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Showing posts from June, 2021

मानव मन में ज्ञान की जागृति शायरी से आती है- डॉ रतन कुमार

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मानव मन में ज्ञान की जागृति शायरी से आती है डॉ रतन कुमार संगमेश्वर कॉलेज सोलापुर स्वायत्तता हिंदी विभाग तथा हिंदी विकास मंच सोलापुर से आयोजित राष्ट्रीय व्याख्यानमाला में डॉ रतन कुमार बेंगलुरु कर्नाटक से शायरी के विविध आयाम इस विषय पर उन्होंने आज का व्याख्यान दिया उस समय उन्होंने इस वाक्य को कहा कि मानव मन में ज्ञान की जागृति शायरी से आती है मुख्य रूप से शेर गजल रुबाई कितना कसीदा मसनवी नजमा शायरी के प्रकारों से शायरी लिखी जाती है डॉ रतन कुमार ने शायरी का रूप दर्शकों के सामने रखते हुए कहा कि शायरी जो है फारसी से हिंदी साहित्य में आई है शायरी में किसी की प्रशंसा की जाती है कुछ शायरी के द्वारा सामाजिक संदेश दिया जाता है कुछ शायरी में महत्वपूर्ण विचार दिए जाते हैं जीवन का मूल्य उसमें दिखाई दिया जाता है शायरी के द्वारा मनुष्य का जीवन बदल जाता है शायरी के लिए बहुत सारी मेहनत की जरूरी होती है अलंकारिक ताकि दृष्टि से छंद की दृष्टि से भी उस में लिखना बहुत कुछ आवश्यक होता है उर्दू की हर कविता जो नजमा कही जाती है वर्तमान समय में इसका प्रयोग जो है गजल को जोड़कर बाकी कविता के लिए किया जाता है मुक्त ...

करुण वाणी का नाम गजल है-डॉ आरिफ महात

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करुण वाणी का नाम गजल है -डॉ. आरिफ महात   हिंदी साहित्य मंडल संगमेश्वर कॉलेज हिंदी विभाग तथा हिंदी विकास मंच सोलापुर आयोजित राष्ट्रीय व्याख्यानमाला का चतुर्थ पुष्प प्रकट करते हुए डॉक्टर आरिफ महात जी ने इस प्रकार के विचार प्रकट किए उन्होंने कहा कि गजल अरबी से हिंदी में आई हुई है फारसी से आई है 13वीं शताब्दी में फारसी कवियों ने इसे प्रचलित किया है हिंदी की ग़ज़ल की परंपरा जो है माशूका की बात से आरंभ होती है हिंदी ने उसे सामाजिकता के साथ जोड़ दिया है इसे हिंदी में सबसे पहले दुष्यंत कुमार ने हमारे सामने उपस्थित करने का काम किया है दुष्यंत कुमार कहते हैं सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही हो कहीं भी लेकिन आग जलनी चाहिए इस ग़ज़ल को लेकर बहुत ही बारीकी से आरिफ महत्व जी ने ग़ज़ल की परिभाषा को दर्शकों के सामने रखा गजल फारसी और उर्दू की श्रृंगार कविता है गजल में समर्पण का भाव होता है गजल माशूका को बातचीत का माध्यम है आश...

नाटक हमें दुख से मुक्त करता है -इंदु पदमनाभन चेन्नई

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नाटक हमें दुख से मुक्त करता है इंदु पदमनाभन चेन्नई नाटक विधा के उपलक्ष में हमारे बीच में चेन्नई से इंदु पद्मनाभन ने नाटक का उद्भव और विकास के संदर्भ में अपनी बात हमारे सामने रखी साथ ही साथ नाटक का रंगमंच किस प्रकार से होता है नाटक को किस प्रकार से रंगमंच है रूप दिया जाता है नाटक के द्वारा दर्शक और नाटककार के बीच में जो भाव होता है उसे उन्होंने हमारे सामने रखने का प्रयास किया है जैसे महाभारत हो रामायण हो इनमें नाटक का रूप जब हमारे सामने उपस्थित होता है तो दर्शक और कलाकार के बीच में एक तादात में भाव प्रकट होता है यह तादात में भाव ही समरसता का भाव हमारे बीच में प्रकट होता है और इस तादात में भाव को नाटककार अपनी भाषा शैली के द्वारा अपनी संवाद कौशल के द्वारा और ऐतिहासिकता के द्वारा उसे प्रकट करने का काम करता है नाटककार नाटक लिखता जरूर है लेकिन उसे जब वह रंगमंच मंच पर देखता है तो भाव विभोर हो जाता है दर्शक नाटक को देख कर अपनी आंखों में आंसू बहा लेते हैं यह नाटककार की सबसे बड़ी विशेषता होती है एक सफल नाटककार अपने नाटकों के द्वारा दर्शकों के बीच म...

संत कबीर के दोहों में विद्रोही भावना है डॉ पंडित बन्ने

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 संत कबीर के दोहों में विद्रोही भावना है डॉ पंडित बन्ने   हिंदी विकास मंच तथा संगमेश्वर महाविद्यालय सोलापुर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय व्याख्यानमाला का आयोजन 10 दिवसीय व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया है इस व्याख्यान के दूसरे पुष्पा में डॉ पंडित बन्ने जी बोल रहे थे सबसे पहले हिंदी विभाग प्रमुख डॉक्टर संग प्रकाश दुड्डे जी ने अतिथि का परिचय और प्रस्तावित किया उसके पश्चात इस महत्वपूर्ण विषय पर अपनी बात रखते हुए डॉ पंडित जी ने संत कबीर के सामाजिक संदर्भ में किस प्रकार का उन्होंने अपना पूरा का पूरा जीवन विद्रोही भाव से लेकर अन्याय अत्याचार तथा जाती पाती के विरोध में अपनी सारी शक्ति लगाए कबीर जो है मानव जाति के कल्याण के लिए मनुष्यता के कल्याण के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया कबीर अनपढ़ थे पढ़े-लिखे नहीं थे फिर भी उन्होंने जो ज्ञान प्राप्त किया वह ज्ञान हर प्रांत में घूमकर साधुओं के सत्संग में घूम कर उन्होंने अपना ज्ञान जो है विकसित किया संत कबीर ने जाति पाती पूछो नहीं कोई हरि को भजे सो हरि का होई जाति न पूछो साधु की पूछ लीजिए ज्ञान मोल करो तलवार का पड़ा रहन ...

कहानी में वेदना और आत्मानुभूति होनी चाहिए-डॉ विकास सिंग

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कहानी में वेदना और आत्मानुभूति होनी चाहिए डॉ विकास सिंह संगमेश्वर महाविद्यालय हिंदी विभाग तथा हिंदी विकास मंच सोलापुर आयोजित 10 दिवसीय राष्ट्रीय व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया है इस व्याख्यानमाला में प्रथम पुष्प का प्रकाशन डॉक्टर विकास सिंह ने आज किया उस समय उन्होंने इस प्रकार के अपने विचार रखें उन्होंने कहा कि कहानी लेखन में वेदना और आत्मानुभूति का आत्मानुभूति का होना बहुत ही आवश्यक है साहित्य के द्वारा मनुष्य की अनेक प्रकार की पीड़ा को प्रकट किया जाता है साहित्य शास्त्र अलग होता है और साहित्य के द्वारा मनुष्य की पीड़ा उसमें प्रकट होती रहती है सबसे पहले काव्य कहानी लिखी जाती है बाद में उसका साहित्य शास्त्र लिखा जाता है इस संदर्भ में बहुत सारी जानकारी डॉक्टर विकास सिंह ने अपने व्याख्यान में प्रकट कि वे आगे बोलते हुए उन्होंने अपनी बात रखी प्राचीन साहित्यकारों ने अपने साहित्य में जो धाराएं उसी को आगे बढ़ाने का काम आज के साहित्यकार कर रहे हैं लेकिन आज के साहित्य में जैसे कि दलित साहित्य हो किन्नर विमर्श हो आदिवासी विमर्श हो चाहे अन्य विमर्श हो जो प्रस्तावित साहित्य के अलग अपनी विचारधारा ...