वेद उदभव विकास -प्रा। डॉ संघप्रकाश दुड्डे

भारतीय संस्कृति और दर्शन के आधारस्तंभ चार  वेद** (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद) हैं, जिन्हें **श्रुति** (ईश्वरीय ज्ञान) माना जाता है। ये वैदिक साहित्य के प्रमुख ग्रंथ हैं और हिंदू धर्म के मूल स्रोत माने जाते हैं।  

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## **1. ऋग्वेद (Rigveda)**
### **उद्भव एवं विकास:**
- ऋग्वेद सबसे प्राचीन वेद है, जिसकी रचना **लगभग 1500-1200 ईसा पूर्व** हुई मानी जाती है।
- यह **आर्यों के प्रारंभिक काल** का साहित्य है और इसमें प्रकृति, देवताओं और यज्ञों की स्तुतियाँ हैं।

### **रचना एवं संरचना:**
- इसमें **10 मंडल, 1028 सूक्त** (ऋचाएँ) और **10,600 मंत्र** हैं।
- प्रमुख ऋषि: **विश्वामित्र, वशिष्ठ, भारद्वाज, अत्रि** आदि।
- देवता: **इंद्र, अग्नि, वरुण, सोम, उषा** आदि।

### **विशेषताएँ:**
- इसमें **प्रकृति पूजा, दार्शनिक चिंतन और यज्ञ-कर्म** पर बल दिया गया है।
- **पुरुषसूक्त (10.90)** में सृष्टि की उत्पत्ति का वर्णन है।
- **गायत्री मंत्र (3.62.10)** इसी वेद से लिया गया है।

### **उद्देश्य:**
- मनुष्य को **धर्म, कर्म और ईश्वर भक्ति** की शिक्षा देना।
- यज्ञों के माध्यम से देवताओं को प्रसन्न करना।

### **विस्तार:**
- ऋग्वेद की दो शाखाएँ हैं: **शाकल और बाष्कल**।
- इस पर **आचार्य सायण** ने भाष्य लिखा।

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## **2. यजुर्वेद (Yajurveda)**
### **उद्भव एवं विकास:**
- यजुर्वेद का निर्माण **लगभग 1200-1000 ईसा पूर्व** हुआ।
- यह **यज्ञ-कर्म प्रधान** वेद है और इसमें **गद्य एवं पद्य** दोनों का मिश्रण है।

### **रचना एवं संरचना:**
- दो भागों में विभाजित:
  1. **कृष्ण यजुर्वेद** (अनुष्ठानों के साथ मंत्र)
  2. **शुक्ल यजुर्वेद** (केवल मंत्र)
- इसमें **40 अध्याय** और **1975 मंत्र** हैं।

### **विशेषताएँ:**
- **यज्ञ विधियों, अनुष्ठानों और कर्मकांडों** का विस्तृत वर्णन।
- **ईशावास्योपनिषद्** (शुक्ल यजुर्वेद का अंतिम अध्याय) प्रमुख दार्शनिक उपनिषद् है।

### **उद्देश्य:**
- यज्ञों के नियमों और विधियों का ज्ञान देना।
- **कर्मकांड और आचार-विचार** की शिक्षा प्रदान करना।

### **विस्तार:**
- शुक्ल यजुर्वेद की **माध्यंदिन और काण्व** शाखाएँ प्रसिद्ध हैं।

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## **3. सामवेद (Samaveda)**
### **उद्भव एवं विकास:**
- सामवेद **लगभग 1000-800 ईसा पूर्व** रचा गया।
- इसे **संगीत का वेद** कहा जाता है क्योंकि इसमें ऋग्वेद के मंत्रों को **स्वरों में गायन योग्य** बनाया गया है।

### **रचना एवं संरचना:**
- इसमें **1875 मंत्र** हैं, जिनमें से **75 मूल** हैं और शेष ऋग्वेद से लिए गए हैं।
- **3 शाखाएँ**: कौथुम, राणायनीय, जैमिनीय।

### **विशेषताएँ:**
- **सामगान (संगीतमय मंत्रों का पाठ)** इसकी प्रमुख विशेषता है।
- **उद्गातृ** पुरोहित इसके मंत्रों का गान करते थे।

### **उद्देश्य:**
- यज्ञों में **मंत्रों के संगीतमय पाठ** द्वारा देवताओं को आह्वान करना।
- **भक्ति और संगीत** को प्रोत्साहित करना।

### **विस्तार:**
- सामवेद से ही **भरत मुनि के नाट्यशास्त्र** और भारतीय शास्त्रीय संगीत की नींव पड़ी।

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## **4. अथर्ववेद (Atharvaveda)**
( वेदों में अथर्ववेद भी महत्वपूर्ण है।)

### **उद्भव एवं विकास:**
- अथर्ववेद **लगभग 1000-800 ईसा पूर्व** रचा गया।
- इसे **जादू-टोना, आयुर्वेद और लोकजीवन** का वेद कहा जाता है।

### **रचना एवं संरचना:**
- **20 कांड, 730 सूक्त और 6000 मंत्र** हैं।
- प्रमुख ऋषि: **अथर्वा और अंगिरा**।

### **विशेषताएँ:**
- **रोग निवारण, शांति कर्म, विवाह, राजकाज** आदि से संबंधित मंत्र।
- **भूत-प्रेत, मंत्र-तंत्र** से संबंधित जानकारी।

### **उद्देश्य:**
- **सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन** के लिए उपयोगी ज्ञान देना।
- **आयुर्वेद और ज्योतिष** का आधार।

### **विस्तार:**
- इसकी **पिप्पलाद और शौनक** शाखाएँ प्रसिद्ध हैं।

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## **निष्कर्ष:**
| वेद         | प्रमुख विषय          | मंत्र संख्या | उद्देश्य                     |
|-------------|----------------------|--------------|-----------------------------|
| **ऋग्वेद**  | देव स्तुतियाँ        | 10,600       | धर्म और दर्शन               |
| **यजुर्वेद**| यज्ञ विधियाँ         | 1,975        | कर्मकांड                   |
| **सामवेद**  | संगीतमय मंत्र        | 1,875        | भक्ति और संगीत             |
| **अथर्ववेद**| जादू-टोना, आयुर्वेद  | 6,000        | लोकजीवन और चिकित्सा       |

चारों वेद **भारतीय संस्कृति, दर्शन, विज्ञान और सामाजिक व्यवस्था** के मूल आधार हैं। इनमें **ज्ञान, कर्म और उपासना** का समन्वय है, जो मनुष्य को **धार्मिक, नैतिक और आध्यात्मिक** मार्गदर्शन प्रदान करता है।

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