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Showing posts from July, 2021

भाव और भाषा कविता की आत्मा है - प्रा ममता बोल्ली

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भाव और भाषा कविता की आत्मा है - प्रा ममता बोल्ली  संगमेश्वर महाविद्यालय सोलापुर हिंदी विभाग तथा हिंदी विकास मंच सोलापुर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित 10 दिवसीय राष्ट्रीय व्याख्यानमाला में दशम  पुष्प प्रस्तुत करते समय ममता बोली ने कहा कि कविता का रस ग्रहण करना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है जब कभी जब कभी हम कविता को पढ़ते हैं तो कभी के भाव उस कविता में दिखाई देते हैं साथ ही कविता अंतरात्मा की आवाज बन जाती है कभी शांत सुखाए के लिए लिखता है लेकिन वह कविता हर एक के अंतःकरण का भाव बन जाती है कविता में रसग्रहण का भाव होना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है कविता के माध्यम से कविता का बीज पढ़ना समझना और उसके भाव को देखना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है कविता का उद्भव और विकास अगर हम देखें तो कविता का भी समय रामायण में प्राप्त होता है वाक्य रसात्मक काव्यम भी कुछ लोगों ने कहा है रस से युक्त काव्य है उसमें प्रतिभा और उसकी उत्पत्ति का भाव होना भी बहुत ही महत्वपूर्ण होता है कवि की प्र...

अनुसंधान में मन वचन और कर्म के अनुसार शोध कार्य हो डॉ नरेश सिहाग -हरियाणा ,राजस्थान

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अनुसंधान में मन वचन और कर्म के अनुसार शोध कार्य हो डॉ नरेश सिहाग संगमेश्वर कॉलेज सोलापुर स्वायत्तता हिंदी विभाग तथा हिंदी विकास मंच सोलापुर आयोजित राष्ट्रीय व्याख्यानमाला में नवम पुष्प प्रकट करते समय प्रमुख वक्ता डॉ नरेश सिहाग ने हरियाणा से अपनी बात स्पष्ट करते हुए कहीं की अनुसंधान करते समय मार्गदर्शक और शोधार्थी के बीच में तारतम में होना बहुत ही आवश्यक है शोधार्थी को विषय चयन करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि इस विषय पर पहले कभी काम हुआ है या नहीं इसे खोज करना चाहिए और 80% साहित्य उपलब्ध होने के बाद ही विषय चयन करने के बाद मार्गदर्शक के साथ सलाह मशवरा करते हुए सिनॉप्सिस करना बहुत ही आवश्यक होता है साहित्य के द्वारा अपना काम होने के कारण जब तक साहित्य का उपलब्ध तब तक काम आगे बढ़ने वाला नहीं है शोधार्थी को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि आपको जिस विषय में रुचि है जो विषय आपको अच्छा लगता है जिस विषय में आप काम करने के लिए बहुत ही रुचि रखते हो उसी विषय को शोध के लिए चुनना आवश्यक होता है अगर मार्गदर्शक के द्वारा दिया गया विषय अगर शोधार्थी लेता है तो अच्छे ढंग से काम नहीं कर पाएगा अच्छे ...

सेवा भाव भेदभाव रहित जीवन जीने में ही मानवीय कल्याण है -प्रा अंजना सोनवणे (गायकवाड़)

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सेवा भाव भेदभाव रहित जीवन जीने  में ही मानवीय कल्याण है -प्रा अंजना सोनवणे (गायकवाड़) संगमेश्वर महाविद्यालय सोलापुर हिंदी विभाग तथा हिंदी विकास मंच सोलापुर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया है उसमें अष्टम पुष्प प्रकट करते हुए अंजना सोनोने ने कहा कि भेदभाव रहित जीवन जीना ही मानवी कल्याण है सत्यनारायण गोयनका का पूरा जीवन सत्य अहिंसा प्रेम करुणा मैत्री मुदिता से भरा हुआ है उन्होंने अपने जीवन के सारे कर्म जो है मानव कल्याण के लिए मानव हित के लिए सारे दुखों से छुटकारा पाने के लिए अपने जीवन की सारी ताकत सत्यनारायण गोयनका जी के दोहों में हमें यह सारी बातें दिखाई देती है मानवी कल्याण और मानव का दुख दूर करने की भावना उनके हर दोनों में समाहित हो गए हैं हर दोहा हमें मानव का कल्याण हो मानव जाति सुखी रहे धर्म धर्म सब कहे न समझना को धर्म चित्त की शुद्धता धर्म शांति सुखचैन इस प्रकार से सत्यनारायण गोयनका जी ने धर्म की परिभाषा की है सत्यनारायण गोयनका कहते हैं धर्म ना हिंदू बौद्ध है धर्म मुस्लिम जैन धर्म चित्त  की शुद्धता धर्म शांति सुखचैन धर्म...

हिंदी को ज्ञान भाषा बनाना जरूरी है -डॉ अरुण कुमार इंगळे

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हिंदी को ज्ञान भाषा बनाना जरूरी है -डॉ अरुण कुमार इंगळे  संगमेश्वर महाविद्यालय सोलापुर स्वायत्तता तथा हिंदी विकास मंच सोलापुर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय व्याख्यानमाला में सप्तम पुष्प प्रस्तुत करते समय डॉ अरुण कुमार अंग्रेजी ने कहा कि प्रयोजनमूलक हिंदी का इतिहास सात 65 वर्षों का है विश्वविद्यालय स्तर पर प्रयोजनमूलक हिंदी जीवन आवश्यक वस्तुओं की पूर्णता के लिए प्रयोजनमूलक हिंदी का उपयोग किया जाता है हिंदी भाषा पर भाषा स्वतंत्र रूप से उपयोग करना बहुत ही जरूरी है पूरे भारतवर्ष में हिंदी के प्रचार और प्रसार में योगदान देने में डॉक्टर हरिवंश राय बच्चन जी ने राजभाषा अधिकारी के रूप में जो काम किया है वह बहुत ही सराहनीय है उन्होंने विदेश मंत्रालय में अनुवाद कार्य करते हुए भाषा को सुब्रता से सरलता तक ले जाने में उन्होंने अपना योगदान दिया है आज अंग्रेजी से हिंदी में पत्राचार हो टिप्पण हो चाहे अन्य अनुवाद कार्य किया जा रहा है इस प्रकार से सरकार का हिंदी के पक्ष को समझना बहुत ही जरूरी है हिंदी का विकास और प्रचार करने के लिए 15 वर्ष की आवश्यकता महसूस की गई थी उसे बढ़ाना बहुत ही जरू...

मीराबाई भक्त होने के कारण उत्तम रचनाकार थी- डॉ दीप कुमार मित्तल

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मीराबाई भक्त होने के कारण उत्तम रचनाकार थी डॉ दीप  कुमार मित्तल हिंदी विकास मंच तथा संगमेश्वर महाविद्यालय सोलापुर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय व्याख्यानमाला में मीरा और उनका समय इस विषय पर डॉक्टर मित्तल जी छटा पुष्प प्रस्तुत कर रहे थे मीराबाई ने अपने पूरे जीवन के लक्ष्य को कृष्ण के अनन्य भक्ति भाव को लेकर कृष्ण की आराधना में लीन होकर कृष्ण की मूर्ति को समर्पित भाव करते हुए अपनी सारी रचनाएं लिखें मीराबाई एक रचनाकार होने के साथ-साथ एक अच्छी भक्त थी इस बात को हमें अदूर गीत करना चाहिए इसी कारण वह इतना सारा काव्य सृजन कर पाई कविता लेखन में उनकी पदावली में हर एक पद में भक्ति का श्रृंगार भक्ति की भावना हृदय पूर्वक हमें दिखाई देती है मेरा भाई हमें एक अच्छा संदेश देती है कि जीवन में कितनी भी सारी कठिनाइयों क्यों ना आए उन सारी कठिनाइयों को भक्ति के द्वारा दूर किया जा सकता है इसका सबसे बड़ा उदाहरण मीराबाई का पूरा जीवन है मीराबाई के पति का निधन होने के बावजूद भी मीराबाई ने अपना पूरा जीवन संघर्ष में जीवन जीते समय अपने हर भाव को साहित्य के द्वारा समाज में जितनी भी सारी परंपराएं थी उ...