बूढ़ी काकी कहानी की समीक्षा तथा विशेषता

# समीक्षा एवं विशेषताएँ: प्रेमचंद की कहानी 'बूढ़ी काकी'

## कहानी का सारांश
प्रेमचंद की 'बूढ़ी काकी' एक मार्मिक सामाजिक कहानी है जो वृद्धावस्था में उपेक्षा, परिवारिक स्वार्थ और मानवीय संवेदनहीनता को उजागर करती है। कहानी में बूढ़ी काकी एक वृद्ध महिला हैं जिन्होंने अपनी सारी संपत्ति भतीजे बुद्धिराम के नाम कर दी थी, परंतु बदले में उन्हें केवल उपेक्षा और अपमान मिलता है। उनकी एकमात्र सहारा बुद्धिराम की छोटी बेटी लाडली है। एक विशेष अवसर पर जब घर में पकवान बन रहे होते हैं, बूढ़ी काकी की भूख और उपेक्षा की पीड़ा एक करुणामय घटनाक्रम को जन्म देती है, जिसके बाद रूपा (बुद्धिराम की पत्नी) को अपनी गलती का एहसास होता है ।

## कहानी की समीक्षा

### 1. कथानक और विषयवस्तु
'बूढ़ी काकी' का कथानक सामाजिक यथार्थवाद का उत्कृष्ट उदाहरण है। प्रेमचंद ने भारतीय समाज में वृद्धों की दयनीय स्थिति, परिवारिक स्वार्थ और मानवीय संवेदनहीनता को बड़ी ही मार्मिकता से चित्रित किया है। कहानी की विषयवस्तु आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी प्रेमचंद के समय में थी ।

कहानी का विकास क्रमिक रूप से होता है - पहले बूढ़ी काकी की स्थिति का वर्णन, फिर उनकी भूख और उपेक्षा का मार्मिक चित्रण, और अंत में रूपा के हृदय परिवर्तन के साथ कहानी का समापन। यह क्रम पाठक के मन में गहरा प्रभाव छोड़ता है ।

### 2. पात्र और चरित्र-चित्रण
प्रेमचंद ने इस कहानी में विविध और यथार्थपूर्ण चरित्रों की रचना की है:

- **बूढ़ी काकी**: कहानी की मुख्य पात्र जो वृद्धावस्था की सभी कमजोरियों - शारीरिक अक्षमता, भावनात्मक संवेदनशीलता और जिह्वा के स्वाद के प्रति आकर्षण - का प्रतिनिधित्व करती हैं। उनका चरित्र पाठकों में गहरी सहानुभूति जगाता है ।

- **बुद्धिराम और रूपा**: स्वार्थी और कृतघ्न भतीजा-भाभी का जोड़ा जो बूढ़ी काकी की संपत्ति तो ले लेते हैं लेकिन उनकी देखभाल करने से इनकार कर देते हैं। रूपा का चरित्र विशेष रूप से जटिल है - वह एक ओर क्रोधी और निर्दयी है तो दूसरी ओर ईश्वर से डरती है, जो अंततः उसके हृदय परिवर्तन का कारण बनता है ।

- **लाडली**: कहानी में निष्कलुष मानवीय संवेदना का प्रतिनिधित्व करती है। वह बूढ़ी काकी के प्रति सच्चा स्नेह रखती है और अंततः उनकी भूख मिटाने का प्रयास करती है ।

### 3. भाषा-शैली और संवाद
प्रेमचंद की भाषा शैली इस कहानी में सरल, सहज और अत्यंत प्रभावी है। वे बूढ़ी काकी की मानसिक स्थिति को चित्रित करने के लिए मनोवैज्ञानिक विवरणों का सहारा लेते हैं, जैसे - "जिह्वा-स्वाद के सिवा और कोई चेष्टा शेष न थी" । संवाद छोटे-छोटे परंतु चरित्रों के व्यक्तित्व को उजागर करने में सक्षम हैं, विशेषकर रूपा के क्रोधित संवाद और लाडली की मासूम बातचीत ।

### 4. सामाजिक संदेश
कहानी समाज को कई महत्वपूर्ण संदेश देती है:
- परिवारिक जिम्मेदारियों और वृद्धों के प्रति कर्तव्य की ओर संकेत
- लालच और कृतघ्नता के दुष्परिणाम
- मानवीय संवेदनाओं का महत्व
- सामाजिक उत्सवों में छिपे हुए पाखंड का चित्रण 

प्रेमचंद ने इस कहानी के माध्यम से भारतीय संयुक्त परिवार प्रणाली की कमजोरियों को उजागर किया है, जहाँ वृद्ध सदस्यों को बोझ समझा जाने लगता है ।

## कहानी की प्रमुख विशेषताएँ

1. **आदर्शोन्मुख यथार्थवाद**: प्रेमचंद की विशिष्ट शैली जो कड़वे सच को दिखाने के साथ-साथ आदर्श की संभावना भी प्रस्तुत करती है। कहानी का अंत रूपा के हृदय परिवर्तन के साथ होता है, जो पाठकों को आशा की किरण दिखाता है ।

2. **मनोवैज्ञानिक गहराई**: बूढ़ी काकी के चरित्र में वृद्धावस्था की मानसिकता का सूक्ष्म चित्रण - बचपन जैसी जिद्द, भोजन के प्रति आकर्षण, और उपेक्षा की पीड़ा ।

3. **सामाजिक यथार्थ का चित्रण**: 20वीं सदी के भारतीय ग्रामीण समाज की सच्चाइयों - संपत्ति के लालच, वृद्धों की उपेक्षा, और सामाजिक अनुष्ठानों में छिपे पाखंड का यथार्थपूर्ण वर्णन ।

4. **करुणा रस की प्रधानता**: पूरी कहानी में करुणा का स्तर इतना प्रबल है कि पाठक का हृदय द्रवित हो उठता है, विशेषकर जब बूढ़ी काकी भूख से व्याकुल होकर जूठन चाटती हैं ।

5. **नैतिक शिक्षा**: कहानी स्पष्ट संदेश देती है कि संपत्ति के लालच में हमें अपने मानवीय कर्तव्यों और संवेदनाओं को नहीं भूलना चाहिए ।

## निष्कर्ष
प्रेमचंद की 'बूढ़ी काकी' हिंदी साहित्य की एक कालजयी कहानी है जो अपने यथार्थपूर्ण चित्रण, मार्मिक भावपूर्ण शैली और गहन सामाजिक संदेश के कारण आज भी प्रासंगिक बनी हुई है। यह कहानी न केवल प्रेमचंद की कथा-कला का उत्कृष्ट उदाहरण है बल्कि भारतीय समाज के लिए एक दर्पण भी है जो हमें हमारी नैतिक जिम्मेदारियों की याद दिलाता है। कहानी की सबसे बड़ी शक्ति यह है कि यह पाठक के हृदय को झकझोर देती है और समाज में परिवर्तन की प्रेरणा देती है ।

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