महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले: एक क्रांतिकारी जीवन एवं योगदान
# महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले: एक क्रांतिकारी जीवन एवं योगदान
## महात्मा ज्योतिबा फुले का जीवन चरित्र
महात्मा ज्योतिबा फुले (11 अप्रैल 1827 - 28 नवंबर 1890) भारत के महान समाज सुधारक, विचारक, शिक्षाविद और लेखक थे। उनका जन्म महाराष्ट्र के सातारा जिले के कटगुण गाँव में हुआ था। मात्र नौ महीने की आयु में माँ को खो देने के बाद उनका पालन-पोषण एक नौकरानी ने किया, जिसने उन्हें सामाजिक असमानता का प्रारंभिक अनुभव कराया ।
1840 में मात्र 13 वर्ष की आयु में उनका विवाह 9 वर्षीय सावित्रीबाई फुले से हुआ। स्कॉटिश मिशन हाईस्कूल में शिक्षा प्राप्त करते समय उन्हें जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा, जिसने उनके मन में समाज सुधार के बीज बोए । 1888 में उन्हें "महात्मा" (महान आत्मा) की उपाधि से सम्मानित किया गया।
## शिक्षा के क्षेत्र में योगदान
### शिक्षा दर्शन
फुले का शिक्षा दर्शन समाज के सबसे वंचित वर्गों - महिलाओं, दलितों और शूद्रों - के उत्थान पर केंद्रित था। उनका मानना था कि "विद्या बिना मति गई, मति गई तो नीति गई, नीति गई तब गति ना रही, गति ना रही तो वित्त गया" - यह श्लोक उनके शिक्षा के प्रति दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है ।
### ऐतिहासिक शैक्षणिक पहल
1848 में फुले ने पुणे के भिडेवाड़ा में भारत का पहला लड़कियों का विद्यालय स्थापित किया, जिसमें विभिन्न जातियों की नौ छात्राएँ थीं । 1853 तक उन्होंने पुणे और आसपास के क्षेत्रों में 18 स्कूल खोले, जिनमें से तीन विशेष रूप से दलित बालिकाओं के लिए थे ।
### शिक्षा सुधार हेतु संघर्ष
1882 में हंटर शिक्षा आयोग के समक्ष उन्होंने एक ऐतिहासिक प्रस्ताव प्रस्तुत किया, जिसमें सरकारी शिक्षा प्रणाली में व्याप्त जातिगत भेदभाव और ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के अभाव की ओर ध्यान आकर्षित किया ।
## सावित्रीबाई फुले का जीवन एवं योगदान
### प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा
सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के नायगांव में हुआ था। मात्र 9 वर्ष की आयु में उनका विवाह ज्योतिबा फुले से हो गया। अपने पति के प्रोत्साहन से उन्होंने शिक्षा प्राप्त की और अहमदनगर व पुणे में शिक्षक प्रशिक्षण लिया ।
### शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका
सावित्रीबाई भारत की पहली महिला शिक्षिका बनीं और 1848 में स्थापित पहले बालिका विद्यालय की प्राचार्या बनीं । विद्यालय जाते समय उन पर गोबर और पत्थर फेंके जाते थे, लेकिन वे हमेशा एक अतिरिक्त साड़ी साथ लेकर चलती थीं ताकि गंदी हो जाने पर बदल सकें ।
### सामाजिक सुधार में योगदान
1854 में उन्होंने विधवाओं के लिए एक आश्रय स्थल स्थापित किया और 1864 में परिवार से निकाली गई बेसहारा स्त्रियों, विधवाओं और बालिका वधुओं के लिए एक बड़े आश्रय स्थल का निर्माण किया । उन्होंने एक ब्राह्मण विधवा के पुत्र यशवंतराव को गोद भी लिया ।
### काव्य साहित्य में योगदान
सावित्रीबाई एक प्रतिभाशाली कवयित्री भी थीं, जिन्हें आधुनिक मराठी काव्य की अग्रदूत माना जाता है। उनकी कविताओं में मानवतावाद, स्वतंत्रता, समानता, भाईचारा, तर्कवाद और शिक्षा के महत्व जैसे मूल्यों की अभिव्यक्ति होती है ।
## महात्मा फुले का सामाजिक-राजनीतिक योगदान
### सत्यशोधक समाज की स्थापना
1873 में फुले ने सत्यशोधक समाज (सत्य की खोज करने वालों का समाज) की स्थापना की, जिसका उद्देश्य जाति व्यवस्था और ब्राह्मणवादी वर्चस्व को चुनौती देना था । इस संगठन ने सत्यशोधक विवाह प्रथा शुरू की, जिसमें दहेज नहीं लिया जाता था ।
### जाति व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष
फुले ने जातिवाद के खिलाफ जन आंदोलन चलाया और समाज में समानता, न्याय और दायित्वपूर्ण व्यवहार के लिए अभियान चलाया । उन्होंने दलितों को गाँव के सार्वजनिक कुएं से पानी पीने के अधिकार के लिए संघर्ष किया और अपने घर के पिछवाड़े में एक कुआँ खोदकर उन्हें पानी उपलब्ध कराया ।
### साहित्यिक योगदान
फुले ने 'गुलामगिरी' (1873), 'किसान का कोड़ा' और 'ब्राह्मणाचे कसब' जैसे महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की, जिनमें उन्होंने जातिगत भेदभाव और सामाजिक अन्याय की कटु आलोचना की । 'शेतकऱ्यांचे आसूड' उनका एक अन्य प्रसिद्ध ग्रंथ है जिसमें उन्होंने किसानों के शोषण को उजागर किया ।
### राजनीतिक विचारधारा
फुले की राजनीतिक विचारधारा लोकतांत्रिक समाजवाद और सामाजिक न्याय पर आधारित थी। उन्होंने शोषित वर्ग की राजनीतिक भागीदारी की वकालत की और उनके अधिकारों के लिए संघर्ष किया ।
## विरासत एवं प्रभाव
फुले दंपति का कार्य भारतीय सामाजिक सुधार आंदोलन में मील का पत्थर साबित हुआ। डॉ. बी.आर. आंबेडकर सहित अनेक समाज सुधारकों पर उनका गहरा प्रभाव पड़ा । महाराष्ट्र को "फुले-शाहू-आंबेडकर का महाराष्ट्र" कहा जाता है, जो इन तीन महान समाज सुधारकों के योगदान को दर्शाता है ।
2014 में पुणे विश्वविद्यालय का नाम बदलकर सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय कर दिया गया, जो उनके शैक्षणिक योगदान को सम्मान देने का प्रतीक है ।
## निष्कर्ष
महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले ने अपना सम्पूर्ण जीवन सामाजिक न्याय, शिक्षा के प्रसार और महिला सशक्तिकरण के लिए समर्पित कर दिया। उनका मानना था कि शिक्षा ही वह माध्यम है जिससे महिलाएँ और दबे-कुचले वर्ग सशक्त बन सकते हैं । उनके द्वारा किए गए सामाजिक-शैक्षणिक सुधारों ने भारतीय समाज को एक नई दिशा दिखाई और आज भी करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं।
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