संत कबीर का जीवन दर्शन एक व्यापक अध्ययन-प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे
# संत कबीर का जीवन दर्शन: एक व्यापक अध्ययन
## जीवन परिचय एवं ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
संत कबीर दास 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और समाज सुधारक थे जिन्होंने भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया। उनका जन्म विक्रमी संवत 1455 (सन 1398 ई.) में ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को काशी (वर्तमान वाराणसी) के लहरतारा तालाब में हुआ माना जाता है । कबीर के जन्म को लेकर अनेक किंवदंतियाँ प्रचलित हैं - एक मान्यता के अनुसार उनका जन्म एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से हुआ था जिसने लोकलाज के भय से शिशु को लहरतारा तालाब में छोड़ दिया था । वहीं दूसरी मान्यता यह है कि कबीर सशरीर कमल पर प्रकट हुए थे जहाँ से नीरू और नीमा नामक जुलाहा दंपति ने उन्हें उठाकर पालन-पोषण किया ।
कबीर का पालन-पोषण नीरू (पिता) और नीमा (माता) नामक निम्न जाति के जुलाहा (बुनकर) दंपति ने किया, जो मुस्लिम परिवार से थे । उन्होंने अपने पालक पिता का पारिवारिक व्यवसाय कपड़ा बुनने का काम अपनाया और आजीवन इसी से अपना निर्वाह किया । कबीर का विवाह लोई नामक महिला से हुआ था जिससे उन्हें कमाल (पुत्र) और कमाली (पुत्री) नामक दो संतानें हुईं ।
कबीर की मृत्यु विक्रमी संवत 1551 (सन 1494 ई.) में मगहर (वर्तमान उत्तर प्रदेश) में हुई । हालाँकि कुछ विद्वानों के अनुसार उनका निधन 1518 ई. में हुआ था । मृत्यु के बाद हिंदू और मुसलमान दोनों ने उनके शरीर पर दावा किया, जिसके परिणामस्वरूप एक चमत्कार हुआ - जब चादर हटाई गई तो वहाँ केवल फूल पाए गए ।
## गुरु परंपरा एवं शिष्य परंपरा
कबीर ने स्वामी रामानंद को अपना गुरु बनाया, हालाँकि उनकी दीक्षा की कथा भी अद्भुत है। कबीर सागर के अनुसार, रामानंद जी निम्न जाति के लोगों को दीक्षा नहीं देते थे। कबीर ने एक दिन जब रामानंद जी सुबह नहाने जा रहे थे, तब ढाई साल के बच्चे का रूप धारण करके घाट की सीढ़ियों पर लेट गए। रामानंद जी का पैर कबीर को लगा तो वे रोने लगे। रामानंद जी ने उन्हें उठाया और "राम" नाम जपने को कहा। इस प्रकार रामानंद जी कबीर के गुरु बने और उन्होंने निम्न जातियों के प्रति भेदभाव करना बंद कर दिया ।
कबीर की शिष्य परंपरा में धर्मदास का नाम सर्वाधिक प्रसिद्ध है। धर्मदास ने ही कबीर की वाणियों को संकलित कर "बीजक" नामक ग्रंथ की रचना की । कबीर पंथ नामक सम्प्रदाय उनकी शिक्षाओं के अनुयायियों द्वारा स्थापित किया गया जो आज भी सक्रिय है ।
## कबीर का दर्शन एवं जीवन संदेश
### निर्गुण निराकार ईश्वर की आराधना
कबीर निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे और ईश्वर के निराकार स्वरूप में विश्वास रखते थे। उनका मानना था कि ईश्वर सर्वव्यापी है और उसके गुणों का वर्णन नहीं किया जा सकता। वह अजन्मा, निर्विकार और अगोचर है जो प्रत्येक के हृदय में विराजमान है । कबीर कहते हैं:
"जो तिल माही तेल, चकमक में आगि, तेरा साईं तुझ में है, जागि सके सो जागि"
### पाखंड, कर्मकांड और अंधविश्वास के विरुद्ध संघर्ष
कबीर ने अपने समय में प्रचलित पाखंड, कर्मकांड और अंधविश्वासों की कड़ी आलोचना की। वे मूर्ति पूजा, जाति-पाति के भेदभाव, धार्मिक आडंबरों और बाह्याचारों के विरोधी थे । उन्होंने हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों में व्याप्त कुरीतियों पर प्रहार किया:
"पाथर पूजे हरी मिले, तो मैं पूजूँ पहाड़।
घर की चक्की कोई न पूजे, जाको पीस खाए संसार।"
### सामाजिक समानता का संदेश
कबीर ने जाति और धर्म के बंधनों को तोड़ने का प्रयास किया। उन्होंने मानव मात्र की एक जाति बताई और मानवता को ही सच्चा धर्म कहा । वे कहते हैं:
"जाति-पाति पूछे नहिं कोई, हरि को भजे सो हरि का होई।"
### सत्य और आत्मज्ञान पर बल
कबीर के दर्शन में सत्य का महत्वपूर्ण स्थान है। वे सत्य को परम तत्व मानते थे और उसे धारण करने को मानवता का आधार बताया :
"सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हृदय सांच है, ताके हृदय आप।"
## साहित्यिक रचनाएँ एवं काव्यगत विशेषताएँ
### प्रमुख रचनाएँ
कबीर निरक्षर थे - "मसि कागद छूयो नहीं, कलम गहो नहिं हाथ" । उनकी वाणी को उनके शिष्यों ने संकलित किया जिनमें प्रमुख हैं:
1. **बीजक**: कबीर की वाणी का मुख्य संग्रह जिसे उनके शिष्य धर्मदास ने संकलित किया। इसमें तीन प्रमुख भाग हैं:
- साखी (दोहों के रूप में उपदेश)
- सबद (गेय पद)
- रमैनी (दार्शनिक विचार)
2. **कबीर ग्रंथावली**: कबीर की विभिन्न रचनाओं का संकलन
3. **गुरुग्रंथ साहिब** में संकलित वाणियाँ: सिख धर्म के पवित्र ग्रंथ में कबीर के कुछ पद सम्मिलित हैं
### भाषा शैली
कबीर की भाषा को "सधुक्कड़ी" या "पंचमेल खिचड़ी" कहा जाता है जिसमें हिंदी की विभिन्न बोलियों (ब्रजभाषा, अवधी, राजस्थानी, पंजाबी) के साथ-साथ अरबी-फारसी के शब्द भी मिलते हैं । उनकी भाषा सरल, स्पष्ट और तीखे व्यंग्य से युक्त थी जो आम जनता तक आसानी से पहुँच सके।
### काव्यगत विशेषताएँ
1. **निर्गुण भक्ति की अभिव्यक्ति**: कबीर निर्गुण भक्ति धारा के प्रमुख कवि हैं जो ईश्वर को सगुण रूप में न मानकर निराकार रूप में मानते हैं ।
2. **उपदेशात्मक शैली**: उनकी रचनाओं में सीधे-सपाट ढंग से जीवन के सत्यों को प्रस्तुत किया गया है।
3. **दार्शनिक गहराई**: रमैनी में कबीर के दार्शनिक विचारों की गहन अभिव्यक्ति मिलती है ।
4. **लोकजीवन की अभिव्यक्ति**: उन्होंने सामान्य जन की भाषा और उनकी समस्याओं को अपनी रचनाओं में स्थान दिया।
5. **विरोधाभासी शैली**: कबीर ने अक्सर विरोधाभासी शब्दों का प्रयोग कर गहन दार्शनिक तथ्यों को सरल ढंग से समझाया।
## ऐतिहासिक प्रभाव एवं विरासत
कबीर का प्रभाव केवल उनके समय तक सीमित नहीं रहा। उनके विचारों ने भारतीय समाज और साहित्य को गहरे तक प्रभावित किया:
1. **भक्ति आंदोलन**: कबीर भक्ति आंदोलन के प्रमुख स्तंभ थे जिसने जाति-पाति के बंधनों को तोड़ने का प्रयास किया ।
2. **सिख धर्म**: गुरु नानक देव जी सहित सिख गुरुओं पर कबीर का गहरा प्रभाव था। गुरुग्रंथ साहिब में उनकी वाणियाँ सम्मिलित हैं ।
3. **कबीर पंथ**: उनके अनुयायियों ने कबीर पंथ की स्थापना की जो आज भी सक्रिय है ।
4. **सामाजिक सुधार**: कबीर के विचारों ने भारतीय समाज में व्याप्त कुरीतियों के विरुद्ध जागरूकता फैलाई ।
5. **साहित्यिक प्रभाव**: हिंदी साहित्य की निर्गुण भक्ति धारा को कबीर ने नई दिशा दी ।
## निष्कर्ष
संत कबीर मध्यकालीन भारत के एक ऐसे विलक्षण संत थे जिन्होंने अपनी सरल परंतु गहन वाणी से समाज के हर वर्ग को प्रभावित किया। निरक्षर होते हुए भी उन्होंने ज्ञान के जिस स्रोत को प्रवाहित किया, वह आज भी प्रासंगिक है। धार्मिक पाखंड, सामाजिक कुरीतियों और अंधविश्वासों के विरुद्ध उनका संघर्ष, निर्गुण निराकार ईश्वर की उपासना का उनका दर्शन और मानव मात्र के प्रति प्रेम का उनका संदेश उन्हें युगों-युगों तक स्मरणीय बनाए रखेगा। कबीर का जीवन दर्शन आज के समय में और भी अधिक प्रासंगिक हो गया है जब समाज को सच्चे मानवीय मूल्यों की आवश्यकता है।
Comments
Post a Comment