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रीतिकालीन कवि घनानंद का परिचय

रीतिकालीन कवि घनानंद का परिचय निम्नलिखित है: 👨‍🎨 कवि घनानंद: परिचय मूल जानकारी · जन्म: 1673 ई. (दिल्ली के निकट) · मृत्यु: 1760 ई. · वास्तविक नाम: घनश्याम दास · भाषा: ब्रजभाषा · विशेषता: "आधुनिक बिहारी" के नाम से प्रसिद्ध 📚 प्रमुख रचनाएँ रचना विषय विशेषता इश्क़ लता विरह भावना प्रेम और विरह की गहन अनुभूति विरह बारीश विरह वेदना बारिश के मौसम में विरह की अभिव्यक्ति सुजान हित सुजान नामक प्रेमिका के लिए व्यक्तिगत प्रेम की अभिव्यक्ति 💔 ऐतिहासिक प्रसंग प्रेम कथा · सुजान नामक एक सुनार की सुंदर पत्नी से प्रेम · मुगल बादशाह मुहम्मद शाह 'रंगीले' के दरबारी थे · सुजान के साथ प्रेम संबंध के कारण दरबार से निष्कासन · अंततः सन्यास लेकर वृंदावन चले गए 🌸 साहित्यिक विशेषताएँ 1. विरह के अद्वितीय चितेरे · विरह वेदना का मार्मिक और यथार्थपूर्ण चित्रण · व्यक्तिगत जीवन की पीड़ा की साहित्यिक अभिव्यक्ति · प्रसिद्ध उदाहरण: "जानी होती हमें अब की बिछुरन, दिए होते हज़ारों लड़ के मन। बीती है सो कहाँ बीती? मन की मन ही में रही सिसकती॥" 2. श्रृंगार रस की नवीन interpretation · भक्ति काल की ...

रीतिकालीन कवि बिहारी का परिचय

रीतिकालीन कवि बिहारी का संक्षिप्त परिचय निम्नलिखित है: 👨‍🎨 कवि बिहारी: परिचय मूल जानकारी · जन्म: 1595 ई. (ग्वालियर के पास बसुआ गोविन्दपुर गाँव) · मृत्यु: 1663 ई. · आश्रयदाता: जयपुर नरेश मिर्जा राजा जयसिंह · भाषा: ब्रजभाषा · प्रसिद्धि: "बिहारी सतसई" के रचयिता 📖 प्रमुख रचनाएँ रचना विशेषता बिहारी सतसई 719 दोहों का संग्रह, श्रृंगार रस प्रधान बिहारी रत्नाकर कुछ विद्वानों के अनुसार यह भी बिहारी की रचना मानी जाती है 🌸 साहित्यिक विशेषताएँ 1. दोहा छंद के महारथी · सिर्फ दोहा छंद में पूरी रचना · अर्थ की गहनता और संक्षिप्तता · प्रसिद्ध उदाहरण: "नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विहंग वर बोल। मधुराई मैं मत्त, भौंर, डार्यौ है अनबोल॥" 2. श्रृंगार रस के सर्वश्रेष्ठ कवि · संयोग श्रृंगार: मिलन की मधुर अनुभूतियाँ · विप्रलंभ श्रृंगार: वियोग की वेदना का मार्मिक चित्रण · नायक-नायिका भेद का सूक्ष्म वर्णन 3. अलंकारों का सहज प्रयोग · उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा का स्वाभाविक प्रयोग · अनुप्रास की मधुर योजना 4. भाषा शैली · कोमलकांत पदावली · लाक्षणिकता और व्यंजना शक्ति · "गागर में सागर" भ...

रीतिकालीन कवि भूषण का परिचय

रीतिकालीन कवि भूषण का परिचय निम्नलिखित है: 👑 कवि भूषण: परिचय मूल जानकारी · जन्म: 1613 ई. (कानपुर जिले का तिकवापुर गाँव) · मृत्यु: 1715 ई. · वास्तविक नाम: ईश्वरवर्मा · भाषा: ब्रजभाषा · विशेषता: शिवाजी और छत्रसाल के प्रसिद्ध आश्रयी कवि 📚 प्रमुख रचनाएँ रचना विषय विशेषता शिवराजभूषण छत्रपति शिवाजी की प्रशस्ति 52 कवित्तों और 52 सवैयों में वीर रस का वर्णन शिवाबावनी शिवाजी की वीरता 52 छंदों में रचित वीर रस प्रधान काव्य छत्रसाल दशक छत्रसाल की वीरता दशक छंद में रचित प्रशस्ति ⚔️ साहित्यिक विशेषताएँ 1. वीर रस के प्रमुख कवि · रीतिकाल में श्रृंगार रस की प्रधानता के बावजूद वीर रस को प्रमुखता दी · युद्ध के मार्मिक और जीवंत चित्र प्रस्तुत किए · प्रसिद्द उदाहरण: "कहा बीर तुम्हारो बखानौं, भूषण भनत मुख से रानौं।  जिनके बाहुबल से बिदारे, सकल महीपति होत बिदारे॥" 2. अलंकार योजना · उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का सहज प्रयोग · वीर रस के अनुरूप अलंकारों का चयन 3. भाषा शैली · ओजपूर्ण ब्रजभाषा का प्रयोग · तत्सम शब्दों की अधिकता · प्रभावशाली और ओजस्वी Expression 🏆 ऐतिहासिक महत्व भूषण की त्रिशू...

रीतिकालीन साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ

रीतिकालीन साहित्य (लगभग 1650-1850 ई.) की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं: 📜 रीतिकालीन साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ 1. रीति/नियमबद्धता का पालन · काव्य-रचना के लिए निश्चित नियमों (लक्षण) का निर्धारण · केशवदास की "रसिकप्रिया", "कविप्रिया" जैसे लक्षण ग्रंथों की रचना · छंद, अलंकार, रस, नायिका भेद आदि के स्पष्ट नियम 2. श्रृंगार रस की प्रधानता · संयोग श्रृंगार: मिलन की स्थिति में नायक-नायिका के प्रेम का वर्णन · विप्रलंभ श्रृंगार: वियोग की स्थिति में विरह-वेदना का चित्रण · राधा-कृष्ण के प्रेम प्रसंगों का श्रृंगारिक वर्णन 3. अलंकारों की भरमार · उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, अनन्वय आदि अलंकारों का अत्यधिक प्रयोग · कभी-कभी अर्थ की अपेक्षा अलंकारों पर अधिक ध्यान 4. नायिका भेद का विस्तृत वर्णन · स्वकीया, परकीया, समकीया नायिका का वर्गीकरण · मुग्धा, मध्या, प्रौढ़ा आदि के भेदों का सूक्ष्म चित्रण · खंडिता, विप्रलब्धा, कलहंतरिता आदि की मनोदशा का वर्णन 5. दरबारी संस्कृति का प्रभाव · राजाओं की प्रशस्ति (वीर रस) का वर्णन · आश्रयदाताओं को प्रसन्न करने के लिए काव्य रचना · भाषा में परिष्कार और ...

रीतिकालीन धार्मिक परिस्थितियों

रीतिकाल में धार्मिक परिस्थितियाँ भक्ति आंदोलन के मूल आध्यात्मिक स्वरूप से हटकर अधिक बाह्याडंबरों और श्रृंगारिकता की ओर झुकी हुई थीं. भक्ति की सरलता और नैतिक मूल्यों का स्थान रूढ़िवादिता, अंधविश्वास और विलासिता ने ले लिया था. ⛪ धार्मिक परिस्थितियों के मुख्य पहलू पहलू रीतिकाल की स्थिति भक्ति का स्वरूप आध्यात्मिक भक्ति का श्रृंगारिक भक्ति में रूपांतरण धार्मिक आचरण बाह्याडंबरों एवं रूढ़ियों की प्रधानता धार्मिक स्थल भ्रष्टाचार एवं अनैतिक गतिविधियों का केंद्र हिंदू धर्म राधा-कृष्ण की लीलाओं का श्रृंगारिक रूप में चित्रण इस्लाम धर्म रूढ़िवादिता में वृद्धि, बाह्य कर्मकांडों तक सीमित · भक्ति के स्वरूप में परिवर्तन: भक्तिकाल में उभरी गहन आध्यात्मिकता रीतिकाल आते-आते कमजोर पड़ गई. राधा और कृष्ण की भक्ति, जो पहले आध्यात्मिक प्रेम का प्रतीक थी, अब शारीरिक प्रेम और श्रृंगार के वर्णन तक सीमित हो गई. कवियों ने भगवान की लीलाओं में अपने विलासी जीवन की छवि देखनी शुरू कर दी. · बाह्याडंबर और अंधविश्वास: इस काल में धर्म का वास्तविक सार लुप्त हो गया और उसका स्थान पाखंड और दिखावे ने ले लिया. लोग नैतिक मूल्यों ...

रीतिकाल की राजनीतिक परिस्थिति

रीतिकाल की राजनीतिक परिस्थितियाँ मुगल साम्राज्य के चरमोत्कर्ष और उसके बाद के पतन की कहानी को दर्शाती हैं। यह युग राजनीतिक अस्थिरता और सांस्कृतिक वैभव का विरोधाभासी दौर था। 🏛️ मुगल साम्राज्य का उत्थान एवं पतन घटना / शासक राजनीतिक प्रभाव शाहजहाँ का शासनकाल मुगल वैभव चरम सीमा पर; कला एवं स्थापत्य का स्वर्णयुग औरंगजेब की नीतियाँ धार्मिक कट्टरता, हिंदू-मुस्लिम संघर्ष, मुगल साम्राज्य की नींव कमजोर औरंगजेब के बाद उत्तराधिकार संघर्ष (1707 ई. के बाद) केंद्रीय सत्ता का कमजोर होना, लगभग 50 वर्षों तक राजनीतिक अस्थिरता 🗺️ क्षेत्रीय राज्यों की स्थिति रीतिकाव्य के मुख्य केंद्र अवध, राजस्थान और बुंदेलखंड जैसे क्षेत्रों में स्थिति केंद्र की तरह ही थी: · अवध के नवाब विलासिता में डूबे रहे और उनका अंत भी मुगलों जैसा ही हुआ · राजस्थान के रजवाड़ों में बहु-पत्नी प्रथा और विलासिता का बोलबाला बढ़ गया था 🎨 राजनीति का साहित्य पर प्रभाव इन राजनीतिक परिस्थितियों का सीधा प्रभाव साहित्य पर पड़ा: · राजाश्रय की प्रणाली: कवि और कलाकार मुगल सम्राटों या देशी राजाओं-नवाबों के दरबारों से जुड़े रहे · श्रृंगारिक काव्य का ...

रीतिकाल का नामकरण

राहुल सांकृत्यायन ने रीतिकाल को 'श्रृंगार काल' नाम दिया था, जबकि हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ने इसे 'रीति काल' कहा। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अपने 'हिंदी साहित्य का इतिहास' में इस काल को 'रीतिकाल' नाम दिया, जो सर्वाधिक प्रचलित और मान्य नाम बन गया। रीतिकाल नामकरण के पीछे मुख्य आधार: 1. रीति (शैली/पद्धति) का प्रधान्य:       इस काल में काव्य-रचना के लिए नियमबद्ध शैली (रीति) का पालन किया जाता था। कवियों ने लक्षण ग्रंथों (काव्य-नियमों की पुस्तकों) की रचना की, जैसे—केशवदास की 'रसिकप्रिया'। 2. श्रृंगार रस की प्रमुखता:       इस युग में श्रृंगार रस के दोनों पक्ष—संयोग और वियोग—का वर्णन हुआ। इसीलिए इसे 'श्रृंगार काल' भी कहा गया। 3. आचार्य शुक्ल का योगदान:       शुक्ल जी ने इस काल के काव्य की मुख्य प्रवृत्ति को 'रीति' (अलंकारों, छंदों और नायिका भेद की परंपरा) माना, इसलिए 'रीतिकाल' नाम उचित समझा। 4. दरबारी संस्कृति का प्रभाव:       इस काल के कवि राजदरबारों से आश्रय पाते थे, इसलिए उन्होंने राजाओं की प्रशंसा और श्रृंगारिक वर्णन को प्रधानता दी...