बिट्टन मर गई-जयप्रकाश कर्दम की कहानी की समीक्षा तथा विशेषता

# समीक्षा एवं विशेषताएँ: जयप्रकाश कर्दम की कहानी "बिट्टन मर गई"

## कहानी का सारांश
"बिट्टन मर गई" जयप्रकाश कर्दम के प्रसिद्ध कहानी संग्रह **'तलाश'** में संकलित एक मार्मिक दलित कहानी है जो भारतीय समाज में दलित समुदाय के प्रति व्याप्त जातिगत भेदभाव, हिंसा और सामाजिक उत्पीड़न की क्रूर वास्तविकताओं को उजागर करती है। कहानी की नायिका बिट्टन एक दलित युवती है जो सवर्ण समाज के अमानवीय व्यवहार और यौन हिंसा का शिकार होती है। कहानी उसकी मृत्यु के बाद के घटनाक्रमों के माध्यम से समाज में व्याप्त जातिगत पूर्वाग्रहों और दलितों के प्रति संवेदनहीनता को बेबाकी से प्रस्तुत करती है। कर्दम ने इस कहानी में दलित स्त्री की पीड़ा को एक सशक्त राजनीतिक अभिव्यक्ति दी है जो केवल व्यक्तिगत त्रासदी नहीं बल्कि पूरे समाज के संरचनात्मक अत्याचार का प्रतीक है .

## कहानी की समीक्षा

### 1. विषयवस्तु और सामाजिक यथार्थ
- **जातिगत हिंसा का खुला चित्रण**: कहानी भारतीय ग्रामीण समाज में दलित स्त्रियों के साथ होने वाली यौन हिंसा और सामूहिक उत्पीड़न की पुरानी परंपरा को बेनकाब करती है। बिट्टन की मृत्यु के बाद भी सवर्ण समाज द्वारा उसके शव के साथ किया गया अपमानजनक व्यवहार (जैसे शव को झाड़ू से छूना) जातिगत घृणा की चरम अभिव्यक्ति है .
- **न्याय व्यवस्था पर प्रश्न**: कहानी में पुलिस और प्रशासन की संवेदनहीनता दिखाई गई है जो दलितों के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित है। बिट्टन के परिवार को न्याय न मिलना भारतीय न्याय प्रणाली की विफलता को रेखांकित करता है .
- **दलित स्त्री की दोहरी पीड़ा**: कर्दम ने दलित स्त्री के शोषण के दोहरे आयामों - जाति और लिंग - को गहनता से उकेरा है। बिट्टन के साथ हुई हिंसा केवल एक व्यक्तिगत घटना नहीं बल्कि सामाजिक व्यवस्था द्वारा संस्थागत रूप से समर्थित अत्याचार है .

### 2. शिल्प और शैली
- **यथार्थवादी भाषा**: कर्दम ने सरल परंतु तीखी भाषा का प्रयोग किया है जो दलित जीवन की कठोर वास्तविकताओं को बिना लाग-लपेट के प्रस्तुत करती है। उदाहरण के लिए, सवर्णों द्वारा बिट्टन के शव के साथ किए गए व्यवहार का वर्णन करते समय लेखक ने शब्दों के माध्यम से पाठक के मन में एक तीव्र आक्रोश पैदा किया है .
- **प्रतीकात्मकता**: कहानी में **"झाड़ू"** एक शक्तिशाली प्रतीक के रूप में उभरता है जो दलितों के प्रति सवर्ण समाज की 'सफाई' की मानसिकता को दर्शाता है। यह प्रतीक मनुवादी व्यवस्था द्वारा दलितों को 'अशुद्ध' मानने की रूढ़िवादी सोच को उजागर करता है .
- **कथानक की संरचना**: कहानी की शुरुआत ही बिट्टन की मृत्यु की खबर से होती है, जो पाठक के मन में एक सवाल खड़ा करती है - "बिट्टन क्यों मर गई?" यह तकनीक पाठक की जिज्ञासा को बनाए रखते हुए कहानी को आगे बढ़ाती है .

### 3. पात्रों का चित्रण
- **बिट्टन**: मृत होने के बाद भी कहानी की केंद्रीय पात्र, जिसकी अनुपस्थिति में भी उसकी उपस्थिति पूरी कहानी में महसूस होती है। उसका चरित्र दलित स्त्रियों की सामूहिक पीड़ा का प्रतिनिधित्व करता है .
- **सवर्ण पात्र**: मिस्टर गुप्ता और उनके समुदाय के लोगों के माध्यम से लेखक ने सवर्ण समाज की संकीर्ण मानसिकता और दलितों के प्रति घृणा को उजागर किया है। उनका यह कथन - *"समाज के बीच समाज के अनुसार चलना पड़ता है"* - जातिगत भेदभाव को तर्कसंगत ठहराने की कोशिश करता है .
- **दलित समुदाय के पात्र**: बिट्टन के परिवार और अन्य दलित पात्रों के माध्यम से लेखक ने शोषित वर्ग की असहायता, क्रोध और संघर्ष को दिखाया है। ये पात्र पीड़ा के शिकार होने के साथ-साथ प्रतिरोध के स्वर भी उठाते हैं .

## कहानी की प्रमुख विशेषताएँ

1. **दलित चेतना का प्रखर स्वर**: कहानी दलित समाज में व्याप्त आक्रोश और प्रतिरोध की भावना को साहित्यिक अभिव्यक्ति देती है। यह केवल शोषण का दस्तावेज नहीं बल्कि संघर्ष का घोषणापत्र भी है .

2. **सामाजिक परिवर्तन की मांग**: कर्दम ने इस कहानी के माध्यम से न केवल समस्याओं को उजागर किया है बल्कि सामाजिक बदलाव की आवश्यकता पर भी बल दिया है। कहानी का अंत दलित समुदाय में उभरते हुए जागरूकता के संकेत देता है .

3. **ऐतिहासिक और समकालीन संदर्भों का समन्वय**: कहानी में दलितों के साथ होने वाले अत्याचारों को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में रखकर देखा गया है, साथ ही यह समकालीन समय में भी उनकी स्थिति में कोई बड़ा बदलाव न होने की ओर इशारा करती है .

4. **भाषाई प्रयोग**: कर्दम ने दलित जीवन की वास्तविकताओं को दर्शाने के लिए स्थानीय बोली और आम बोलचाल के शब्दों का प्रयोग किया है, जिससे कहानी को प्रामाणिकता मिलती है। उदाहरण के लिए, "चुहड़ी" जैसे शब्दों का प्रयोग सवर्ण समाज की घृणास्पद भाषा को दर्शाता है .

5. **मनोवैज्ञानिक गहराई**: कहानी के पात्रों के आंतरिक संघर्ष और मनोभावों को गहनता से चित्रित किया गया है। बिट्टन के परिवार की मानसिक पीड़ा और सवर्ण समाज के पात्रों के अंतर्विरोधों को समझने का प्रयास किया गया है .

## निष्कर्ष
"बिट्टन मर गई" जयप्रकाश कर्दम की एक ऐसी कहानी है जो दलित साहित्य के मूल उद्देश्यों - शोषण के खिलाफ आवाज उठाना, सामाजिक न्याय की मांग करना और दलित अस्मिता को गौरवान्वित करना - को पूरी ताकत के साथ अभिव्यक्त करती है। यह कहानी न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि सामाजिक-राजनीतिक विमर्श को भी आगे बढ़ाती है। कर्दम की यह रचना दलित साहित्य की उस परंपरा का हिस्सा है जो डॉ. अंबेडकर के विचारों से प्रेरणा लेकर समाज में व्याप्त असमानताओं के खिलाफ एक सांस्कृतिक प्रतिरोध खड़ा करती है . इस कहानी की सबसे बड़ी ताकत यह है कि यह पाठक को झकझोर देती है और उसे सामाजिक यथार्थ से आंखें मिलाने के लिए मजबूर करती है।

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