महादेवी वर्मा की संस्मरण भक्तिन में रेखा चित्रण की कला और साहित्यिक विशेषताएं -प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे

# महादेवी वर्मा के संस्मरण "भक्तिन" में रेखाचित्रण की कला और साहित्यिक विशेषताएँ

## भक्तिन पात्र का रेखाचित्र और उसकी विशिष्टताएँ

महादेवी वर्मा ने अपने संस्मरण "भक्तिन" (जो 'स्मृति की रेखाएँ' संग्रह में संकलित है) में एक साधारण सेविका के चरित्र को असाधारण साहित्यिक कौशल से उकेरा है। भक्तिन का रेखाचित्रण करते समय महादेवी ने निम्नलिखित विशेषताओं को उजागर किया है:

1. **शारीरिक वर्णन की सूक्ष्मता**: 
   - "छोटे कद और दुबले शरीरवाली भक्तिन अपने पतले ओठों के कोनों में दृढ़ संकल्प और छोटी आँखों में एक विचित्र समझदारी लेकर"  - इस एक वाक्य में ही महादेवी ने भक्तिन के बाह्य स्वरूप और आंतरिक गुणों का समन्वय कर दिया है।

2. **नामकरण की विडंबना**: 
   - भक्तिन का वास्तविक नाम लक्ष्मी था, जो समृद्धि का प्रतीक है, किंतु उसके जीवन में गरीबी और संघर्ष था। महादेवी ने इस विरोधाभास को रेखांकित किया है: "जैसे मेरे नाम की विशालता मेरे लिए दुर्वह है, वैसे ही लक्ष्मी की समृद्धि भक्तिन के कपाल की कुंचित रेखाओं में नहीं बँध सकी।" 

3. **स्वभावगत विशेषताएँ**: 
   - महादेवी ने भक्तिन को "सेवक-धर्म में हनुमान जी से स्पर्द्धा करने वाली"  बताया है, जो उसकी सेवाभावना और निष्ठा को दर्शाता है।
   - वह "अपना समृद्धि-सूचक नाम किसी को बताती नहीं" , जो उसकी विनम्रता और व्यावहारिक बुद्धिमत्ता को दिखाता है।

## व्यक्ति विशेष के अलौकिक गुणों का चित्रण

महादेवी वर्मा ने भक्तिन के सामान्य सेविका रूप में छिपे असाधारण गुणों को निम्न प्रकार उभारा है:

1. **अदम्य साहस और स्वाभिमान**: 
   - भक्तिन ने विमाता और सास के अत्याचारों का सामना करते हुए अपनी बेटियों की रक्षा की। जब उसके घर में अन्याय हुआ तो वह "सास को खरी-खोटी सुनाकर उसने विमाता पर आया हुआ क्रोध शांत किया और पति के ऊपर गहने फेंक-फेंककर उसने पिता के चिर विछोह की मर्मव्यथा व्यक्त की।" 

2. **अपार कष्ट सहने की क्षमता**: 
   - तीन बेटियों के जन्म पर सास और जिठानियों की उपेक्षा सहना, पति की अकाल मृत्यु के बाद संघर्ष करना - ये सभी उसकी धैर्यशीलता को दर्शाते हैं। "जिठानियाँ अपने भात पर सफेद राब रखकर गाढ़ा दूध डालती और अपने लड़कों को औटते हुए दूध पर से मलाई उतारकर खिलातीं। वह काले गुड़ की डली के साथ कठौती में मट्ठा पाती और उसकी लड़कियाँ चने-बाजरे की घुघरी चबातीं।" 

3. **अनन्य सेवाभाव**: 
   - महादेवी के प्रति उसकी निष्ठा इतनी गहरी थी कि युद्ध के समय जब उसके दामाद ने उसे ले जाने का प्रयास किया तो "वह लेखिका को अकेले छोड़कर जाने को तैयार न हुई। उसका कहना था कि जहाँ मालिकन रहेगी, वहां मैं रहूंगी, चाहे वह काल कोठरी ही क्यों न हो।" 

## साहित्यिक विशेषताएँ और कलात्मक गुण

महादेवी वर्मा ने एक सामान्य सेविका के जीवन को साहित्य के उच्चस्तरीय कलात्मक रूप में ढाला है:

1. **संस्मरण और रेखाचित्र का समन्वय**: 
   - महादेवी ने भक्तिन के जीवन को चार खंडों में प्रस्तुत किया - बचपन और विवाह, पति के साथ जीवन, विधवा जीवन और सेविका के रूप में जीवन । यह संरचना संस्मरण और रेखाचित्र दोनों विधाओं के गुणों को समेटती है।

2. **भाषा की सहजता और प्रभावोत्पादकता**: 
   - भक्तिन की बोली को सहज ढंग से प्रस्तुत करना ("तुम पचै का का बताई—यहै पचास बरिस से संग रहित है।" ) महादेवी की भाषा कौशल को दर्शाता है।

3. **सामाजिक यथार्थ का चित्रण**: 
   - भक्तिन के माध्यम से महादेवी ने ग्रामीण स्त्री जीवन के कठोर यथार्थ को उजागर किया है - बाल विवाह, विधवा जीवन की कठिनाइयाँ, स्त्री शिक्षा का अभाव आदि ।

4. **व्यंग्य और हास्य का सूक्ष्म प्रयोग**: 
   - भक्तिन की आयु को लेकर महादेवी का व्यंग्य ("इस हिसाब से मैं पचहत्तर की ठहरती हूँ और वह सौ वर्ष की आयु भी पार कर जाती है" ) पाठ को रोचक बनाता है।

5. **मनोवैज्ञानिक गहराई**: 
   - भक्तिन के चरित्र का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करते हुए महादेवी ने लिखा: "भक्तिन बहुत समझदार है, क्योंकि वह अपना समृद्धि सूचक नाम किसी को बताती नहीं।"  यह उसकी मनोदशा की सूक्ष्म समझ दर्शाता है।

## निष्कर्ष

महादेवी वर्मा ने "भक्तिन" में एक साधारण सेविका के चरित्र को असाधारण साहित्यिक महत्व प्रदान किया है। उन्होंने न केवल भक्तिन के बाह्य स्वरूप बल्कि उसके आंतरिक संघर्षों, गुणों और सामाजिक स्थिति का गहराई से चित्रण किया है। इस संस्मरण के माध्यम से महादेवी ने सिद्ध किया कि साहित्य में कोई भी व्यक्ति छोटा नहीं होता, यह लेखक की दृष्टि पर निर्भर करता है कि वह सामान्य में असामान्य कैसे खोज ले।

भक्तिन का चरित्र न केवल एक सेविका का प्रतिनिधित्व करता है बल्कि समस्त ग्रामीण भारतीय नारियों के संघर्ष, सहनशीलता और अदम्य जिजीविषा का प्रतीक बन गया है। महादेवी की यह रचना हिंदी साहित्य में संस्मरण और रेखाचित्र विधा का एक उत्कृष्ट उदाहरण मानी जाती है ।

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