रीतिकालीन धार्मिक परिस्थितियों

रीतिकाल में धार्मिक परिस्थितियाँ भक्ति आंदोलन के मूल आध्यात्मिक स्वरूप से हटकर अधिक बाह्याडंबरों और श्रृंगारिकता की ओर झुकी हुई थीं. भक्ति की सरलता और नैतिक मूल्यों का स्थान रूढ़िवादिता, अंधविश्वास और विलासिता ने ले लिया था.

⛪ धार्मिक परिस्थितियों के मुख्य पहलू

पहलू रीतिकाल की स्थिति
भक्ति का स्वरूप आध्यात्मिक भक्ति का श्रृंगारिक भक्ति में रूपांतरण
धार्मिक आचरण बाह्याडंबरों एवं रूढ़ियों की प्रधानता
धार्मिक स्थल भ्रष्टाचार एवं अनैतिक गतिविधियों का केंद्र
हिंदू धर्म राधा-कृष्ण की लीलाओं का श्रृंगारिक रूप में चित्रण
इस्लाम धर्म रूढ़िवादिता में वृद्धि, बाह्य कर्मकांडों तक सीमित

· भक्ति के स्वरूप में परिवर्तन: भक्तिकाल में उभरी गहन आध्यात्मिकता रीतिकाल आते-आते कमजोर पड़ गई. राधा और कृष्ण की भक्ति, जो पहले आध्यात्मिक प्रेम का प्रतीक थी, अब शारीरिक प्रेम और श्रृंगार के वर्णन तक सीमित हो गई. कवियों ने भगवान की लीलाओं में अपने विलासी जीवन की छवि देखनी शुरू कर दी.
· बाह्याडंबर और अंधविश्वास: इस काल में धर्म का वास्तविक सार लुप्त हो गया और उसका स्थान पाखंड और दिखावे ने ले लिया. लोग नैतिक मूल्यों को भूलकर केवल बाहरी कर्मकांडों, व्रत-पूजा और चढ़ावे आदि को ही धर्म समझने लगे. अंधविश्वास के कारण लोग संतों और पीर-फकीरों के चक्कर में फंसे रहते थे, जो अक्सर उनका शोषण करते थे.
· धार्मिक स्थलों की स्थिति: मंदिर और मठ जैसे धार्मिक स्थल भ्रष्टाचार और अनैतिक गतिविधियों के केंद्र बन गए. इन स्थानों पर नाच-गाने और विलासिता के आयोजन होने लगे, जिन्हें भक्ति का नाम दिया जाता था. धार्मिक गुरु अक्सर राजाओं और धनिकों से गुरु-दीक्षा के लिए धन प्राप्त करने लगे थे.

📜 साहित्य पर प्रभाव

इन धार्मिक परिस्थितियों का सीधा प्रभाव रीतिकाल के साहित्य पर पड़ा:

· श्रृंगार रस की प्रधानता: साहित्य में श्रृंगार रस का चरमोत्कर्ष हुआ. राधा-कृष्ण के प्रेम का चित्रण अब आध्यात्मिक न रहकर ऐन्द्रिक और शारीरिक हो गया.
· भक्ति का उद्देश्य परिवर्तन: भक्ति साहित्य मनोरंजन और आश्रयदाताओं को प्रसन्न करने का साधन बन गया. भक्ति भावना का स्थान चमत्कार और अलंकारिकता ने ले लिया.


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