बाजार कविता की विस्तृत समीक्षा और विश्लेषण

# **जया जादवानी की कविता "बाजार" का विस्तृत विश्लेषण**

## **1. कविता का सारांश एवं कथानक**  
जया जादवानी की कविता **"बाजार"** आधुनिक उपभोक्तावादी संस्कृति और उसके द्वारा मानवीय मूल्यों के क्षरण पर एक तीखा व्यंग्य है। यह कविता बाजार के माध्यम से समाज में फैले भौतिकवाद, अमानवीयता और संवेदनहीनता को उजागर करती है।  

### **कथानक की संरचना**  
- कविता में **बाजार** को एक प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जहाँ हर चीज़—भावनाएँ, रिश्ते, मानवीय संवेदनाएँ—सिर्फ़ एक **वस्तु** बनकर रह गई हैं।  
- कवयित्री बताती हैं कि बाजार ने इंसान की **आत्मा तक को खरीद लिया** है और अब वहाँ सिर्फ़ दिखावा, झूठ और स्वार्थ बचा है।  
- **"बाजार में बिकती हैं आँखें, बिकता है दर्द"** जैसी पंक्तियाँ समाज की संवेदनशून्यता को दर्शाती हैं।  

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## **2. कविता का उद्देश्य**  
जया जादवानी इस कविता के माध्यम से निम्नलिखित उद्देश्यों को स्पष्ट करती हैं:  

### **(क) उपभोक्तावाद की आलोचना**  
- बाजार ने मनुष्य को **ग्राहक** बना दिया है, जहाँ वह सिर्फ़ खरीदने और बेचने की मशीन बनकर रह गया है।  
- **"बाजार ने चेहरों पर मुस्कान चिपका दी है, पर दिलों में अँधेरा है"** — यह पंक्ति दिखावे और असलियत के अंतर को दर्शाती है।  

### **(ख) मानवीय संबंधों का व्यवसायीकरण**  
- कवयित्री बताती हैं कि आज प्यार, दोस्ती और विश्वास भी **लेन-देन** का हिस्सा बन गए हैं।  
- **"रिश्तों की कीमत लगाई जाती है, भावनाएँ डिस्काउंट पर मिलती हैं"** — यह समाज में बढ़ते अकेलेपन और भावनात्मक शून्यता की ओर इशारा करता है।  

### **(ग) संवेदनाओं के मरने की पीड़ा**  
- कविता में **"बाजार में मर चुकी हैं आवाज़ें"** जैसी पंक्तियाँ बताती हैं कि समाज में सच बोलने वालों की आवाज़ दबा दी गई है।  
- कवयित्री चाहती हैं कि लोग **वस्तु न बनें**, बल्कि अपनी मानवीयता को बचाएँ।  

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## **3. बाजार किसका हो गया है?**  
- **पूँजीपतियों और सत्ताधारियों का**: बाजार अब सिर्फ़ धन और सत्ता के हाथों में खेलने वाला खिलौना बन गया है।  
- **झूठ और प्रपंच का**: यहाँ सच्चाई की कोई कीमत नहीं, सिर्फ़ दिखावे का महत्व है।  
- **भावनाओं के शोषण का**: बाजार ने इंसान की भावनाओं तक को मुनाफ़े का साधन बना लिया है, जैसे—**"दर्द बेचो, सुख खरीदो"**।  

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## **4. कवि का संदेश**  
जया जादवानी इस कविता के माध्यम से समाज को निम्नलिखित संदेश देना चाहती हैं:  
1. **भौतिकवाद से मुक्ति**: लोगों को पैसे और दिखावे के पीछे न भागकर **असली मूल्यों** को पहचानना चाहिए।  
2. **संवेदनशील बनें**: रिश्तों और भावनाओं को **व्यापार** न बनाएँ।  
3. **सच्चाई की आवाज़ उठाएँ**: बाजार के झूठे प्रभाव से बचकर **सामूहिक चेतना** जगाएँ।  

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## **5. सामाजिक स्थिति और आवश्यक बदलाव**  
### **(क) वर्तमान स्थिति**  
- समाज में **अकेलापन** बढ़ रहा है, क्योंकि लोगों के पास **समय नहीं**, सिर्फ़ पैसा है।  
- **नैतिक मूल्यों का पतन** हो रहा है—ईमानदारी, प्रेम और सहानुभूति की जगह स्वार्थ ने ले ली है।  

### **(ख) आवश्यक बदलाव**  
1. **भौतिकता से ऊपर उठकर** मानवीय संबंधों को महत्व दें।  
2. **सच्ची खुशी** की तलाश करें, जो बाजार में नहीं, बल्कि सरल जीवन में मिलती है।  
3. **सामूहिक जागरूकता** फैलाएँ ताकि बाजार की गुलामी से मुक्त हुआ जा सके।  

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## **6. कविता की विशेषताएँ**  
1. **प्रतीकात्मक भाषा**: बाजार, दर्द, आवाज़ जैसे प्रतीकों के माध्यम से गहरी सामाजिक आलोचना।  
2. **व्यंग्यात्मक शैली**: सरल शब्दों में गहरी चोट करने वाली अभिव्यक्ति।  
3. **यथार्थवादी चित्रण**: आज के समाज की वास्तविक तस्वीर को बिना लाग-लपेट के प्रस्तुत करना।  

### **निष्कर्ष**  
जया जादवानी की यह कविता **आधुनिक बाजारवाद पर एक करारा प्रहार** है, जो पाठकों को सोचने पर मजबूर करती है। यह न सिर्फ़ समस्या को उजागर करती है, बल्कि **समाधान की राह** भी दिखाती है—सच्चाई, संवेदना और सामूहिक जागरूकता के माध्यम से बाजार के प्रभाव से मुक्ति पाना।

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