आधुनिक काव्य धाराओं का उद्भव और विकास संक्षिप्त में स्पष्ट कीजिए
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आधुनिक हिंदी काव्य का उद्भव और विकास कई महत्वपूर्ण चरणों से गुजरा है। इसे मुख्यतः चार प्रमुख धाराओं में विभाजित किया जा सकता है:
भारतेंदु युग (1850-1900): इस युग को आधुनिक हिंदी साहित्य का प्रारंभिक चरण माना जाता है। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने हिंदी साहित्य को एक नई दिशा दी। इस युग में सामाजिक और राजनीतिक चेतना का उदय हुआ1.
द्विवेदी युग (1900-1918): इस युग में महावीर प्रसाद द्विवेदी का महत्वपूर्ण योगदान रहा। उन्होंने साहित्य को नैतिक और सामाजिक सुधार की दिशा में प्रेरित किया। इस युग में खड़ी बोली का प्रयोग बढ़ा2.
छायावाद (1918-1936): यह युग हिंदी काव्य का स्वर्णिम युग माना जाता है। जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा और सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जैसे कवियों ने इस युग में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस युग में काव्य में रहस्यवाद, प्रकृति प्रेम और आत्मानुभूति की प्रधानता रही2.
प्रगतिवाद और प्रयोगवाद (1936-1955): इस युग में साहित्य में सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर जोर दिया गया। प्रगतिवादी कवियों ने समाज के निम्न वर्ग की समस्याओं को उजागर किया। इसके बाद प्रयोगवाद आया, जिसमें भाषा और शैली में नए प्रयोग किए गए3.
नई कविता (1951- अब तक): इस युग में कवियों ने पारंपरिक ढांचे को तोड़कर नए विचारों और शैलियों को अपनाया। नई कविता में व्यक्तिगत अनुभवों और सामाजिक यथार्थ का चित्रण प्रमुख रहा3.
आधुनिक हिंदी काव्य ने समय के साथ-साथ सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों को आत्मसात किया है, जिससे इसकी विविधता और समृद्धि बढ़ी है।
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