रीतिकाल की राजनीतिक परिस्थिति

रीतिकाल की राजनीतिक परिस्थितियाँ मुगल साम्राज्य के चरमोत्कर्ष और उसके बाद के पतन की कहानी को दर्शाती हैं। यह युग राजनीतिक अस्थिरता और सांस्कृतिक वैभव का विरोधाभासी दौर था।

🏛️ मुगल साम्राज्य का उत्थान एवं पतन

घटना / शासक राजनीतिक प्रभाव
शाहजहाँ का शासनकाल मुगल वैभव चरम सीमा पर; कला एवं स्थापत्य का स्वर्णयुग
औरंगजेब की नीतियाँ धार्मिक कट्टरता, हिंदू-मुस्लिम संघर्ष, मुगल साम्राज्य की नींव कमजोर
औरंगजेब के बाद उत्तराधिकार संघर्ष (1707 ई. के बाद) केंद्रीय सत्ता का कमजोर होना, लगभग 50 वर्षों तक राजनीतिक अस्थिरता

🗺️ क्षेत्रीय राज्यों की स्थिति

रीतिकाव्य के मुख्य केंद्र अवध, राजस्थान और बुंदेलखंड जैसे क्षेत्रों में स्थिति केंद्र की तरह ही थी:

· अवध के नवाब विलासिता में डूबे रहे और उनका अंत भी मुगलों जैसा ही हुआ
· राजस्थान के रजवाड़ों में बहु-पत्नी प्रथा और विलासिता का बोलबाला बढ़ गया था

🎨 राजनीति का साहित्य पर प्रभाव

इन राजनीतिक परिस्थितियों का सीधा प्रभाव साहित्य पर पड़ा:

· राजाश्रय की प्रणाली: कवि और कलाकार मुगल सम्राटों या देशी राजाओं-नवाबों के दरबारों से जुड़े रहे
· श्रृंगारिक काव्य का उत्कर्ष: विलासी शासक वर्ग को प्रसन्न करने के लिए श्रृंगार रस प्रधान काव्य की रचना हुई
· कला को प्रोत्साहन: राजनीतिक अस्थिरता के बावजूद, शासक वर्ग द्वारा कला, चित्रकला, वास्तुकला और संगीत को संरक्षण मिला

💎 संक्षेप में

रीतिकाल की राजनीतिक परिस्थितियाँ एक ओर मुगल साम्राज्य के विघटन और क्षेत्रीय अशांति को दर्शाती हैं, तो दूसरी ओर दरबारी संस्कृति और कलात्मक वैभव को जन्म देती हैं। यही राजनीतिक पृष्ठभूमि रीतिकाव्य की श्रृंगारिक प्रवृत्ति और लक्षण ग्रंथों के निर्माण का मुख्य आधार बनी।

क्या आप रीतिकाल की सामाजिक या धार्मिक परिस्थितियों के बारे में भी जानना चाहेंगे?

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