नाटक हमें दुख से मुक्त करता है -इंदु पदमनाभन चेन्नई
नाटक हमें दुख से मुक्त करता है इंदु पदमनाभन चेन्नई नाटक विधा के उपलक्ष में हमारे बीच में चेन्नई से इंदु पद्मनाभन ने नाटक का उद्भव और विकास के संदर्भ में अपनी बात हमारे सामने रखी साथ ही साथ नाटक का रंगमंच किस प्रकार से होता है नाटक को किस प्रकार से रंगमंच है रूप दिया जाता है नाटक के द्वारा दर्शक और नाटककार के बीच में जो भाव होता है उसे उन्होंने हमारे सामने रखने का प्रयास किया है जैसे महाभारत हो रामायण हो इनमें नाटक का रूप जब हमारे सामने उपस्थित होता है तो दर्शक और कलाकार के बीच में एक तादात में भाव प्रकट होता है यह तादात में भाव ही समरसता का भाव हमारे बीच में प्रकट होता है और इस तादात में भाव को नाटककार अपनी भाषा शैली के द्वारा अपनी संवाद कौशल के द्वारा और ऐतिहासिकता के द्वारा उसे प्रकट करने का काम करता है नाटककार नाटक लिखता जरूर है लेकिन उसे जब वह रंगमंच मंच पर देखता है तो भाव विभोर हो जाता है दर्शक नाटक को देख कर अपनी आंखों में आंसू बहा लेते हैं यह नाटककार की सबसे बड़ी विशेषता होती है एक सफल नाटककार अपने नाटकों के द्वारा दर्शकों के बीच में एक अच्छा रिश्ता बनाता है नाटक नाटक ना होकर जीवन का अंग बन जाता है और नाटककार इस दिशा में सफल होता है इसे इंदु पद्मनाभन ने हमारे सामने रखने का प्रयास किया इंदू पदमनाभन अपने शोध कार्य में नाटक को लेकर अपना शोध कार्य कर रही है इसे हमारे सामने रखने का प्रयास पूनम ने किया साथ ही साथ प्राचीन नाटक कारों का भी संदर्भ उन्होंने हमारे जैसे अश्वघोष हो साथ ही साथ प्राचीन नाटककार हो इन्ना नाटककार ओने हमारे बीच में किस प्रकार का संदेश दिया है किस प्रकार की चेतना लोगों के बीच में प्रकट की है इसे स्पष्ट करने का काम इन साहित्यकारों ने किया है भरतमुनि का नाट्यशास्त्र हो भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र के द्वारा नाटक की व्याख्या की है नाटक को किस प्रकार से खेला जाता है नाटक को किस प्रकार से दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया जाता है इसका एक शास्त्र नाट्यशास्त्र के रूप में भरत मुनि ने लिखा और उसी को आदर्श मानकर आज के जितने भी सारे नाटक है वह लिखे जा रहे हैं जैसे कि भीष्म साहनी ने नाटक लिखा है कबीरा खड़ा बाजार में इस नाटक के द्वारा हमारे बीच में कबीर खड़े हैं और कबीर हमारे साथ संवाद कर रहे हैं इस प्रकार का भाव हमें दिखाई देता है कबीर हमें दिखाई देते हैं कभी हमारे साथ संवाद करते हैं प्राचीन सभ्यता परंपरा जातीयता कर्मकांड को कबीर किस प्रकार से विरोध करते हैं और अपने अन्य साथियों के द्वारा समाज का परिवर्तन किस प्रकार से चाहते हैं इसे भीष्म साहनी ने नाटक के द्वारा स्पष्ट करने का प्रयास किया है इसे भी उन्होंने बहुत ही अच्छे ढंग से समझाने का प्रयास किया इस कार्यक्रम का कार्यक्रम का सूत्र संचालन शिवम जहागीरदार ने किया हिंदी विभाग प्रमुख डॉक्टर संघप्रकाश दुड्डे जी ने वक्ता का परिचय करके दिया डॉ बताले सर जी ने सभी महानुभव का आभार प्रकट किया इस समय डॉ विजयकुमार मुलिमनी , बिहार उत्तर प्रदेश पंजाब मध्य प्रदेश पूरे भारतवर्ष से शोध छात्र उपस्थित थे साथ ही साथ प्राध्यापक गण भी बड़ी संख्या में उपस्थित थे
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