कौटिल्य का अर्थशास्त्र एक विस्तृत विश्लेषण-प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे
# कौटिल्य का अर्थशास्त्र: एक विस्तृत विश्लेषण
## अर्थशास्त्र का उत्पत्ति और उद्भव
कौटिल्य का अर्थशास्त्र प्राचीन भारत का एक महान राजनीतिक और आर्थिक ग्रंथ है जिसकी रचना तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में हुई थी। इस ग्रंथ के रचयिता कौटिल्य थे, जिन्हें विष्णुगुप्त और चाणक्य के नाम से भी जाना जाता है। चाणक्य चंद्रगुप्त मौर्य के प्रशिक्षक और संरक्षक थे, जब वे तक्षशिला विश्वविद्यालय में छात्र थे । अर्थशास्त्र संभवतः कई लेखकों द्वारा कई वर्षों में लिखा गया था और इसे दूसरी से तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के बीच संशोधित और विस्तारित किया गया था ।
इस ग्रंथ का प्रभाव 12वीं शताब्दी तक रहा, जब यह लुप्त हो गया। आर. शामशास्त्री ने 1905 में इसे फिर से खोजा और 1909 में प्रकाशित किया । ग्रंथ के पुनर्खोज के बाद भारत और पश्चिमी देशों में इसके प्रति बहुत रुचि जागृत हुई क्योंकि इसमें शासन-विज्ञान के अद्भुत तत्वों का वर्णन मिलता था ।
## अर्थशास्त्र का विकास और संरचना
अर्थशास्त्र 15 पुस्तकों या अधिकरणों में विभाजित है जिसमें कुल 150 अध्याय, 180 प्रकरण और लगभग 6,000 श्लोक हैं । यह मुख्यतः सूत्र शैली के गद्य में लिखा गया है, जिसमें केवल 380 श्लोक हैं । ग्रंथ की संरचना निम्नलिखित प्रमुख विभागों में की जा सकती है :
1. विनयाधिकरण - अनुशासन से संबंधित
2. अध्यक्षप्रचार - सरकारी अधिकारियों के कर्तव्य
3. धर्मस्थीयाधिकरण - कानून और न्याय प्रशासन
4. कंटकशोधन - अपराध निवारण
5. वृत्ताधिकरण - अधिकारियों के आचरण
6. योन्यधिकरण - राज्य के स्रोत
7. षाड्गुण्य - विदेश नीति के छह तरीके
8. व्यसनाधिकरण - विपत्तियों और दुर्गुणों पर
9. अभियास्यत्कर्माधिकरणा - आक्रमणकारी के कार्य
10. संग्रामाधिकरण - युद्ध से संबंधित
11. संघवृत्ताधिकरण - निगमों का आचरण
12. आबलीयसाधिकरण - शक्तिशाली शत्रु से निपटना
13. दुर्गलम्भोपायाधिकरण - किले जीतने के उपाय
14. औपनिषदिकाधिकरण - गुप्त उपाय
15. तंत्रयुक्त्यधिकरण - ग्रंथ की योजना
## अर्थशास्त्र की मुख्य उपलब्धियाँ और संदेश
कौटिल्य के अर्थशास्त्र ने राज्य प्रबंधन, अर्थव्यवस्था और समाज संगठन पर गहन विचार प्रस्तुत किए। इसकी प्रमुख उपलब्धियाँ और संदेश निम्नलिखित हैं:
1. **राज्य के सप्तांग सिद्धांत की प्रस्तुति**: कौटिल्य ने राज्य को सात अंगों से बना हुआ बताया - स्वामी (राजा), अमात्य (मंत्री), जनपद (क्षेत्र और जनता), दुर्ग (किलाबंद राजधानी), कोष (कोष), दण्ड (न्याय या बल) और मित्र (सहयोगी) । यह सिद्धांत राज्य के संगठनात्मक ढांचे को समझने का एक व्यवस्थित तरीका प्रदान करता है।
2. **प्रजा कल्याण पर बल**: कौटिल्य ने स्पष्ट किया कि राजा का सर्वप्रथम और श्रेष्ठ कर्तव्य प्रजा-जन का हित और उनके लिए सुख-सुविधा का विस्तार करना है । उन्होंने "रक्षण-पालन" और "योग-क्षेम" के सिद्धांतों के माध्यम से राजा की प्रजा के प्रति नैतिक जिम्मेदारियों को रेखांकित किया ।
3. **व्यावहारिक राजनीति का विज्ञान**: अर्थशास्त्र ने राजनीति को एक व्यावहारिक विज्ञान के रूप में प्रस्तुत किया, जिसमें राज्य प्रबंधन के सभी पहलुओं - कराधान, कानून प्रवर्तन, सैन्य रणनीति, आर्थिक नीति आदि पर विस्तृत मार्गदर्शन दिया गया ।
4. **षाड्गुण्य नीति**: कौटिल्य ने विदेश नीति के छह तरीकों (सन्धि, विग्रह, यान, आसन, द्वैधीभाव और आश्रय) का विस्तृत विवेचन किया जो विभिन्न परिस्थितियों में लागू किए जा सकते थे ।
5. **कानून और न्याय व्यवस्था**: ग्रंथ के तीसरे खंड में कानून और न्याय प्रशासन के पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की गई है, जिसमें संपत्ति विवाद, अनुबंध, विवाह और उत्तराधिकार से संबंधित मामले शामिल हैं ।
## अर्थशास्त्र की विशेषताएँ
कौटिल्य के अर्थशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
1. **व्यावहारिकता**: यह ग्रंथ सैद्धांतिक विमर्श से अधिक व्यावहारिक समाधानों पर केंद्रित है। कौटिल्य ने लिखा है कि यह शास्त्र "अनावश्यक विस्तार से रहित, समझने और ग्रहण करने में सरल" है ।
2. **समग्र दृष्टिकोण**: अर्थशास्त्र में राजनीति, अर्थव्यवस्था, समाजशास्त्र, सैन्य रणनीति और नैतिकता सभी को एक साथ जोड़कर देखा गया है।
3. **मानव स्वभाव की गहरी समझ**: कौटिल्य ने मानव स्वभाव की जटिलताओं को समझते हुए शासन के सिद्धांत दिए। उन्होंने राजा को काम, क्रोध, लोभ और मोह से दूर रहने की सलाह दी ।
4. **नैतिकता और व्यावहारिकता का संतुलन**: जहाँ एक ओर कौटिल्य ने राजा के नैतिक कर्तव्यों पर जोर दिया, वहीं दूसरी ओर उन्होंने राज्य हित में कूटनीति और छल के उपयोग को भी उचित ठहराया ।
5. **विविध विषयों का समावेश**: अर्थशास्त्र में कृषि, खनन, व्यापार, कर प्रणाली, सैन्य संगठन, जासूसी तंत्र, विदेश नीति आदि विषयों पर विस्तृत चर्चा मिलती है ।
## सिद्धांत देने का उद्देश्य
कौटिल्य ने अर्थशास्त्र की रचना का मुख्य उद्देश्य एक सुव्यवस्थित और शक्तिशाली राज्य की स्थापना करना था। ग्रंथ के अंत में दिए चाणक्यसूत्र (15.1) में अर्थशास्त्र की परिभाषा देते हुए वे लिखते हैं :
"मनुष्यों की वृत्ति को अर्थ कहते हैं। मनुष्यों से संयुक्त भूमि ही अर्थ है। उसकी प्राप्ति तथा पालन के उपायों की विवेचना करनेवाले शास्त्र को अर्थशास्त्र कहते हैं।"
कौटिल्य का मूल उद्देश्य था:
1. नंद वंश के कुशासन को समाप्त कर एक न्यायपूर्ण शासन व्यवस्था स्थापित करना ।
2. राज्य को आंतरिक और बाह्य खतरों से सुरक्षित रखने के उपाय बताना।
3. प्रजा के कल्याण और समृद्धि के लिए एक व्यवस्थित प्रशासनिक ढाँचा प्रस्तुत करना।
4. राजा और उसके अधिकारियों के लिए आचार संहिता निर्धारित करना।
## भारतीय सिद्धांतों के तत्व
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में निम्नलिखित भारतीय सिद्धांतों के तत्व पाए जाते हैं:
1. **धर्म का सिद्धांत**: कौटिल्य ने धर्म को राज्य के संचालन का आधार माना, हालाँकि उनका दृष्टिकोण व्यावहारिक था। उन्होंने लिखा है कि इस शास्त्र के प्रकाश में न केवल धर्म, अर्थ और काम का प्रणयन और पालन होता है अपितु अधर्म, अनर्थ तथा अवांछनीय का शमन भी होता है ।
2. **दंड नीति**: दंड (न्याय या बल) को राज्य के सात अंगों में से एक माना गया है । कौटिल्य ने दंड को समाज में व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक बताया।
3. **वर्णाश्रम व्यवस्था**: अर्थशास्त्र में वर्ण व्यवस्था का उल्लेख मिलता है, हालाँकि कौटिल्य ने योग्यता को भी महत्व दिया है। उन्होंने जनपद में शूद्रों, शिल्पियों, व्यापारियों और परिश्रमी कृषकों के निवास को आवश्यक बताया है ।
4. **पुरुषार्थ सिद्धांत**: अर्थशास्त्र में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष - इन चार पुरुषार्थों में से अर्थ को विशेष महत्व दिया गया है, क्योंकि यह अन्य तीनों की प्राप्ति का साधन है।
5. **राजधर्म का सिद्धांत**: कौटिल्य ने राजा के कर्तव्यों को विस्तार से बताया है, जो भारतीय राजधर्म परंपरा का हिस्सा है। उन्होंने राजा को "प्रजा का पिता" मानते हुए उसके कल्याणकारी कर्तव्यों पर जोर दिया ।
## निष्कर्ष
कौटिल्य का अर्थशास्त्र प्राचीन भारत की राजनीतिक चिंतन परंपरा की एक अद्वितीय कृति है जिसने न केवल अपने समय के शासन को प्रभावित किया बल्कि आधुनिक युग में भी इसकी प्रासंगिकता बनी हुई है। यह ग्रंथ राज्य प्रबंधन के विज्ञान और कला दोनों पर प्रकाश डालता है। अर्थशास्त्र की सबसे बड़ी शक्ति इसकी व्यावहारिकता और समग्र दृष्टिकोण में निहित है, जो इसे केवल एक सैद्धांतिक ग्रंथ नहीं बल्कि एक कार्यान्वयन मार्गदर्शिका बनाती है। कौटिल्य का मूल संदेश था कि एक सशक्त और समृद्ध राज्य की स्थापना तभी संभव है जब राजा प्रजा के कल्याण को सर्वोच्च प्राथमिकता दे और न्यायपूर्ण शासन व्यवस्था स्थापित करे।
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