मीराबाई भक्त होने के कारण उत्तम रचनाकार थी- डॉ दीप कुमार मित्तल

मीराबाई भक्त होने के कारण उत्तम रचनाकार थी डॉ दीप  कुमार मित्तल हिंदी विकास मंच तथा संगमेश्वर महाविद्यालय सोलापुर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय व्याख्यानमाला में मीरा और उनका समय इस विषय पर डॉक्टर मित्तल जी छटा पुष्प प्रस्तुत कर रहे थे मीराबाई ने अपने पूरे जीवन के लक्ष्य को कृष्ण के अनन्य भक्ति भाव को लेकर कृष्ण की आराधना में लीन होकर कृष्ण की मूर्ति को समर्पित भाव करते हुए अपनी सारी रचनाएं लिखें मीराबाई एक रचनाकार होने के साथ-साथ एक अच्छी भक्त थी इस बात को हमें अदूर गीत करना चाहिए इसी कारण वह इतना सारा काव्य सृजन कर पाई कविता लेखन में उनकी पदावली में हर एक पद में भक्ति का श्रृंगार भक्ति की भावना हृदय पूर्वक हमें दिखाई देती है मेरा भाई हमें एक अच्छा संदेश देती है कि जीवन में कितनी भी सारी कठिनाइयों क्यों ना आए उन सारी कठिनाइयों को भक्ति के द्वारा दूर किया जा सकता है इसका सबसे बड़ा उदाहरण मीराबाई का पूरा जीवन है मीराबाई के पति का निधन होने के बावजूद भी मीराबाई ने अपना पूरा जीवन संघर्ष में जीवन जीते समय अपने हर भाव को साहित्य के द्वारा समाज में जितनी भी सारी परंपराएं थी उन परंपराओं को मीराबाई ने भक्ति कालीन मध्यकाल की परंपरा को उन्होंने हमारे सामने रखा आज भी राजस्थान में जयपुर में जय शिरोमणि मंदिर मीराबाई के नाम से जाना जाता है आज भी राजस्थान में मीराबाई और कृष्ण की पालकी निकाली जाती है यह बहुत ही विशेष बात रही है यह केवल और केवल मीराबाई के त्याग का बलिदान का यह उदाहरण है राजा मानसिंह ने यह मंदिर बनाया है और इस मंदिर का आज भी पूरे उत्तर भारत में महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है मेरा भाई समाज की परंपरा को चित्तौड़ की परंपरा को राज्य परिवार को हमारे सामने रखने का प्रयास मीराबाई करती है मारवाड़ और मेवाड़ दोस्त जो है गाथाओं से जुड़े हैं इस प्रकार से बहुत सारी क्यूदन तीनों में मीराबाई का जीवन संघर्ष हमें दिखाई देता है वर्तमान समाज में महिलाओं को लिखना पढ़ना वर्जित था तो मेरा के पद उस समय की एक महिला लिखा करती थी और वहीं पर हमें गुजरात के मंदिर में केवल 58 पद हमें प्राप्त होते हैं और उन पदों के बाद मीराबाई का पूरा जीवन संघर्ष हमारे सामने द्वारका से यह सारे के सारे पद हमें प्राप्त होते हैं मीराबाई को अपने गुरु के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने रविदास को अपना गुरु माना था और रविदास के पद जो है महिलाओं को सम्मान देते हैं महिलाओं को अधिकार देने की बात करते हैं इसलिए उन्होंने रविदास को आदर्श मानकर अपने पदों की रचना की मीराबाई भक्त भारतीय परंपरा को भक्ति से अलग नहीं किया जा सकता मेरा के विषय में मेरा के कालखंड को पूरे राजस्थान में एक अलग दृष्टि से आज भी देखा जाता है इस प्रकार से मेरा कि मेरा की सारी बातें जो है आत्मक बातें हैं और इन बातों में मेरा कहती है घायल की गति घायल जाने घायल की गति घायल जाने यानी कि मीरा ने जो दर्द सहा है जो यातनाएं मीरा ने सही है जो समस्याएं मीराबाई को आ गई है यह मेरा भाई ने काव्य रचना के माध्यम से हमारे सामने प्रस्तुत की है आज भी चित्तौड़ में रविदास की समाधि पाई गई है जो कि मीराबाई की भक्ति का या उनके साहित्य को आदर्श मानकर चलने का एक उदाहरण साबित हो सकता है इस प्रकार के बहुत सारे उदाहरण देकर दीप कुमार मित्तल जी ने मीराबाई और उनका समय इस विषय पर अपने व्याख्या पोस्ट की हिंदी विभाग प्रमुख डॉक्टर संघ प्रकाश दुड्डे ने वक्ता का परिचय और स्वागत किया सूत्रसंचालन शिव जहागीरदार ने किया कृतज्ञता ज्ञापन डॉ दरयप्पा बसाले जी ने किया इस समय पूरे भारतवर्ष से राजस्थान जयपुर कर्नाटक मध्य प्रदेश उत्तर भारत के कई प्रांतों से पंजाब से शोध छात्र प्राध्यापक गण बड़ी संख्या में उपस्थित थे/

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