पृथ्वीराज रासो का साहित्यिक परिचय-प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे

# पृथ्वीराज रासो: साहित्यिक परिचय

## मूल परिचय एवं ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

पृथ्वीराज रासो हिंदी साहित्य के आदिकाल (वीरगाथा काल) का एक प्रमुख महाकाव्य है जिसमें दिल्ली के अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान (1177-1192 ई.) के जीवन चरित्र का वर्णन किया गया है। यह रचना चंदबरदाई नामक कवि की मानी जाती है जो पृथ्वीराज के बचपन के मित्र, सामंत और राजकवि थे । इस ग्रंथ को हिंदी का प्रथम महाकाव्य माना जाता है ।

## रचनाकाल एवं प्रामाणिकता पर विवाद

पृथ्वीराज रासो के रचनाकाल को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं:
- परंपरागत मान्यता: 12वीं शताब्दी (पृथ्वीराज के समकालीन) 
- आधुनिक विद्वानों का मत: 16वीं शताब्दी (अकबर के काल में रचित) 

इस विवाद के प्रमुख कारण:
- रासो में उल्लिखित संवत ऐतिहासिक तथ्यों से मेल नहीं खाते 
- चंगेज खान, तैमूर जैसे बाद के शासकों का उल्लेख 
- सबसे प्राचीन उपलब्ध प्रति 1610 ई. की है 

## भाषा एवं शैली

- **भाषा**: मुख्यतः ब्रजभाषा (पिंगल शैली) में रचित, किंतु राजस्थानी एवं डिंगल के तत्व भी मिलते हैं 
- **छंद योजना**: कवित्त (छप्पय), दोहा, तोमर, त्रोटक, गाहा और आर्या सहित प्राचीन छंदों का प्रयोग 
- **शैली**: वीर रस प्रधान, उपदेशात्मक एवं वर्णनात्मक शैली 

## कथा संरचना एवं विषयवस्तु

पृथ्वीराज रासो एक विशाल ग्रंथ है जिसके विभिन्न संस्करणों में 400 से 16,306 छंद तक पाए जाते हैं । मुख्य संस्करण में 69 सर्ग (अध्याय) हैं । प्रमुख घटनाएँ:

1. पृथ्वीराज का जन्म एवं राज्याभिषेक
2. संयोगिता हरण की प्रसिद्ध घटना 
3. मोहम्मद गोरी से युद्ध एवं पराजय
4. शब्दभेदी बाण द्वारा गोरी वध की कथा 
5. पृथ्वीराज एवं चंदबरदाई की आत्मबलिदान की गाथा 

## साहित्यिक विशेषताएँ

1. **वीर रस की प्रधानता**: युद्ध वर्णन एवं शौर्य प्रदर्शन के प्रसंग 
2. **ऐतिहासिकता एवं कल्पना का मिश्रण**: कुछ ऐतिहासिक तथ्यों के साथ कवि की कल्पना का समावेश 
3. **समाज चित्रण**: 12वीं शताब्दी के राजपूत युग की सामंती संस्कृति, युद्ध पद्धति एवं सामाजिक जीवन का विस्तृत वर्णन 
4. **चरित्र चित्रण**: पृथ्वीराज के व्यक्तित्व का बहुआयामी चित्रण - वीर योद्धा, प्रेमी एवं दुर्बल राजा के रूप में 
5. **भाषाई विविधता**: ब्रजभाषा के साथ-साथ अरबी-फारसी शब्दों का प्रयोग 

## पाठ संस्करण

पृथ्वीराज रासो चार प्रमुख संस्करणों में उपलब्ध है :
1. **लघुतम संस्करण**: सबसे प्राचीन (1610 ई.), लगभग 1,300 छंद
2. **लघु संस्करण**: 1,600 छंद
3. **मध्यम संस्करण**: 3,500 छंद
4. **वृहत संस्करण**: 16,306 छंद (1703 ई. में मेवाड़ दरबार द्वारा संकलित)

## आलोचनात्मक मूल्यांकन

साहित्यिक दृष्टि से पृथ्वीराज रासो की कुछ सीमाएँ:
- कथानक में शिथिलता एवं विस्तार की अति 
- ऐतिहासिक अशुद्धियाँ एवं काल्पनिक तत्वों की अधिकता 
- चरित्रों का एकांगी विकास 
- विवाह एवं मृगया के अत्यधिक वर्णन से कथावस्तु का संतुलन बिगड़ना 

## निष्कर्ष

पृथ्वीराज रासो हिंदी साहित्य के आदिकाल की एक महत्वपूर्ण कृति है जो अपनी वीर रसपूर्ण शैली, ऐतिहासिक आख्यान और सामंती संस्कृति के विशद चित्रण के कारण विशिष्ट स्थान रखती है। भले ही इसकी ऐतिहासिक प्रामाणिकता पर प्रश्न उठाए जाते हों, किंतु साहित्यिक दृष्टि से यह हिंदी की प्रथम महाकाव्यात्मक रचना के रूप में स्वीकार्य है। इसके माध्यम से हमें मध्यकालीन भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य की झलक मिलती है ।

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