कहानी में वेदना और आत्मानुभूति होनी चाहिए-डॉ विकास सिंग

कहानी में वेदना और आत्मानुभूति होनी चाहिए डॉ विकास सिंह संगमेश्वर महाविद्यालय हिंदी विभाग तथा हिंदी विकास मंच सोलापुर आयोजित 10 दिवसीय राष्ट्रीय व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया है इस व्याख्यानमाला में प्रथम पुष्प का प्रकाशन डॉक्टर विकास सिंह ने आज किया उस समय उन्होंने इस प्रकार के अपने विचार रखें उन्होंने कहा कि कहानी लेखन में वेदना और आत्मानुभूति का आत्मानुभूति का होना बहुत ही आवश्यक है साहित्य के द्वारा मनुष्य की अनेक प्रकार की पीड़ा को प्रकट किया जाता है साहित्य शास्त्र अलग होता है और साहित्य के द्वारा मनुष्य की पीड़ा उसमें प्रकट होती रहती है सबसे पहले काव्य कहानी लिखी जाती है बाद में उसका साहित्य शास्त्र लिखा जाता है इस संदर्भ में बहुत सारी जानकारी डॉक्टर विकास सिंह ने अपने व्याख्यान में प्रकट कि वे आगे बोलते हुए उन्होंने अपनी बात रखी प्राचीन साहित्यकारों ने अपने साहित्य में जो धाराएं उसी को आगे बढ़ाने का काम आज के साहित्यकार कर रहे हैं लेकिन आज के साहित्य में जैसे कि दलित साहित्य हो किन्नर विमर्श हो आदिवासी विमर्श हो चाहे अन्य विमर्श हो जो प्रस्तावित साहित्य के अलग अपनी विचारधारा कल्पनिकता को नकारते हुए आत्मानुभूति अपनी मन की अनुभूति को साहित्य के द्वारा प्रकट करने का काम इन साहित्य विधाओं के द्वारा किया जाता है साहित्य लिखते समय साहित्यकार को एक बात याद में रखनी चाहिए कि साहित्य में जो भी लिखा जाता है वह मन को प्रसन्नता प्रकट करने वाला प्रकट करने वाला साहित्य हो मन को प्रसन्न करने वाली बात उसमें हो साहित्य का अंत सुकांतो हो कहानी का अंत सुकांतो हो जैसे कि आज भी हिंदी साहित्य में बहुत सारी सुखांत कहानियां लिखी जा रही है सुकांत कहानियां ही मनुष्य को भाती है उसमें बहुत सारा जीवन का रहस्य होता है कहानी लेखन इस विषय पर अपनी बात रखते हुए उन्होंने कहा कि कहानी सरल होनी चाहिए कहानी में सहरसा होनी चाहिए कहानी में बहुत गम में होना चाहिए कहानी का उद्देश्य स्पष्ट होना चाहिए कहानी में एक ऐसा पात्र जो कहानी को आगे ले जाए आगे ले जाने वाला हो जो की कहानी की यथार्थता को हमारे बीच में प्रस्तुत करने वाला एक पात्र हो कहानी बड़ी नहीं होनी चाहिए कहानी छोटी होनी चाहिए और उस छोटी कहानी में बहुत सारा रहस्य होना चाहिए कहानी में रचनात्मकता अगर होती है तो लोग कहानी पढ़ने के लिए मजबूर हो जाते हैं इस बात की ओर भी डॉक्टर विकास सिंह ने अपनी बात अधूरे की थी कहानी लेखन के विविध आयाम को भी उन्होंने छात्रों के सामने प्रस्तुत किया कहानी लिखते समय हमारा मन प्रसन्न होना चाहिए कहानी लिखते समय हमारे मन में अन्य कहानी में एक अर्थबोध हो अर्थ स्पष्ट हो कहानी का अलग सा माहौल हो कहानी पढ़ते समय कहानी मेरी है ऐसा भाव हो इस प्रकार की विचारधारा उन्होंने अपने इस व्याख्यान में रखी इस व्याख्यानमाला में बिहार से पंजाब विश्वविद्यालय से दरभंगा से अलग-अलग प्रांतों से अलग-अलग विश्वविद्यालयों से बहुत सारे छात्र उपस्थित रहे इस कार्यक्रम में सबसे पहले हिंदी विभाग प्रमुख डॉक्टर संग प्रकाश धुर्वे जी ने अतिथि का स्वागत किया प्रास्ताविक और उनका परिचय उन्होंने करके करके दिया सूत्रसंचालन डॉ दादा साहब खांडेकर जी ने किया और आभार प्रकट अन डॉक्टर सतीश पन्हालकर जी ने किया

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