मारे जाएंगे कविता का विस्तृत विश्लेषण राजेश जोशी की सामाजिक चेतना

# **"मारे जाएँगे" कविता का विस्तृत विश्लेषण: राजेश जोशी की सामाजिक चेतना**

## **1. कविता का सारांश एवं प्रमुख विषय**  
राजेश जोशी की कविता **"मारे जाएँगे"** एक कठोर यथार्थवादी रचना है, जो सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था की विद्रूपताओं, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर खतरे, और सत्ता के दमनकारी तंत्र को उजागर करती है। यह कविता **1988** में लिखी गई थी, लेकिन आज भी इसकी प्रासंगिकता बनी हुई है ।  

### **प्रमुख समस्याएँ जिन्हें कविता उठाती है:**  
1. **अभिव्यक्ति पर दमन**: जो सच बोलेंगे, उन्हें कटघरे में खड़ा कर दिया जाएगा या हिंसा का शिकार बनाया जाएगा ।  
2. **धार्मिक एवं राजनीतिक पागलपन**: धर्म के नाम पर हिंसा और जुलूसों में शामिल न होने वालों को "काफ़िर" घोषित कर दिया जाता है ।  
3. **नैतिकता का पतन**: समाज में निरपराध होना सबसे बड़ा अपराध माना जाता है, जबकि अपराधी शक्तिशाली बन जाते हैं ।  
4. **कला और संस्कृति का दमन**: जो चापलूसी नहीं करते, उन्हें कला की दुनिया से बाहर धकेल दिया जाता है ।  

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## **2. कवि का उद्देश्य एवं संदेश**  
राजेश जोशी इस कविता के माध्यम से निम्नलिखित उद्देश्यों को स्पष्ट करते हैं:  

### **(क) सत्ता और व्यवस्था की आलोचना**  
- कवि सत्ता के दोहरे चरित्र को उजागर करता है, जो दंगों को हवा देती है और फिर उन्हें रोकने का दिखावा करती है ।  
- **"सबसे बड़ा अपराध है इस समय / निहत्थे और निरपराध होना"** — यह पंक्ति सत्ता की निरंकुशता को दर्शाती है ।  

### **(ख) सामाजिक पाखंड का विरोध**  
- समाज में झूठे आदर्शों और धार्मिक कट्टरता का पर्दाफाश करना।  
- **"धर्म की ध्वजा उठाए जो नहीं जाएँगे जुलूस में / गोलियाँ भून डालेंगी उन्हें"** — यह धर्म के नाम पर होने वाली हिंसा की ओर इशारा करता है ।  

### **(ग) नैतिक साहस का आह्वान**  
- कवि चाहता है कि लोग डरकर न बैठें, बल्कि अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाएँ ।  
- **"जो सच-सच बोलेंगे, मारे जाएँगे"** — यह पंक्ति एक चुनौती की तरह है, जो सच्चाई बोलने वालों को प्रेरित करती है ।  

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## **3. सामाजिक समस्याओं को कविता के माध्यम से प्रकट करने का उद्देश्य**  
राजेश जोशी की कविता **सिर्फ़ विरोध नहीं, बल्कि एक जनचेतना का हथियार** है। उनका उद्देश्य है:  

1. **जनजागरण**: लोगों को उनके अधिकारों और सत्ता के षड्यंत्रों के प्रति सचेत करना।  
2. **साहित्य का सामाजिक दायित्व**: कवि मानते हैं कि साहित्य को केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज की बुराइयों को चुनौती देनी चाहिए ।  
3. **इतिहास का दस्तावेज़ीकरण**: यह कविता भविष्य के लिए एक चेतावनी है कि अगर समाज नहीं जागा, तो अंधकार बढ़ता रहेगा ।  

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## **4. शिल्पगत विशेषताएँ**  
- **भाषा**: सरल, प्रभावी और आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग, जिससे पाठक तक सीधा संवाद स्थापित हो ।  
- **प्रतीकात्मकता**:  
  - **"कमीज़ से ज़्यादा सफ़ेद"** → निर्दोषता का प्रतीक।  
  - **"धर्म की ध्वजा"** → धार्मिक उन्माद का प्रतीक ।  
- **दोहराव का प्रभाव**: **"मारे जाएँगे"** का बार-बार प्रयोग भयावहता को गहरा करता है ।  

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## **5. निष्कर्ष: कविता की समकालीन प्रासंगिकता**  
आज भी यह कविता उतनी ही प्रासंगिक है, क्योंकि:  
✔ **अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता** पर लगातार हमले हो रहे हैं।  
✔ **धर्म और राजनीति** के नाम पर हिंसा बढ़ रही है।  
✔ **सच्चाई बोलने वालों** को दबाया जा रहा है ।  

**राजेश जोशी की यह कविता न सिर्फ़ एक विरोध है, बल्कि एक जंग का ऐलान है — सच्चाई के पक्ष में खड़े होने का।**

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