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डॉ संघप्रकाश दुड्डे योगदान

डॉ. संघप्रकाश दुड्डे वर्तमान में संगमेश्वर कॉलेज, सोलापुर (स्वायत्त, NAAC 'A' ग्रेड) में हिंदी विभाग प्रमुख (HOD) के रूप में कार्यरत हैं। वे सहयोगी प्रोफेसर हैं और हिंदी साहित्य एवं विभाग संचालन में सक्रिय भूमिका निभाते हैं  । --- 📚 हिंदी विभाग में योगदान हिंदी साहित्य मंडल एवं हिंदी विकास मंच के अंतर्गत आयोजित विविध कार्यक्रमों जैसे काव्य दीपोत्सव, साहित्य गोष्ठियाँ, व्याख्यानमाला आदि में वे प्रमुख आयोजक एवं उद्घोषक रहे हैं  । राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर की संगोष्ठियों, व्याख्यान श्रृंखलाओं में उन्होंने हिंदी भाषा और साहित्य का प्रचार-प्रसार किया है  । --- 🗣️ प्रमुख सामाजिक एवं अकादमिक गतिविधियाँ वे NAAC की नई मूल्यांकन मानदंडों (10 criteria) जैसे रिसर्च, इनोवेशन, एक्सटेंशन और स्टूडेंट सपोर्ट जैसे विषयों पर मार्गदर्शन करते हैं — जिससे कॉलेज में शिक्षा तथा छात्र समग्र विकास को बढ़ावा मिलता है  । छात्र सहायता प्रणालियों में करियर काउंसलिंग, वित्तीय सहायता, मानसिक स्वास्थ्य परामर्श, रेमेडियल क्लास आदि के संचालक के रूप में शामिल हैं  । --- ✍️ अन्य साहित्यिक ...

डॉ संघप्रकाश दुड्डे योगदान

  । 📚 हिंदी विभाग में योगदान । । 🗣️ प्रमुख सामाजिक एवं अकादमिक गतिविधियाँ । । ✍️ अन्य साहित्यिक एवं शिक्षण पहलें गतिविधि विवरण । काव्य-रमाईशें आधुनिक कवियों की रचनाएं प्रस्तुत कर पाठकों तक पहुँचाते हैं; उदाहरणः “प्रतिशोध एकांकी” जैसे मंचीय प्रस्तुतियों में वे अग्रणी रहे हैं । 🙌 सहायक सामाजिक पहलें । ✅ संक्षिप्त अवलोकन 📌 पद : हिंदी विभाग प्रमुख, सहयोगी प्रोफेसर 📌 शैक्षणिक योगदान : साहित्यिक आयोजन, व्याख्यान, शिक्षण सामग्री 📌 सामाजिक प्रतिबद्धता : दलित-जागृति, महिला शिक्षा, आंबेडकरवादी विचारों का प्रसार 📌 प्रकाशन : ब्लॉग, शोध-पत्र व साहित्यिक लेखन यदि आप समझना चाहते हैं कि उनके किसी विशेष कार्यक्रम, शोध, व्याख्यान या सामाजिक पहल के बारे में और जानकारी चाहिए — तो कृपया बताएं। मैं उस विषय पर और अधिक खोज कर विवरण प्रस्तुत कर सकता हूँ।

बुद्ध सम्यक दर्शन संग्रहालय एवं स्मृति स्तूप वैशाली बिहार विस्तृत रिपोर्ट -प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे

# बुद्ध सम्यक दर्शन संग्रहालय एवं स्मृति स्तूप, वैशाली: एक विस्तृत विवरण ## स्तूप निर्माण का उद्देश्य एवं महत्व वैशाली, बिहार में निर्मित बुद्ध सम्यक दर्शन संग्रहालय सह स्मृति स्तूप का उद्घाटन 29 जुलाई 2025 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा किया गया। इस भव्य स्तूप के निर्माण के प्रमुख उद्देश्य हैं: 1. **बौद्ध विरासत का संरक्षण**: भगवान बुद्ध के अवशेषों को उनके मूल स्थान वैशाली में स्थापित कर बौद्ध धर्म की ऐतिहासिक विरासत को संजोना  2. **अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध पर्यटन को बढ़ावा**: वैशाली को वैश्विक बौद्ध मानचित्र पर प्रतिष्ठित स्थान दिलाना और पर्यटन को नई दिशा देना  3. **सांस्कृतिक पुनर्जागरण**: बिहार की सांस्कृतिक धरोहर और वैश्विक बौद्ध विरासत का भव्य प्रतीक स्थापित करना  4. **आर्थिक विकास**: स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के नए अवसर सृजित करना और क्षेत्र के समग्र विकास को गति देना  ## अस्ति कलश की खोज एवं प्रमाणिकता भगवान बुद्ध का पावन अस्थि कलश इस स्मारक का प्रमुख केंद्र बिंदु है, जो संग्रहालय के प्रथम तल पर स्थापित किया गया है: - **उत्पत्ति स्थल**: यह अवशेष वैशाली के प्...

माननीय मुख्यमंत्री महाराष्ट्र महोदय को नालासोपारा विशाल स्तूप हेतु आवेदन पत्र

**आवेदन पत्र**   **प्रति,**   **माननीय मुख्यमंत्री महोदय,**   **महाराष्ट्र सरकार,**   **मुंबई।**   **विषय:** नाला सोपारा में भगवान बुद्ध के भिक्षा पात्र पर स्तूप एवं स्मृति संग्रहालय निर्माण हेतु अनुरोध।   महोदय,   1. **पृष्ठभूमि:**      - वैशाली (बिहार) में **बुद्ध सम्यक दर्शन संग्रहालय सह स्मृति स्तूप** के उद्घाटन ने भगवान बुद्ध की ऐतिहासिक विरासत को वैश्विक पहचान दिलाई है। यहाँ **भगवान बुद्ध का पावन अस्थि कलश** स्थापित है, जिसका उल्लेख चीनी यात्री ह्वेनसांग ने किया था ।      - इसी प्रकार, **नाला सोपारा (महाराष्ट्र)** में खुदाई में प्राप्त **भगवान बुद्ध के भिक्षा पात्र** का ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक महत्व है, जो बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए अत्यंत पवित्र है।   2. **प्रस्ताव:**      - नाला सोपारा में **एक भव्य स्तूप एवं स्मृति संग्रहालय** का निर्माण किया जाए, जहाँ भिक्षा पात्र को संरक्षित रखा जाए।      - वैशाली मॉडल के अनुसार, राजस्...

अनामिका की कविता नमक की समीक्षा कीजिए

# समीक्षा: अनामिका की कविता "नमक" ## कविता का परिचय अनामिका की कविता "नमक" एक गहन मानवीय अनुभव को व्यक्त करने वाली रचना है जो नमक के माध्यम से जीवन के विभिन्न पहलुओं को छूती है। यह कविता नमक को केवल एक पदार्थ के रूप में नहीं, बल्कि एक प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करती है जो दुख, संवेदनशीलता, सामाजिक अन्याय और मानवीय संबंधों को व्यक्त करता है । ## कविता की विषयवस्तु कविता की शुरुआत में ही अनामिका नमक को "धरती का दुख और उसका स्वाद भी" बताती हैं, जो एक विरोधाभासी किन्तु गहन अभिव्यक्ति है । वे आगे कहती हैं: "पृथ्वी का तीन भाग नमकीन पानी है और आदमी का दिल नमक का पहाड़" यहाँ नमक मानवीय संवेदनशीलता का प्रतीक बन जाता है - जो आसानी से पिघल जाता है, जिसे आहत किया जा सकता है । ## सामाजिक व्यंग्य कविता में सरकारी दफ्तरों को "शाही नमकदान" कहकर एक तीखा सामाजिक व्यंग्य किया गया है। कवयित्री कहती हैं कि ये दफ्तर "बड़ी नफासत से छिड़क देते हैं हरदम हमारे जले पर नमक!" । यहाँ नमक जख्मों पर छिड़के जाने वाले नमक का प्रतीक बन जाता है, जो सिस्टम द्वारा...

सम्राट अशोक सन्नती अभिलेख

सम्राट अशोक और कर्नाटक के सन्नती स्थल का संबंध उनके शिलालेखों और बौद्ध स्मारकों के माध्यम से स्थापित होता है। यहाँ विस्तृत जानकारी दी गई है: ### 1. **सम्राट अशोक और सन्नती का संबंध**    - सन्नती (कर्नाटक) में खोजे गए अशोक के शिलालेखों से पता चलता है कि यह क्षेत्र मौर्य साम्राज्य के अंतर्गत था। अशोक ने यहाँ धम्म (बौद्ध नीति) का प्रचार किया था, लेकिन ऐतिहासिक साक्ष्यों से यह नहीं मिलता कि वे स्वयं सन्नती में रहते थे ।    - सन्नती का **कनगनहल्ली बौद्ध चैत्यालय** देश का एकमात्र स्थान है जहाँ अशोक के परिवार (उनकी पत्नी और बच्चों) के साथ उत्कीर्ण छवि वाला शिलालेख मिला है। इस शिलालेख में अशोक को "रान्यो अशोक" (राजा अशोक) कहा गया है । ### 2. **शिलालेख में क्या लिखा है?**    - सन्नती के शिलालेख में अशोक की धम्म नीति और बौद्ध शिक्षाओं का उल्लेख है। यह शिलालेख ब्राह्मी लिपि में है और इसमें अशोक द्वारा बौद्ध धर्म के प्रसार के लिए किए गए प्रयासों का वर्णन मिलता है ।    - अन्य अभिलेखों की तरह, इसमें भी अहिंसा, धार्मिक सहिष्णुता, और प्रजा के कल्याण के सिद्धांतों...

सम्राट अशोक के अभिलेख स्थल

अशोक के अभिलेख स्थल (ASHOKAN EDICT SITES) अवधि: मौर्य सम्राट अशोक (268 ई.पू. - 232 ई.पू.) ने अपने शासनकाल के दौरान प्रस्तर, स्तंभों, शिलाओं और गुफा की भित्तियों पर 30 से अधिक अभिलेख उत्कीर्ण कराए थे।  अशोक के अभिलेख हड़प्पा सभ्यता के पतन के बाद भारत में पहले लिखित अभिलेख हैं। अशोक ने 14 वृहद शिलालेख, 7 स्तंभ अभिलेख और कुछ लघु शिलालेख उत्कीर्ण करवाए थे। उद्देश्य: अशोक के अभिलेख मौर्य साम्राज्य के शाही आदेश थे। अधिकतर अभिलेखों पर अशोक द्वारा दिए गए आदेशों को उत्कीर्ण करवाया गया है। ये आदेश सामाजिक, सांस्कृतिक और प्रशासनिक मामलों से संबंधित हैं। इनके माध्यम से अशोक ने कुलीनों, अधिकारियों तथा आम जनता को संबोधित किया था। भाषा: मुख्यतः प्राकृत, लेकिन उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में खोजे गए कुछ अभिलेखों की भाषा अरामाईक और ग्रीक है। लिपि: ब्राह्मी (मुख्य लिपि), खरोष्ठी (गांधार क्षेत्र में प्रयुक्त), ग्रीक और अरामाईक (उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में)। निर्माण सामग्री: अशोक के स्तंभ अभिलेखों का निर्माण चुनार से लाए गए बादामी रंग के कठोर बलुआ पत्थर और मथुरा से लाए गए धब्बेदार लाल एवं सफेद बलुआ पत्थर से क...