हिंदी साहित्य का काल विभाजन एवं आदि का-प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे
# हिंदी साहित्य का काल विभाजन एवं आदिकाल
## हिंदी साहित्य के काल विभाजन के आधार
हिंदी साहित्य के काल विभाजन के लिए विद्वानों ने विभिन्न आधारों को स्वीकार किया है:
1. **ऐतिहासिक आधार**: राजनीतिक परिवर्तन, शासक वंशों का उत्थान-पतन
2. **सांस्कृतिक आधार**: सामाजिक-धार्मिक परिस्थितियाँ, भक्ति आंदोलन का प्रभाव
3. **साहित्यिक आधार**: भाषा का विकास, साहित्यिक विधाओं का उदय, प्रवृत्तियाँ
4. **भाषा विकास का आधार**: अपभ्रंश से हिंदी तक का विकास क्रम
## हिंदी साहित्य का काल विभाजन एवं नामकरण
हिंदी साहित्य के काल विभाजन को लेकर विद्वानों में मतभेद रहे हैं। प्रमुख विद्वानों द्वारा प्रस्तुत काल विभाजन इस प्रकार है:
### आचार्य रामचंद्र शुक्ल का काल विभाजन (हिंदी साहित्य का इतिहास, 1929):
1. **आदिकाल (वीरगाथा काल)**: 1050 ई. से 1375 ई. तक
2. **भक्तिकाल**: 1375 ई. से 1700 ई. तक
3. **रीतिकाल**: 1700 ई. से 1900 ई. तक
4. **आधुनिक काल**: 1900 ई. से अब तक
### आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का काल विभाजन:
1. **आदिकाल**: 8वीं शताब्दी से 14वीं शताब्दी तक
2. **भक्तिकाल**: 14वीं शताब्दी से 17वीं शताब्दी तक
3. **रीतिकाल**: 17वीं शताब्दी से 19वीं शताब्दी तक
4. **आधुनिक काल**: 19वीं शताब्दी से अब तक
### डॉ. नगेंद्र का काल विभाजन:
1. **प्रारंभिक काल (संधि काल)**: 700 ई. से 1400 ई. तक
2. **मध्यकाल**: 1400 ई. से 1800 ई. तक
3. **आधुनिक काल**: 1800 ई. से अब तक
## आदिकाल: विशेषताएँ एवं प्रमुख रचनाएँ (1050-1375 ई.)
### नामकरण के विवाद:
- **आचार्य रामचंद्र शुक्ल**: वीरगाथा काल (वीर रस प्रधान रचनाओं के कारण)
- **आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी**: सिद्ध-सामंत काल (सिद्ध साहित्य और सामंतों के आश्रय के कारण)
- **डॉ. रामकुमार वर्मा**: चारण काल (चारण कवियों के कारण)
- **डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी**: बीजवपन काल (हिंदी साहित्य के बीजारोपण के कारण)
### आदिकाल की प्रमुख विशेषताएँ:
1. **वीर रस की प्रधानता**: इस काल में वीर रस प्रधान रचनाएँ लिखी गईं
2. **दरबारी संस्कृति का प्रभाव**: राजाओं और सामंतों की प्रशस्ति में रचनाएँ
3. **धार्मिक सहिष्णुता**: हिंदू और जैन साहित्य का समान विकास
4. **भाषा का संक्रमण काल**: अपभ्रंश से हिंदी की ओर परिवर्तन
5. **ऐतिहासिकता**: ऐतिहासिक घटनाओं और व्यक्तियों पर आधारित रचनाएँ
### प्रमुख रचनाएँ एवं रचनाकार:
#### जैन साहित्य:
- **स्वयंभू**: पउमचरिउ (पद्मावत की कथा)
- **पुष्पदंत**: महापुराण, णायकुमार चरिउ
- **देवसेन**: शावकाचार
#### सिद्ध साहित्य:
- **सरहपा**: दोहाकोश
- **कण्हपा**: चर्यापद
#### अपभ्रंश साहित्य:
- **अब्दुल रहमान**: संदेश रासक
- **अमीर खुसरो**: पहेलियाँ, मुकरियाँ
#### वीरगाथात्मक साहित्य:
- **चंदबरदाई**: पृथ्वीराज रासो (हिंदी की प्रथम महाकाव्यात्मक रचना)
- **नरपति नाल्ह**: बीसलदेव रासो
- **जगनिक**: आल्हाखण्ड (परमाल रासो)
#### लौकिक साहित्य:
- **विद्यापति**: कीर्तिलता, कीर्तिपताका (मैथिली में रचना)
### भाषा की विशेषताएँ:
1. अपभ्रंश का हिंदी में परिवर्तन काल
2. डिंगल और पिंगल शैली का प्रयोग
3. प्रादेशिक भाषाओं का प्रभाव
4. संस्कृत, प्राकृत और देशज शब्दों का मिश्रण
## निष्कर्ष
हिंदी साहित्य के आदिकाल को हिंदी साहित्य का प्रारंभिक या बीजारोपण काल माना जाता है। यह काल हिंदी साहित्य के विकास की नींव तैयार करता है जिसमें भाषा और साहित्य दोनों का विकास हो रहा था। विभिन्न विद्वानों द्वारा इस काल के विभिन्न नामकरणों के पीछे उनके दृष्टिकोण और मूल्यांकन के आधार छिपे हैं। आदिकाल की रचनाओं में ऐतिहासिकता, वीर रस और धार्मिक सहिष्णुता की प्रधानता देखने को मिलती है। यह काल हिंदी साहित्य के इतिहास में एक महत्वपूर्ण संक्रमण काल के रूप में जाना जाता है जिसने भक्तिकाल के लिए आधार तैयार किया।
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