करुण वाणी का नाम गजल है-डॉ आरिफ महात

करुण वाणी का नाम गजल है -डॉ. आरिफ महात  हिंदी साहित्य मंडल संगमेश्वर कॉलेज हिंदी विभाग तथा हिंदी विकास मंच सोलापुर आयोजित राष्ट्रीय व्याख्यानमाला का चतुर्थ पुष्प प्रकट करते हुए डॉक्टर आरिफ महात जी ने इस प्रकार के विचार प्रकट किए उन्होंने कहा कि गजल अरबी से हिंदी में आई हुई है फारसी से आई है 13वीं शताब्दी में फारसी कवियों ने इसे प्रचलित किया है हिंदी की ग़ज़ल की परंपरा जो है माशूका की बात से आरंभ होती है हिंदी ने उसे सामाजिकता के साथ जोड़ दिया है इसे हिंदी में सबसे पहले दुष्यंत कुमार ने हमारे सामने उपस्थित करने का काम किया है दुष्यंत कुमार कहते हैं सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही हो कहीं भी लेकिन आग जलनी चाहिए इस ग़ज़ल को लेकर बहुत ही बारीकी से आरिफ महत्व जी ने ग़ज़ल की परिभाषा को दर्शकों के सामने रखा गजल फारसी और उर्दू की श्रृंगार कविता है गजल में समर्पण का भाव होता है गजल माशूका को बातचीत का माध्यम है आशिका का मिजाज गजल है जैसे कि दुष्यंत कुमार ने अपनी ग़ज़ल के माध्यम से जिसे में उड़ता हूं उसे पूछा था हूं सामाजिक पारिवारिक बातें वर्तमान में ग़ज़ल में छंदों वध करने की परंपरा ग़ज़ल में आई है ग़ज़ल में भी भाव को व्यक्त किया जाता है गजल के अंग जो है जैसे कि अलग-अलग शेर मिसरा काफिया रदीब मतला साथ ही अंतिम अंतिम बात जो होती है मक्ता इसे भी ग़ज़ल में बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है गजल में कारण एक बात होती है गजल से सामाजिक चिंतन  छंद बद्ध रचना के माध्यम से उसे जाना समझना बहुत ही जरूरी है जो हमारे मन में भाव होता है वही गजल होती है शेर मिसरा काफिया रदीब मतला शेरों के समुच्चय को गजल कहा जाता है 2 पंक्तियों का शेर होता है शेर के लिए अरबी में शेर का अर्थ जानना होता है गजल में बहुत सारे शेर होते हैं शेर में दो पंक्ति होती है ग़ज़ल में अपने आप में एक कविता है गजल के समान अरबी और फारसी विद्वानों ने शर्त रखी है कला में मौजूद शेर एक वजन एक छंद कहा जाना चाहिए शेयर में काफी या होना बहुत ही जरूरत होता है  छंद बंध पिया दुकान तो हो शेर काव्य रूप हो कभी ने अपने भाव को स्पष्ट करना इसमें बहुत ही महत्वपूर्ण होता है काफिया ले निश्चित गजल की खासियत यह है कि ग़ज़ल का दूसरा तत्व है मिश्रा शेर के प्रत्येक पंक्ति को मिसरा  कहा जाता है मिसरा एवला मिसरा एसानी दूसरी पंक्ति होती है एक उम्र बीत जाती है सीखते सीखते काफिया अक्षर समूह बार-बार शब्द आकर गजल को समृद्ध करता है तू को को काफिया कहते हैं ग़ज़ल में काफी ओकापिया को महत्वपूर्ण स्थान रहता है मतले में दो रत्ती पाते हैं मतला पहला वाला शेर गजल का पहला शेर होता है मतला गजल का पहला शेर मतला है मतला के लिए दोनों शहरों में रदीब और काफिया होना जरूरी है मक्ता  ग़ज़ल का अंतिम शेर मक्ता
 है तराशा हुआ यह होना चाहिए ग़ज़ल कार अपना उपनाम मक्ता  में प्रकट करता है जो कि अंत में गजल कार का नाम उस गजल में आता है इस प्रकार से गजल विभिन्न शेरों की योजना है ग़ज़ल का प्रत्येक शेर अलग-अलग अर्थ प्रकट करता है गजल अपने आप में अलग अलग भाव स्पष्ट करता है गजल नियम बद होनी चाहिए ग़ज़ल को पढ़ना जरूरी है गजल को सूफी परंपरा में भी महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है लैला मजनू की बात हो लैला काली होकर भी मजनू को पसंद इसलिए आती है कि मजनू कहता है कि आप मेरी नजरों से देखो आपको लैला सुंदर दिखाई देगी ठीक इसी प्रकार से आशिक शब्द जो है अपने अपने अंतरात्मा की दृष्टि से अगर उसे हम देखते हैं खुद को मिटाने बगैर कोई आशिक नहीं बनता खुद को मिटाने से ही आशिक जो है बन जाता है इस प्रकार का अभी भाव इस ग़ज़ल के माध्यम से डॉक्टर आरिफ महात  ने हमारे सामने रखा इस कार्यक्रम का सूत्र संचालन शिव जहागीरदार ने किया कृतज्ञता ज्ञापन डॉ दरयप्पा बताले जी ने किया प्रास्ताविक और वक्ता का परिचय हिंदी विभाग प्रमुख डॉक्टर संघ प्रकाश दुड्डे ने किया इस कार्यक्रम में अलग-अलग प्रांतों से अलग-अलग महाविद्यालयों से विश्वविद्यालयों से छात्र-छात्राएं उपस्थित थे उत्तर भारत से उत्तर प्रदेश से कैलाश वाजपेई उपस्थित थे हिंदी विभाग के डॉ दादा साहब खांडेकर उपस्थित थे इस प्रकार से इस समारोह को पूरे भारतवर्ष से छात्र-छात्राएं बड़ी संख्या में इस व्याख्यानमाला में उपस्थिति दर्ज करते हुए इस की शोभा बढ़ाएं

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