की जानकारी लोगों तक पहुँचाई जाती है, जिससे व्यापारिक गतिविधियाँ बढ़ती हैं। 5. **साहित्यिक और सांस्कृतिक योगदान**: प्रिंट मीडिया साहित्यिक और सांस्कृतिक विकास मे...

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने जर्नल सूची रद्द की, भारतीय विश्वविद्यालयों की वैश्विक स्थिति प्रभावित होगी

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने जर्नल सूची रद्द की, भारतीय विश्वविद्यालयों की वैश्विक स्थिति प्रभावित होगी यूजीसी द्वारा जर्नल सूची रद्द करने से गुणवत्ता खतरे में, भारतीय विश्वविद्यालयों की वैश्विक स्थिति प्रभावित होगी यूजीसी के दो अधिकारियों ने कहा कि आयोग ने हाल ही में यूजीसी-कंसोर्टियम फॉर एकेडमिक्स एंड रिसर्च एथिक्स (CARE) सूची को खत्म करने का फैसला किया है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने प्रकाशनों की अपनी मानक सूची को बंद करने का निर्णय लिया है जो शोधकर्ताओं और शिक्षाविदों को उन पत्रिकाओं की पहचान करने में मदद करती है जो विश्वसनीय हैं और अपने शोधपत्र प्रकाशित करने के लिए कुछ गुणवत्ता मानकों को पूरा करती हैं। यूजीसी के दो अधिकारियों ने कहा कि आयोग ने हाल ही में यूजीसी-कंसोर्टियम फॉर एकेडमिक्स एंड रिसर्च एथिक्स (CARE) सूची को खत्म करने का फैसला किया है। तीन शिक्षाविदों ने द टेलीग्राफ को बताया कि यह निर्णय भारतीय विश्वविद्यालयों की वैश्विक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा और शिकारी पत्रिकाओं के विकास के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र तैयार करेगा। वर्तमान यूजीसी मानदंडों के अनुसार, सहा...

मसाज में मोहरी तेल के फायदे -डॉ संघप्रकाश दुड्डे

मसाज में मोहरी तेल के फायदे -डॉ संघप्रकाश दुड्डे मोहरी (सरसों) तेल का मसाज करने से कई स्वास्थ्य लाभ होते हैं। यहाँ कुछ प्रमुख फायदे दिए गए हैं: त्वचा की सफाई: मोहरी तेल एक प्राकृतिक क्लींजर के रूप में काम करता है, जो त्वचा से गंदगी और मैल को हटाने में मदद करता है1. मॉइश्चराइजिंग: यह तेल त्वचा को गहराई से मॉइश्चराइज करता है, जिससे त्वचा मुलायम और चमकदार बनी रहती है2. बालों की ग्रोथ: मोहरी तेल बालों की ग्रोथ को बढ़ावा देता है और बालों को सफेद होने से रोकता है1. ब्लड सर्कुलेशन में सुधार: मोहरी तेल की मालिश से ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है, जिससे मांसपेशियों को आराम मिलता है और शरीर में ऑक्सीजन और पोषक तत्वों का प्रवाह बढ़ता है2. संक्रमण से बचाव: मोहरी तेल में एंटीबैक्टीरियल और एंटीफंगल गुण होते हैं, जो त्वचा को संक्रमण से बचाने में मदद करते हैं2. जोड़ों के दर्द में राहत: सर्दियों में जोड़ों और मांसपेशियों के दर्द को कम करने में मोहरी तेल की मालिश बहुत फायदेमंद होती है2. आप मोहरी तेल का उपयोग अपने दैनिक जीवन में शामिल कर सकते हैं और इसके फायदों का लाभ उठा सकते हैं।  मोहरी (सरसों) तेल का...

सुरंग -दयानंद बटोही

दयानंद बटोही की कहानी “सुरंग” में मुख्य पात्र का नाम रामू है, जो एक दलित समुदाय से आता है। कहानी का मुख्य विषय जातिगत भेदभाव और सामाजिक अन्याय है, जिसे रामू अपने जीवन में झेलता है। कहानी का सारांश: रामू एक मेहनती और ईमानदार व्यक्ति है, जो अपने परिवार के लिए बेहतर जीवन की तलाश में है। लेकिन समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव के कारण उसे हर कदम पर कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। कहानी में दिखाया गया है कि कैसे रामू को अपने काम के दौरान और सामाजिक जीवन में भेदभाव का सामना करना पड़ता है। मुख्य बिंदु: संघर्ष और संघर्षशीलता: रामू का संघर्ष केवल आर्थिक नहीं है, बल्कि सामाजिक और मानसिक भी है। वह अपने अधिकारों के लिए लड़ता है और समाज में अपनी पहचान बनाने की कोशिश करता है। सामाजिक भेदभाव: कहानी में जातिगत भेदभाव के विभिन्न रूपों को उजागर किया गया है, जैसे कि शिक्षा, रोजगार, और सामाजिक संबंधों में भेदभाव। प्रेरणा: रामू की कहानी अन्य दलित समुदायों के लिए प्रेरणा का स्रोत है, जो अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। कहानी का संदेश: “सुरंग” एक प्रेरणादायक कहानी है जो यह संदेश देती है कि कठिनाइयों और...

हिन्दी साहित्य का आधुनिक काल, प्रवृत्तियॉं, प्रमुख कव‍ि एवं उनकी रचनाऍं

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हिन्दी साहित्य का आधुनिक काल, प्रवृत्तियॉं, प्रमुख कव‍ि एवं उनकी रचनाऍं हिन्दी साहित्य का इतिहास (आधुनिक काल):  तत्कालीन राजनैतिक गतिविधियों से प्रभावित हुआ है। इस काल का प्रारंभ 1850 ईसवी से माना जाता है। यह रीतिकाल के बाद का काल है। इस काल  को हिन्दी साहित्य का सर्वश्रेष्ठ युग माना जा सकता है, जिसमें पद्य के साथ-साथ ही गद्य, निबन्ध, नाटक-उपन्यास, कहानी, समालोचना, तुलनात्मक आलोचना, पत्रकारिता, साहित्य आदि सभी रूपों का समुचित विकास हुआ है  हिन्दी गद्य साहित्य का उद्भव एवं विकास (भारतेन्दु पूर्व हिन्दी गद्य) आधुनिककालीन हिन्दी साहित्य की प्रवृत्तियाँ आधुनिक काल के प्रमुख कवि ब्रजभाषा गद्य की प्रारम्भिक रचनाएँ व उनके रचनाकार सांस्कृतिक जागरण सम्बन्धी संस्थाएँ आधुनिक हिंदी साहित्य का काल विभाजन हिन्दी गद्य साहित्य का उद्भव एवं विकास (भारतेन्दु पूर्व हिन्दी गद्य) हिन्दी गद्य का उद्भव और विकास ब्रजभाषा तथा खड़ी बोली दोनों भाषाओं में हुआ।  इसके विकास में कलकत्ता में 1800 ई. में स्थापित फोर्ट विलियम कॉलेज की प्रमुख भूमिका रही।  लल्लू लाल जी ने 'प्रेमसाग...

नैक का बदलता हुआ स्वरूप -डॉ संघप्रकाश दुड्डे , संगमेश्वर कॉलेज सोलापुर

नैक  का बदलता हुआ स्वरूप -डॉ संघप्रकाश दुड्डे , संगमेश्वर कॉलेज सोलापुर राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (NAAC) ने हाल ही में विश्वविद्यालयों और शिक्षण संस्थानों की ग्रेडिंग प्रक्रिया में महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। अब संस्थानों को ए, बी, सी, और डी कैटेगरी में नहीं रखा जाएगा, बल्कि उन्हें बाइनरी कैटेगरी में रखा जाएगा, यानी केवल “एक्रेडिटेड” या "नॉट एक्रेडिटेड"12। इस बदलाव का उद्देश्य संस्थानों की गुणवत्ता में सुधार लाना और नैक मूल्यांकन प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और सरल बनाना है1. इसके अलावा, नैक ने ऑनलाइन मूल्यांकन प्रक्रिया को भी अपनाया है, जिससे संस्थानों के लिए मूल्यांकन प्रक्रिया में भाग लेना आसान हो गया है2. नैक के नए 10 क्राइटेरिया नैक (राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद) ने हाल ही में अपनी ग्रेडिंग प्रणाली में बदलाव किए हैं। अब विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों की ग्रेडिंग निम्नलिखित 10 नए क्राइटेरिया पर आधारित होगी1: 1संकाय की गुणवत्ता: शिक्षकों की योग्यता, अनुभव और शोध कार्य। 2शिक्षण-शिक्षण प्रक्रिया: शिक्षण विधियों, पाठ्यक्रम और शिक्षण संसाधनों की गु...

Changing face of NAAC - Dr. Sanghprakash Dudde, Sangameshwar College Solapur

Changing face of NAAC - Dr. Sanghprakash Dudde, Sangameshwar College Solapur The National Assessment and Accreditation Council (NAAC) has recently made significant changes in the grading process of universities and educational institutions. Now the institutions will not be placed in A, B, C, and D categories, but will be placed in binary categories, i.e. only “Accredited” or “Not Accredited”12. The purpose of this changeTo improve the quality of institutions and make the NAAC evaluation process more transparent and simple1. Additionally, NAAC has also adopted online assessment process, making it easier for institutions to participate in the assessment process2. NAAC's new 10 criteria  NAAC (National Assessment and Accreditation Council) has recently made changes in its grading system. Now universities andGrading of colleges will be based on the following 10 new criteria: 1Quality of faculty: Qualification, experience and research work of teachers. 2Teaching-learning process: Qualit...

10 New criteria of NAAC and its specialties - Dr. Sangprakash Dudde, Sangameshwar College Solapur

10 new criteria of NAAC and its specialties - Dr. Sangprakash Dudde, Sangameshwar College Solapur  NAAC has made some important changes in the grading process of universities and colleges. According to the new criteria, the following 10 criteria have been set for evaluation: 1Curriculum Aspects: Planning, Development, and Enrichment of Curriculum. 2Teaching-Learning and Evaluation: Teaching and Learningprocess, quality of teachers, and methods of evaluation. 3Research, Innovation, and Extension: Research activities, innovation, and community service programs. 4Infrastructure and Learning Resources: The institution's physical facilities, libraries, IT infrastructure, and other learning resources. 5Student Support and Progression: Support services available to students, career guidance, and student progression. 6Governance,Leadership and management: The administrative structure of the institution, quality of leadership, and management processes. 7Institutional Values ​​and Best Pract...

नैक के 10 नए क्राइटेरिया और उसकी विशेषता -डॉ संघप्रकाश दुड्डे, संगमेश्वर कॉलेज सोलापुर

नैक के 10 नए  क्राइटेरिया  और उसकी विशेषता -डॉ संघप्रकाश दुड्डे, संगमेश्वर कॉलेज सोलापुर  नैक (NAAC) ने विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों की ग्रेडिंग प्रक्रिया में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। नए क्राइटेरिया के अनुसार, मूल्यांकन के लिए निम्नलिखित 10 क्राइटेरिया निर्धारित किए गए हैं: 1करिकुलम एस्पेक्ट्स: पाठ्यक्रम की योजना, विकास, और समृद्धि। 2टीचिंग-लर्निंग और इवैल्यूएशन: शिक्षण और सीखने की प्रक्रिया, शिक्षकों की गुणवत्ता, और मूल्यांकन की पद्धतियाँ। 3रिसर्च, इनोवेशन और एक्सटेंशन: अनुसंधान गतिविधियाँ, नवाचार, और सामुदायिक सेवा कार्यक्रम। 4इंफ्रास्ट्रक्चर और लर्निंग रिसोर्सेज: संस्थान की भौतिक सुविधाएँ, पुस्तकालय, आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर, और अन्य लर्निंग रिसोर्सेज। 5स्टूडेंट सपोर्ट और प्रोग्रेशन: छात्रों के लिए उपलब्ध सहायता सेवाएँ, करियर गाइडेंस, और छात्रों की प्रगति। 6गवर्नेंस, लीडरशिप और मैनेजमेंट: संस्थान की प्रशासनिक संरचना, नेतृत्व की गुणवत्ता, और प्रबंधन की प्रक्रियाएँ। 7इंस्टीट्यूशनल वैल्यूज़ और बेस्ट प्रैक्टिसेज: संस्थान की नैतिकता, सामाजिक जिम्मेदारी, और सर्वोत्तम प्...

आधुनिक काव्य धाराओं का उद्भव और विकास संक्षिप्त में स्पष्ट कीजिए

आधुनिक काव्य धाराओं का उद्भव और विकास आधुनिक हिंदी काव्य का उद्भव और विकास कई महत्वपूर्ण चरणों से गुजरा है। इसे मुख्यतः चार प्रमुख धाराओं में विभाजित किया जा सकता है: भारतेंदु युग (1850-1900) : इस युग को आधुनिक हिंदी साहित्य का प्रारंभिक चरण माना जाता है। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने हिंदी साहित्य को एक नई दिशा दी। इस युग में सामाजिक और राजनीतिक चेतना का उदय हुआ 1 . द्विवेदी युग (1900-1918) : इस युग में महावीर प्रसाद द्विवेदी का महत्वपूर्ण योगदान रहा। उन्होंने साहित्य को नैतिक और सामाजिक सुधार की दिशा में प्रेरित किया। इस युग में खड़ी बोली का प्रयोग बढ़ा 2 . छायावाद (1918-1936) : यह युग हिंदी काव्य का स्वर्णिम युग माना जाता है। जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा और सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जैसे कवियों ने इस युग में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस युग में काव्य में रहस्यवाद, प्रकृति प्रेम और आत्मानुभूति की प्रधानता रही 2 . प्रगतिवाद और प्रयोगवाद (1936-1955) : इस युग में साहित्य में सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर जोर दिया गया। प्रगतिवादी कवियों ने समाज के निम्न वर्ग की समस्याओं को उज...