हिंदी को ज्ञान भाषा बनाना जरूरी है -डॉ अरुण कुमार इंगळे
हिंदी को ज्ञान भाषा बनाना जरूरी है -डॉ अरुण कुमार इंगळे संगमेश्वर महाविद्यालय सोलापुर स्वायत्तता तथा हिंदी विकास मंच सोलापुर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय व्याख्यानमाला में सप्तम पुष्प प्रस्तुत करते समय डॉ अरुण कुमार अंग्रेजी ने कहा कि प्रयोजनमूलक हिंदी का इतिहास सात 65 वर्षों का है विश्वविद्यालय स्तर पर प्रयोजनमूलक हिंदी जीवन आवश्यक वस्तुओं की पूर्णता के लिए प्रयोजनमूलक हिंदी का उपयोग किया जाता है हिंदी भाषा पर भाषा स्वतंत्र रूप से उपयोग करना बहुत ही जरूरी है पूरे भारतवर्ष में हिंदी के प्रचार और प्रसार में योगदान देने में डॉक्टर हरिवंश राय बच्चन जी ने राजभाषा अधिकारी के रूप में जो काम किया है वह बहुत ही सराहनीय है उन्होंने विदेश मंत्रालय में अनुवाद कार्य करते हुए भाषा को सुब्रता से सरलता तक ले जाने में उन्होंने अपना योगदान दिया है आज अंग्रेजी से हिंदी में पत्राचार हो टिप्पण हो चाहे अन्य अनुवाद कार्य किया जा रहा है इस प्रकार से सरकार का हिंदी के पक्ष को समझना बहुत ही जरूरी है हिंदी का विकास और प्रचार करने के लिए 15 वर्ष की आवश्यकता महसूस की गई थी उसे बढ़ाना बहुत ही जरूरी है हिंदी में तो पूर्ण भाषा बनने के कारण आज पूरे भारतवर्ष में नहीं पूरे विश्व में प्रयोजनमूलक हिंदी को अपनाने की बहुत ही आवश्यकता है फिर भी आज तक प्रयोजनमूलक की हिंदी उतनी सफलता पूर्व स्थापित नहीं हो पाई है इसे स्थापित करने के लिए हमें प्रयास करना बहुत ही जरूरी है अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग भाषा भिवानी लोग हिंदी भाषा का विरोध करते हैं जो कि यह विरोध करना भारतीय दंड संहिता के अनुसार दंडनीय अपराध होना चाहिए भाषा समृद्ध होती है अपने-अपने प्रादेशिक भाषाओं को समृद्ध करते हुए उनके शब्दों को भी हिंदी में स्थान देना बहुत ही आवश्यक बन गया है मनुष्यता के संबंध में मानवीयता का स्थान ऐसा जरूरी है हिंदी शिक्षित तथा अशिक्षित लोगों की भाषा को भी प्रयोजनमूलक ता में स्थान देना बहुत ही आवश्यक बनता है न्यायालयों में जज वकील अंग्रेजी में अनपढ़ लोगों के साथ अंग्रेजी में बात करते हैं उसके बजाय आम लोगों की भाषा बोल चाल की भाषा हिंदी में अगर बातचीत होती है तो उसका बहुत अच्छा असर बन सकता है हिंदी का रूप विकसित करने के लिए उसका भाषा वैज्ञानिक रूप बदलना जरूरी है सूचना प्रौद्योगिकी के कारण दुनिया आज हमारी मुट्ठी में आ गई है सूचना प्रौद्योगिकी के द्वारा हिंदी की अपनी एक क्षमता है जो हजारों लाखों लोगों की बोली के रूप में देश के 90 प्रतिशत लोग हिंदी के साथ जुड़े हुए हैं राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्थान पर हिंदी तीसरे स्थान पर भाषा के रूप में बन गई है हिंदी को वैज्ञानिक भाषा कहा जाता है प्रयोजनमूलक हिंदी में बोलचाल का बहुत ही महत्वपूर्ण होता है इसलिए हमारे देश के सभी भारतीय भाइयों से एक काम करना बहुत आवश्यक है कि सारे लोग हिंदी में बोलो हिंदी में सोचें हिंदी में कार्य करें तो ही हिंदी पूरे भारत की अपनी भाषा बन सकती है इस प्रकार के अनमोल विचार डॉ अरुण कुमार इन गणेश जी ने प्रकट की है प्रारंभ में हिंदी विभाग प्रमुख डॉक्टर संघप्रकाश दुड्डे ने वक्ता का परिचय और स्वागत किया सूत्रसंचालन शिव जहागीरदार ने किया इस समय डॉक्टर एम डी शिंदे डॉ कैलाश वाजपेयी डॉ दादा साहब खंडेकर भारत के अन्य अन्य विश्वविद्यालयों से बहुत सारे शोधार्थी छात्र प्राध्यापक गण बड़ी संख्या में उपस्थित थे कृतज्ञता ज्ञापन डॉ सतीश पन्हालकर ने किया
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