महात्मा बसवेश्वर (बसवण्णा) का जीवन एवं दर्शन-प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे

# **महात्मा बसवेश्वर (बसवण्णा) का जीवन एवं दर्शन**  

## **1. जीवन परिचय**  
महात्मा **बसवेश्वर (बसवण्णा)** (1134–1196 ई.) 12वीं शताब्दी के क्रांतिकारी समाज सुधारक, दार्शनिक, कवि और लिंगायत संप्रदाय के प्रवर्तक थे। उनका जन्म **कर्नाटक के बागेवाडी (वर्तमान बेलगावी जिले)** में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था, लेकिन उन्होंने जाति-पांत, वर्णाश्रम और धार्मिक कर्मकांडों का विरोध किया। उन्होंने **शरण साहित्य** की रचना की और **अनुभव मंटप** (एक ज्ञान-चर्चा केंद्र) की स्थापना की, जहाँ सभी वर्गों के लोग बिना भेदभाव के विचार-विमर्श करते थे।  

## **2. वचन साहित्य**  
बसवेश्वर ने **वचन साहित्य** (कन्नड़ भाषा में लिखे गए छोटे-छोटे गद्य रचनाएँ) के माध्यम से अपने विचार प्रस्तुत किए। ये वचन सरल भाषा में लिखे गए हैं और इनमें **भक्ति, नैतिकता, सामाजिक समानता और आध्यात्मिक ज्ञान** का समन्वय है।  

### **प्रमुख वचन उदाहरण:**  
- **"कायकवे कैलास"** (कर्म ही पूजा है) – यह उनका प्रसिद्ध सिद्धांत है, जिसमें उन्होंने ईमानदार श्रम को ईश्वर की सच्ची उपासना बताया।  
- **"तन तपस्वी, मन तपस्वी"** – शरीर और मन दोनों की पवित्रता पर जोर।  
- **"जाति-जाति जाति, जाति केवल मनुष्यनागबेकु"** (जाति-जाति का शोर, लेकिन अंततः सभी मनुष्य ही हैं)।  

## **3. उपदेश एवं दर्शन**  
बसवेश्वर के उपदेशों का मूल आधार **समानता, नैतिकता और आध्यात्मिक जागृति** था। उनके प्रमुख सिद्धांत हैं:  
- **समता (समानता):** उन्होंने जाति, लिंग और वर्ग के आधार पर भेदभाव का विरोध किया।  
- **कर्मयोग:** ईमानदारी से काम करना ही सच्ची भक्ति है।  
- **स्त्री समानता:** उन्होंने महिलाओं को धार्मिक और सामाजिक अधिकार दिए। उनकी शिष्या **अक्का महादेवी** एक प्रसिद्ध संत बनीं।  
- **अहिंसा एवं सत्य:** हिंसा, छल और पाखंड का विरोध किया।  

## **4. समता के समर्थक**  
बसवेश्वर ने **जाति व्यवस्था और अस्पृश्यता** का घोर विरोध किया। उन्होंने:  
- **अंतरजातीय विवाह** को प्रोत्साहित किया।  
- **दलितों और महिलाओं** को धार्मिक अधिकार दिए।  
- **सामूहिक भोज (संगम)** की प्रथा शुरू की, जिसमें सभी जातियों के लोग एक साथ बैठकर भोजन करते थे।  

## **5. कायकवे कैलास (कर्म ही पूजा है)**  
यह बसवेश्वर का प्रमुख सिद्धांत था, जिसमें उन्होंने कहा कि **ईमानदारी से किया गया श्रम ही ईश्वर की सच्ची उपासना है**। उन्होंने व्यापारियों, किसानों, शिल्पकारों को सम्मान दिया और बताया कि कोई भी काम छोटा नहीं होता।  

## **6. शिष्य परंपरा**  
बसवेश्वर के प्रमुख शिष्य थे:  
- **अक्का महादेवी** (प्रसिद्ध महिला संत)  
- **अल्लम प्रभु** (दार्शनिक)  
- **चेन्नबसवण्णा** (समाज सुधारक)  
- **सिद्धरामेश्वर** (भक्त कवि)  

इन शिष्यों ने लिंगायत परंपरा को आगे बढ़ाया और वचन साहित्य का विस्तार किया।  

## **7. कल्याण के मंत्री के रूप में कार्य**  
बसवेश्वर **कल्याण के कलचुरी राजा बिज्जला के दरबार में मंत्री** रहे। इस पद का उपयोग उन्होंने **सामाजिक सुधारों** के लिए किया। उन्होंने:  
- राज्य में **न्यायपूर्ण शासन** स्थापित किया।  
- **गरीबों और दलितों** के हित में काम किया।  
- **धार्मिक कट्टरता** के खिलाफ आवाज उठाई।  

लेकिन रूढ़िवादियों के विरोध के कारण उन्हें पद छोड़ना पड़ा।  

## **8. कुडलसंगम की विशेषता**  
**कुडलसंगम** बसवेश्वर द्वारा स्थापित एक **आध्यात्मिक-सामाजिक संस्था** थी, जहाँ:  
- सभी जाति और वर्ग के लोग स्वतंत्र रूप से चर्चा करते थे।  
- धार्मिक ग्रंथों की व्याख्या होती थी।  
- समाज सुधार के कार्यक्रम चलाए जाते थे।  

यह संगम **लोकतांत्रिक और समावेशी** था, जहाँ महिलाएँ भी नेतृत्व करती थीं।  

## **9. अंतरजातीय विवाह के समर्थक**  
बसवेश्वर ने **जाति बंधन तोड़ने** के लिए अंतरजातीय विवाह को प्रोत्साहित किया। उन्होंने:  
- **शुद्र और ब्राह्मणों के बीच विवाह** का समर्थन किया।  
- **दलितों को समान अधिकार** दिलाने के लिए आंदोलन चलाया।  
- **विवाह में दहेज प्रथा** का विरोध किया।  

## **10. निधन एवं विरासत**  
1196 ई. में उनका निधन हो गया, लेकिन उनके विचारों ने **लिंगायत संप्रदाय** को जन्म दिया, जो आज भी कर्नाटक में प्रभावशाली है। उन्हें **कर्नाटक के सामाजिक क्रांति के अग्रदूत** के रूप में याद किया जाता है।  

### **निष्कर्ष:**  
बसवेश्वर एक युगदृष्टा थे, जिन्होंने **धर्म, समाज और राजनीति** में क्रांतिकारी परिवर्तन किए। उनका **"कायकवे कैलास"** का सिद्धांत आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने भारत में **समानता, श्रम का सम्मान और स्त्री-शिक्षा** का मार्ग प्रशस्त किया।  

आज भी उनके वचन और दर्शन लाखों लोगों को प्रेरित करते हैं।

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