रीतिकालीन कवि बिहारी का परिचय

रीतिकालीन कवि बिहारी का संक्षिप्त परिचय निम्नलिखित है:

👨‍🎨 कवि बिहारी: परिचय

मूल जानकारी

· जन्म: 1595 ई. (ग्वालियर के पास बसुआ गोविन्दपुर गाँव)
· मृत्यु: 1663 ई.
· आश्रयदाता: जयपुर नरेश मिर्जा राजा जयसिंह
· भाषा: ब्रजभाषा
· प्रसिद्धि: "बिहारी सतसई" के रचयिता

📖 प्रमुख रचनाएँ

रचना विशेषता
बिहारी सतसई 719 दोहों का संग्रह, श्रृंगार रस प्रधान
बिहारी रत्नाकर कुछ विद्वानों के अनुसार यह भी बिहारी की रचना मानी जाती है

🌸 साहित्यिक विशेषताएँ

1. दोहा छंद के महारथी

· सिर्फ दोहा छंद में पूरी रचना
· अर्थ की गहनता और संक्षिप्तता
· प्रसिद्ध उदाहरण:

"नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विहंग वर बोल।
मधुराई मैं मत्त, भौंर, डार्यौ है अनबोल॥"

2. श्रृंगार रस के सर्वश्रेष्ठ कवि

· संयोग श्रृंगार: मिलन की मधुर अनुभूतियाँ
· विप्रलंभ श्रृंगार: वियोग की वेदना का मार्मिक चित्रण
· नायक-नायिका भेद का सूक्ष्म वर्णन

3. अलंकारों का सहज प्रयोग

· उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा का स्वाभाविक प्रयोग
· अनुप्रास की मधुर योजना

4. भाषा शैली

· कोमलकांत पदावली
· लाक्षणिकता और व्यंजना शक्ति
· "गागर में सागर" भरने की क्षमता

🏰 ऐतिहासिक प्रसंग

राजा जयसिंह से संबंध

· जयपुर के राजा जयसिंह के दरबारी कवि
· कहा जाता है कि राजा ने बिहारी से एक दोहे में सभी रसों का वर्णन करने को कहा था
· बिहारी का प्रसिद्ध दोहा:

"सठ सवै साँची मानै, सलिल सीचै आप।
तिय तोसे ना हियो जुरै, यह अचरजो आप॥"

🌟 काव्यगत विशेषताएँ

1. अर्थ की गाम्भीर्य: थोड़े में बहुत कहने की कला
2. भावों की सूक्ष्मता: मानव मन के गूढ़ भावों का चित्रण
3. चित्रात्मकता: शब्दों में चित्र उकेरने की क्षमता
4. नैतिकता: दोहों में नैतिक शिक्षा का समावेश

💫 मूल्यांकन

बिहारी रीतिकाल के सर्वश्रेष्ठ कवियों में गिने जाते हैं। उन्होंने मात्र 719 दोहों में इतना कुछ कह दिया कि "बिहारी सतसई" हिंदी साहित्य का एक कालजयी ग्रंथ बन गया। उनकी विशेषता थी - अल्पशब्दों में गूढ़ अर्थ की अभिव्यक्ति।

महत्वपूर्ण तथ्य:

· बिहारी ने केवल एक ही ग्रंथ से अमरत्व प्राप्त किया
· उनके दोहे आज भी लोकप्रिय हैं
· श्रृंगार रस के चितेरे के रूप में प्रसिद्ध

बिहारी का काव्य रीतिकालीन साहित्य की एक अमूल्य निधि है जो हिंदी साहित्य को गौरव प्रदान करती है।

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