रीतिकाल का नामकरण

राहुल सांकृत्यायन ने रीतिकाल को 'श्रृंगार काल' नाम दिया था, जबकि हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ने इसे 'रीति काल' कहा। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अपने 'हिंदी साहित्य का इतिहास' में इस काल को 'रीतिकाल' नाम दिया, जो सर्वाधिक प्रचलित और मान्य नाम बन गया।

रीतिकाल नामकरण के पीछे मुख्य आधार:

1. रीति (शैली/पद्धति) का प्रधान्य:
      इस काल में काव्य-रचना के लिए नियमबद्ध शैली (रीति) का पालन किया जाता था। कवियों ने लक्षण ग्रंथों (काव्य-नियमों की पुस्तकों) की रचना की, जैसे—केशवदास की 'रसिकप्रिया'।
2. श्रृंगार रस की प्रमुखता:
      इस युग में श्रृंगार रस के दोनों पक्ष—संयोग और वियोग—का वर्णन हुआ। इसीलिए इसे 'श्रृंगार काल' भी कहा गया।
3. आचार्य शुक्ल का योगदान:
      शुक्ल जी ने इस काल के काव्य की मुख्य प्रवृत्ति को 'रीति' (अलंकारों, छंदों और नायिका भेद की परंपरा) माना, इसलिए 'रीतिकाल' नाम उचित समझा।
4. दरबारी संस्कृति का प्रभाव:
      इस काल के कवि राजदरबारों से आश्रय पाते थे, इसलिए उन्होंने राजाओं की प्रशंसा और श्रृंगारिक वर्णन को प्रधानता दी।

वैकल्पिक नाम और विवाद:

· 'श्रृंगार काल': राहुल सांकृत्यायन ने इस नाम का प्रयोग किया, क्योंकि श्रृंगार रस की प्रधानता थी।
· 'अलंकार काल': कुछ विद्वानों ने अलंकारों की अधिकता के कारण यह नाम सुझाया।
· द्विवेदी जी का मत: हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ने इस काल को 'रीति काल' कहा और इसकी रूढ़िवादिता पर टिप्पणी की।

अंततः आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा दिया गया 'रीतिकाल' नाम हिंदी साहित्य के इतिहास में मान्यता प्राप्त कर चुका है।

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