संत कबीर के दोहों में विद्रोही भावना है डॉ पंडित बन्ने

 संत कबीर के दोहों में विद्रोही भावना है डॉ पंडित बन्ने 
 हिंदी विकास मंच तथा संगमेश्वर महाविद्यालय सोलापुर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय व्याख्यानमाला का आयोजन 10 दिवसीय व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया है इस व्याख्यान के दूसरे पुष्पा में डॉ पंडित बन्ने जी बोल रहे थे सबसे पहले हिंदी विभाग प्रमुख डॉक्टर संग प्रकाश दुड्डे जी ने अतिथि का परिचय और प्रस्तावित किया उसके पश्चात इस महत्वपूर्ण विषय पर अपनी बात रखते हुए डॉ पंडित जी ने संत कबीर के सामाजिक संदर्भ में किस प्रकार का उन्होंने अपना पूरा का पूरा जीवन विद्रोही भाव से लेकर अन्याय अत्याचार तथा जाती पाती के विरोध में अपनी सारी शक्ति लगाए कबीर जो है मानव जाति के कल्याण के लिए मनुष्यता के कल्याण के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया कबीर अनपढ़ थे पढ़े-लिखे नहीं थे फिर भी उन्होंने जो ज्ञान प्राप्त किया वह ज्ञान हर प्रांत में घूमकर साधुओं के सत्संग में घूम कर उन्होंने अपना ज्ञान जो है विकसित किया संत कबीर ने जाति पाती पूछो नहीं कोई हरि को भजे सो हरि का होई जाति न पूछो साधु की पूछ लीजिए ज्ञान मोल करो तलवार का पड़ा रहन दो म्यान इस प्रकार से अपने दोहों में सामाजिक भाव को उन्होंने प्रकट किया ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय औरन को शीतल करे आप भी शीतल होय इस प्रकार की भाषा भी उन्होंने अपने दोहों में प्रकट की ईश्वर निर्गुण निराकार का रूप उन्होंने अपने पदों में प्रकट किया निर्गुण वादी ईश्वर की भावना उन्होंने अपने पदों में प्रकट की गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय बलिहारी जो गोविंद दियो बताए गुरु और ईश्वर मेरे सामने खड़े होते हैं तो सबसे पहले मैं गुरु का चरण स्पर्श करूंगा क्योंकि गुरु ही मुझे ईश्वर तक ले जाने वाला सबसे बड़ा मार्ग है यह भाव कबीर ने अपने दोहों में रखी इसलिए कभी जो है मनुष्य और ईश्वर के बीच एक ऐसा अच्छा रास्ता है जो हमें मनुष्यता की ओर ले जाने वाला एक मार्ग है कबीर युग दृष्टा थे सत्यवादी थे अंधविश्वास पाखंड के खिलाफ वे आजीवन अपनी वाणी के द्वारा अपने शब्दों के द्वारा अपने बंद खोरी बोल के साथ अन्याय अत्याचार का विरोध करते रहे उन्हें किसी भी प्रकार का अन्याय और अत्याचार पसंद नहीं था वह लगातार जीवन के मूल्यों के प्रति जीवन के सत्य के आधार पर लोगों के मन में यह भाव प्रकट करते रहे इसलिए कबीर समाज में एक दूसरे के प्रति भाईचारा का रिश्ता बढ़ाने वाले समाज में एक दूसरे के प्रति सहानुभूति करुणा प्रेम ममता का भाव बढ़ाने वाले मानवतावादी विचारधारा को प्रचारित करने वाले विषय मतावादी मूल्यों का विरोध करने वाले एक विद्रोही संत थे इस प्रकार की विचारधारा डॉ पंडित बन्ने  जी ने इस व्याख्यान माला का द्वितीय पुष्प प्रस्तुत करते हुए अपनी वाणी को उन्होंने सबके सम्मुख प्रस्तुत किया इस व्याख्यानमाला में बहुत सारे लोग उपस्थित थे बहुत सारे छात्रों ने अपनी विचारधारा को लाभान्वित करने का प्रयास किया इसलिए कबीर की विचारधारा आज भी प्रासंगिक है कल भी प्रासंगिक रहेगी और आने वाले सदियों तक कभी हमारे बीच में प्रासंगिक रहेंगे उनकी विचारधारा कभी समाप्त नहीं होगी सत्यवादी विचारधारा कभी समाप्त नहीं होती इसलिए कबीर की वाणी को समझना है तो कबीर का विचार आत्मा अनुभव कबीर की विचारधारा को समझना बहुत ही आवश्यक है इस प्रकार की विचारधारा भी डॉ पंडित बन्ने  जी ने सबके सामने प्रस्तुत की इस कार्यक्रम का सूत्र संचालन शिव जहागीरदार ने किया और आभार प्रकट अन प्राध्यापक डॉ बताले सर जी ने किया इस समय प्राध्यापक डॉ दादासाहेब खांडेकर विभिन्न विश्वविद्यालय के प्राध्यापक गण छात्र-छात्राएं बड़ी संख्या में उपस्थित थे /

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