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Showing posts from October, 2025

रीतिकालीन कवि घनानंद का परिचय

रीतिकालीन कवि घनानंद का परिचय निम्नलिखित है: 👨‍🎨 कवि घनानंद: परिचय मूल जानकारी · जन्म: 1673 ई. (दिल्ली के निकट) · मृत्यु: 1760 ई. · वास्तविक नाम: घनश्याम दास · भाषा: ब्रजभाषा · विशेषता: "आधुनिक बिहारी" के नाम से प्रसिद्ध 📚 प्रमुख रचनाएँ रचना विषय विशेषता इश्क़ लता विरह भावना प्रेम और विरह की गहन अनुभूति विरह बारीश विरह वेदना बारिश के मौसम में विरह की अभिव्यक्ति सुजान हित सुजान नामक प्रेमिका के लिए व्यक्तिगत प्रेम की अभिव्यक्ति 💔 ऐतिहासिक प्रसंग प्रेम कथा · सुजान नामक एक सुनार की सुंदर पत्नी से प्रेम · मुगल बादशाह मुहम्मद शाह 'रंगीले' के दरबारी थे · सुजान के साथ प्रेम संबंध के कारण दरबार से निष्कासन · अंततः सन्यास लेकर वृंदावन चले गए 🌸 साहित्यिक विशेषताएँ 1. विरह के अद्वितीय चितेरे · विरह वेदना का मार्मिक और यथार्थपूर्ण चित्रण · व्यक्तिगत जीवन की पीड़ा की साहित्यिक अभिव्यक्ति · प्रसिद्ध उदाहरण: "जानी होती हमें अब की बिछुरन, दिए होते हज़ारों लड़ के मन। बीती है सो कहाँ बीती? मन की मन ही में रही सिसकती॥" 2. श्रृंगार रस की नवीन interpretation · भक्ति काल की ...

रीतिकालीन कवि बिहारी का परिचय

रीतिकालीन कवि बिहारी का संक्षिप्त परिचय निम्नलिखित है: 👨‍🎨 कवि बिहारी: परिचय मूल जानकारी · जन्म: 1595 ई. (ग्वालियर के पास बसुआ गोविन्दपुर गाँव) · मृत्यु: 1663 ई. · आश्रयदाता: जयपुर नरेश मिर्जा राजा जयसिंह · भाषा: ब्रजभाषा · प्रसिद्धि: "बिहारी सतसई" के रचयिता 📖 प्रमुख रचनाएँ रचना विशेषता बिहारी सतसई 719 दोहों का संग्रह, श्रृंगार रस प्रधान बिहारी रत्नाकर कुछ विद्वानों के अनुसार यह भी बिहारी की रचना मानी जाती है 🌸 साहित्यिक विशेषताएँ 1. दोहा छंद के महारथी · सिर्फ दोहा छंद में पूरी रचना · अर्थ की गहनता और संक्षिप्तता · प्रसिद्ध उदाहरण: "नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विहंग वर बोल। मधुराई मैं मत्त, भौंर, डार्यौ है अनबोल॥" 2. श्रृंगार रस के सर्वश्रेष्ठ कवि · संयोग श्रृंगार: मिलन की मधुर अनुभूतियाँ · विप्रलंभ श्रृंगार: वियोग की वेदना का मार्मिक चित्रण · नायक-नायिका भेद का सूक्ष्म वर्णन 3. अलंकारों का सहज प्रयोग · उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा का स्वाभाविक प्रयोग · अनुप्रास की मधुर योजना 4. भाषा शैली · कोमलकांत पदावली · लाक्षणिकता और व्यंजना शक्ति · "गागर में सागर" भ...

रीतिकालीन कवि भूषण का परिचय

रीतिकालीन कवि भूषण का परिचय निम्नलिखित है: 👑 कवि भूषण: परिचय मूल जानकारी · जन्म: 1613 ई. (कानपुर जिले का तिकवापुर गाँव) · मृत्यु: 1715 ई. · वास्तविक नाम: ईश्वरवर्मा · भाषा: ब्रजभाषा · विशेषता: शिवाजी और छत्रसाल के प्रसिद्ध आश्रयी कवि 📚 प्रमुख रचनाएँ रचना विषय विशेषता शिवराजभूषण छत्रपति शिवाजी की प्रशस्ति 52 कवित्तों और 52 सवैयों में वीर रस का वर्णन शिवाबावनी शिवाजी की वीरता 52 छंदों में रचित वीर रस प्रधान काव्य छत्रसाल दशक छत्रसाल की वीरता दशक छंद में रचित प्रशस्ति ⚔️ साहित्यिक विशेषताएँ 1. वीर रस के प्रमुख कवि · रीतिकाल में श्रृंगार रस की प्रधानता के बावजूद वीर रस को प्रमुखता दी · युद्ध के मार्मिक और जीवंत चित्र प्रस्तुत किए · प्रसिद्द उदाहरण: "कहा बीर तुम्हारो बखानौं, भूषण भनत मुख से रानौं।  जिनके बाहुबल से बिदारे, सकल महीपति होत बिदारे॥" 2. अलंकार योजना · उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का सहज प्रयोग · वीर रस के अनुरूप अलंकारों का चयन 3. भाषा शैली · ओजपूर्ण ब्रजभाषा का प्रयोग · तत्सम शब्दों की अधिकता · प्रभावशाली और ओजस्वी Expression 🏆 ऐतिहासिक महत्व भूषण की त्रिशू...

रीतिकालीन साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ

रीतिकालीन साहित्य (लगभग 1650-1850 ई.) की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं: 📜 रीतिकालीन साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ 1. रीति/नियमबद्धता का पालन · काव्य-रचना के लिए निश्चित नियमों (लक्षण) का निर्धारण · केशवदास की "रसिकप्रिया", "कविप्रिया" जैसे लक्षण ग्रंथों की रचना · छंद, अलंकार, रस, नायिका भेद आदि के स्पष्ट नियम 2. श्रृंगार रस की प्रधानता · संयोग श्रृंगार: मिलन की स्थिति में नायक-नायिका के प्रेम का वर्णन · विप्रलंभ श्रृंगार: वियोग की स्थिति में विरह-वेदना का चित्रण · राधा-कृष्ण के प्रेम प्रसंगों का श्रृंगारिक वर्णन 3. अलंकारों की भरमार · उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, अनन्वय आदि अलंकारों का अत्यधिक प्रयोग · कभी-कभी अर्थ की अपेक्षा अलंकारों पर अधिक ध्यान 4. नायिका भेद का विस्तृत वर्णन · स्वकीया, परकीया, समकीया नायिका का वर्गीकरण · मुग्धा, मध्या, प्रौढ़ा आदि के भेदों का सूक्ष्म चित्रण · खंडिता, विप्रलब्धा, कलहंतरिता आदि की मनोदशा का वर्णन 5. दरबारी संस्कृति का प्रभाव · राजाओं की प्रशस्ति (वीर रस) का वर्णन · आश्रयदाताओं को प्रसन्न करने के लिए काव्य रचना · भाषा में परिष्कार और ...

रीतिकालीन धार्मिक परिस्थितियों

रीतिकाल में धार्मिक परिस्थितियाँ भक्ति आंदोलन के मूल आध्यात्मिक स्वरूप से हटकर अधिक बाह्याडंबरों और श्रृंगारिकता की ओर झुकी हुई थीं. भक्ति की सरलता और नैतिक मूल्यों का स्थान रूढ़िवादिता, अंधविश्वास और विलासिता ने ले लिया था. ⛪ धार्मिक परिस्थितियों के मुख्य पहलू पहलू रीतिकाल की स्थिति भक्ति का स्वरूप आध्यात्मिक भक्ति का श्रृंगारिक भक्ति में रूपांतरण धार्मिक आचरण बाह्याडंबरों एवं रूढ़ियों की प्रधानता धार्मिक स्थल भ्रष्टाचार एवं अनैतिक गतिविधियों का केंद्र हिंदू धर्म राधा-कृष्ण की लीलाओं का श्रृंगारिक रूप में चित्रण इस्लाम धर्म रूढ़िवादिता में वृद्धि, बाह्य कर्मकांडों तक सीमित · भक्ति के स्वरूप में परिवर्तन: भक्तिकाल में उभरी गहन आध्यात्मिकता रीतिकाल आते-आते कमजोर पड़ गई. राधा और कृष्ण की भक्ति, जो पहले आध्यात्मिक प्रेम का प्रतीक थी, अब शारीरिक प्रेम और श्रृंगार के वर्णन तक सीमित हो गई. कवियों ने भगवान की लीलाओं में अपने विलासी जीवन की छवि देखनी शुरू कर दी. · बाह्याडंबर और अंधविश्वास: इस काल में धर्म का वास्तविक सार लुप्त हो गया और उसका स्थान पाखंड और दिखावे ने ले लिया. लोग नैतिक मूल्यों ...

रीतिकाल की राजनीतिक परिस्थिति

रीतिकाल की राजनीतिक परिस्थितियाँ मुगल साम्राज्य के चरमोत्कर्ष और उसके बाद के पतन की कहानी को दर्शाती हैं। यह युग राजनीतिक अस्थिरता और सांस्कृतिक वैभव का विरोधाभासी दौर था। 🏛️ मुगल साम्राज्य का उत्थान एवं पतन घटना / शासक राजनीतिक प्रभाव शाहजहाँ का शासनकाल मुगल वैभव चरम सीमा पर; कला एवं स्थापत्य का स्वर्णयुग औरंगजेब की नीतियाँ धार्मिक कट्टरता, हिंदू-मुस्लिम संघर्ष, मुगल साम्राज्य की नींव कमजोर औरंगजेब के बाद उत्तराधिकार संघर्ष (1707 ई. के बाद) केंद्रीय सत्ता का कमजोर होना, लगभग 50 वर्षों तक राजनीतिक अस्थिरता 🗺️ क्षेत्रीय राज्यों की स्थिति रीतिकाव्य के मुख्य केंद्र अवध, राजस्थान और बुंदेलखंड जैसे क्षेत्रों में स्थिति केंद्र की तरह ही थी: · अवध के नवाब विलासिता में डूबे रहे और उनका अंत भी मुगलों जैसा ही हुआ · राजस्थान के रजवाड़ों में बहु-पत्नी प्रथा और विलासिता का बोलबाला बढ़ गया था 🎨 राजनीति का साहित्य पर प्रभाव इन राजनीतिक परिस्थितियों का सीधा प्रभाव साहित्य पर पड़ा: · राजाश्रय की प्रणाली: कवि और कलाकार मुगल सम्राटों या देशी राजाओं-नवाबों के दरबारों से जुड़े रहे · श्रृंगारिक काव्य का ...

रीतिकाल का नामकरण

राहुल सांकृत्यायन ने रीतिकाल को 'श्रृंगार काल' नाम दिया था, जबकि हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ने इसे 'रीति काल' कहा। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अपने 'हिंदी साहित्य का इतिहास' में इस काल को 'रीतिकाल' नाम दिया, जो सर्वाधिक प्रचलित और मान्य नाम बन गया। रीतिकाल नामकरण के पीछे मुख्य आधार: 1. रीति (शैली/पद्धति) का प्रधान्य:       इस काल में काव्य-रचना के लिए नियमबद्ध शैली (रीति) का पालन किया जाता था। कवियों ने लक्षण ग्रंथों (काव्य-नियमों की पुस्तकों) की रचना की, जैसे—केशवदास की 'रसिकप्रिया'। 2. श्रृंगार रस की प्रमुखता:       इस युग में श्रृंगार रस के दोनों पक्ष—संयोग और वियोग—का वर्णन हुआ। इसीलिए इसे 'श्रृंगार काल' भी कहा गया। 3. आचार्य शुक्ल का योगदान:       शुक्ल जी ने इस काल के काव्य की मुख्य प्रवृत्ति को 'रीति' (अलंकारों, छंदों और नायिका भेद की परंपरा) माना, इसलिए 'रीतिकाल' नाम उचित समझा। 4. दरबारी संस्कृति का प्रभाव:       इस काल के कवि राजदरबारों से आश्रय पाते थे, इसलिए उन्होंने राजाओं की प्रशंसा और श्रृंगारिक वर्णन को प्रधानता दी...

भगवान बुद्ध के परम् शिष्य आनंद

भगवान बुद्ध के परम शिष्य आनंद का व्यक्तित्व सेवा, निष्ठा और असाधारण स्मरण शक्ति से परिपूर्ण था। वह न केवल बुद्ध के चचेरे भाई थे बल्कि उनके निकटतम सहायक और धर्म के संरक्षक भी थे। आनंद के बारे में मुख्य बातों को एक सारणी में समझा जा सकता है: पहलू विवरण जन्म एवं संबंध बुद्ध के चचेरे भाई (पिता अमृतोदन, बुद्ध के पिता शुद्धोदन के भाई थे)। शिष्य बनने का कारण बुद्ध के प्रति गहरा स्नेह और जीवनभर उनके साथ रहने की व्यक्तिगत शर्त। भूमिका बुद्ध के स्थायी उपस्थाक (अटेंडेंट) के रूप में 25-30 वर्षों तक निःस्वार्थ सेवा। प्रमुख विशेषताएं - तीव्र स्मृति: 84,000 बुद्धवचन कंठस्थ; 'धम्मभंडागारिक' (धर्म का भंडारी) कहलाए。 - मृदु स्वभाव: कोमल हृदय, करुणामय एवं मिलनसार प्रकृति。 - धर्म-कुशल: बुद्ध के संक्षिप्त उपदेशों की सरल व्याख्या करने में निपुण。 ऐतिहासिक योगदान - भिक्षुणी संघ की स्थापना: महाप्रजापति गौतमी सहित स्त्रियों को संघ में प्रवेश दिलवाया。 - प्रथम संगीति (सभा): बुद्ध के उपदेशों का स्मरण करवाकर धर्मसंग्रह में निर्णायक भूमिका。 📜 आनंद का विस्तृत जीवन परिचय आनंद का जन्म शाक्यवंश में हुआ था और वे ...

सन्नति बौद्ध स्थल: एक परिचय-प्रो डॉ संघप्रकाश दुड्डे

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 सन्नति बौद्ध स्थल: एक परिचय सन्नति भारत के कर्नाटक राज्य के कलबुर्गी (गुलबर्गा) जिले में स्थित एक गाँव है, जो भीमा नदी के तट पर अवस्थित है . यह स्थल मुख्य रूप से एक प्राचीन बौद्ध केंद्र के रूप में जाना जाता है। हाल के वर्षों में यहाँ हुई खुदाइयों ने इसे देश के सबसे महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थलों में से एक बना दिया है। शोधकर्ताओं ने इस स्थल की अप्रयुक्त पर्यटन क्षमताओं पर भी प्रकाश डाला है .  ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एवं कालक्रम इस स्थल का समृद्ध इतिहास है, जो लगभग दो हज़ार वर्ष पुराना है . माना जाता है कि इसके विकास के तीन प्रमुख चरण रहे : · मौर्य काल (तीसरी शताब्दी ई.पू.): इस काल में स्तूप के मूल ढाँचे का निर्माण हुआ। · प्रारंभिक सातवाहन काल: इस दौरान स्थल का विस्तार और विकास हुआ। · उत्तर सातवाहन काल (तीसरी शताब्दी ई. तक): इस चरण में स्थल ने अपना वर्तमान स्वरूप प्राप्त किया।  प्रमुख पुरातात्विक खोजें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा 1994 से 2001 के बीच किए गए उत्खनन में कई महत्वपूर्ण अवशे...

Minor Rock Edict of Emperor Ashoka the Great, located in Sasaram, Bihar.

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image displays the  Minor Rock Edict of Emperor Ashoka the Great, located in Sasaram, Bihar . These edicts are rock inscriptions from the early part of Ashoka's reign (269–233 BCE), predating his Major Rock Edicts. The inscription is in the ancient  Brahmi script , which was the primary script used in central and eastern parts of the Mauryan Empire.   Key details about the Sasaram Minor Rock Edict and Ashokan Edicts in general: Location:  The Sasaram edict is found at the foot of the Kaimur hills in Rohtas district, Bihar, near the ancient route from Pataliputra to the Son Valley. Discovery:  It was discovered in 1839 by E.L. Ravenshaw. Significance:  These Minor Rock Edicts, written in Prakrit language using Brahmi script, are among the earliest evidence of writing in the Indian subcontinent. Content:  The edicts express Ashoka's commitment to Dhamma (righteous law or moral precepts) and the propagation of Buddhist principles. Decipherment...