रीतिकालीन साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ

रीतिकालीन साहित्य (लगभग 1650-1850 ई.) की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

📜 रीतिकालीन साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ

1. रीति/नियमबद्धता का पालन

· काव्य-रचना के लिए निश्चित नियमों (लक्षण) का निर्धारण
· केशवदास की "रसिकप्रिया", "कविप्रिया" जैसे लक्षण ग्रंथों की रचना
· छंद, अलंकार, रस, नायिका भेद आदि के स्पष्ट नियम

2. श्रृंगार रस की प्रधानता

· संयोग श्रृंगार: मिलन की स्थिति में नायक-नायिका के प्रेम का वर्णन
· विप्रलंभ श्रृंगार: वियोग की स्थिति में विरह-वेदना का चित्रण
· राधा-कृष्ण के प्रेम प्रसंगों का श्रृंगारिक वर्णन

3. अलंकारों की भरमार

· उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, अनन्वय आदि अलंकारों का अत्यधिक प्रयोग
· कभी-कभी अर्थ की अपेक्षा अलंकारों पर अधिक ध्यान

4. नायिका भेद का विस्तृत वर्णन

· स्वकीया, परकीया, समकीया नायिका का वर्गीकरण
· मुग्धा, मध्या, प्रौढ़ा आदि के भेदों का सूक्ष्म चित्रण
· खंडिता, विप्रलब्धा, कलहंतरिता आदि की मनोदशा का वर्णन

5. दरबारी संस्कृति का प्रभाव

· राजाओं की प्रशस्ति (वीर रस) का वर्णन
· आश्रयदाताओं को प्रसन्न करने के लिए काव्य रचना
· भाषा में परिष्कार और औपचारिकता

6. भाषा शैली

· ब्रजभाषा का सर्वाधिक प्रयोग
· मुहावरों और लोकोक्तियों का सटीक प्रयोग
· चित्रात्मक और लालित्यपूर्ण अभिव्यक्ति

✍️ प्रमुख रीतिकार एवं उनकी विशेषताएँ

कवि प्रमुख रचनाएँ विशेषता
केशवदास रसिकप्रिया, कविप्रिया रीति सिद्धांतों का प्रतिपादन
बिहारी बिहारी सतसई दोहों में गागर में सागर
घनानंद विरह बारीश, इश्क़ लता विरह वेदना का मार्मिक चित्रण
देव भावविलास, अष्टयाम अलंकार योजना में निपुण
पद्माकर पद्माभरण, जगद्विनोद श्रृंगार के दोनों रूपों में प्रवीण

⭐ सकारात्मक पहलू

· काव्य शास्त्र का सुव्यवस्थित विकास
· भाषा का परिष्कार और लालित्य
· मानव मन के सूक्ष्म भावों का चित्रण

⚠️ सीमाएँ

· जीवन की वास्तविकताओं से दूरी
· कृत्रिमता और बनावटीपन
· सामाजिक चेतना का अभाव
· व्यक्तिगत प्रेम तक सीमितता

ये विशेषताएँ रीतिकाल को हिंदी साहित्य का एक ऐसा युग बनाती हैं जहाँ काव्य-कला का परिष्कार तो हुआ, पर साथ ही जीवन की सहज अभिव्यक्ति कुछ हद तक अवरुद्ध भी हुई।

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