पालि त्रिपिटक साहित्य: एक विस्तृत परिचय-प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे
# पालि त्रिपिटक साहित्य: एक विस्तृत परिचय
## 1. त्रिपिटक का परिचय
पालि त्रिपिटक बौद्ध धर्म का सर्वाधिक प्रामाणिक और प्राचीनतम ग्रंथ समूह है जिसे "तीन टोकरियाँ" (Three Baskets) के रूप में जाना जाता है। यह भगवान बुद्ध के उपदेशों, बौद्ध संघ के नियमों और बौद्ध दर्शन का विशद विवेचन प्रस्तुत करता है। त्रिपिटक को बौद्ध धर्म का "पालि कैनन" भी कहा जाता है ।
पालि भाषा भारत की सबसे प्राचीन ज्ञात भाषाओं में से एक है जिसे प्रारंभ में धम्म लिपि में लिखा जाता था। बुद्धकाल में यह भारत के जनमानस की सामान्य भाषा थी और तथागत बुद्ध ने अपने उपदेश इसी भाषा में दिए थे ।
## 2. त्रिपिटक के तीन प्रमुख भाग
त्रिपिटक को तीन पिटकों (संग्रहों) में विभाजित किया गया है :
### (क) विनयपिटक
- **विषय**: बौद्ध संघ के अनुशासन, नियम और संयम
- **उपविभाग**:
- महावग्ग
- चुलवग्ग
- पाराजिक
- पाचित्तिय
- परिवार
- **विशेषता**: इसमें भिक्षुओं और भिक्षुणियों के लिए नियमों का संग्रह है जो उनके दैनिक आचरण और जीवनशैली को निर्देशित करते हैं ।
### (ख) सुत्तपिटक
- **विषय**: भगवान बुद्ध के उपदेशों और संवादों का संकलन
- **उपविभाग** (5 निकाय):
1. दीघ निकाय (लंबे उपदेश)
2. मज्झिम निकाय (मध्यम लंबाई के उपदेश)
3. संयुत्त निकाय (संबंधित उपदेशों का समूह)
4. अंगुत्तर निकाय (एक से अधिक विषयों पर उपदेश)
5. खुद्दक निकाय (छोटे उपदेशों का संग्रह)
- **विशेषता**: इसमें धर्म, ध्यान और जीवन के गूढ़ तत्वों को समझाने वाले उपदेश शामिल हैं ।
### (ग) अभिधम्मपिटक
- **विषय**: बौद्ध धर्म के दार्शनिक सिद्धांतों का विस्तृत विवेचन
- **उपविभाग** (7 ग्रंथ):
1. धम्मसंगणि
2. विभंग
3. धातुकथा
4. पुग्गलपञती
5. कथावत्थु
6. यमक
7. पट्ठान
- **विशेषता**: यह बौद्ध तत्त्वज्ञान का वैज्ञानिक विवेचन प्रस्तुत करता है।
## 3. त्रिपिटक की विशेषताएँ
1. **प्राचीनता**: यह बौद्ध धर्म का सबसे प्राचीन ग्रंथ समूह है जिसका संकलन ईसा पूर्व छठी शताब्दी से ईसा पूर्व पहली शताब्दी के बीच हुआ ।
2. **व्यापकता**: त्रिपिटक में 84,000 धर्म स्कन्धों का उल्लेख मिलता है जो बुद्ध के उपदेशों की विशालता को दर्शाता है ।
3. **ऐतिहासिक महत्व**: सुत्तपिटक में बुद्धकालीन सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक परिस्थितियों का विवरण मिलता है ।
4. **शैलीगत विविधता**: इसमें गद्य, पद्य, कथा, संवाद, प्रश्नोत्तर आदि विविध साहित्यिक शैलियों का प्रयोग हुआ है।
5. **वैज्ञानिक दृष्टिकोण**: अभिधम्मपिटक में मनोविज्ञान, तर्कशास्त्र और दर्शन का वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है।
## 4. त्रिपिटक का लिपिबद्धीकरण
त्रिपिटक का लिपिबद्धीकरण एक लंबी प्रक्रिया थी जिसमें तीन महत्वपूर्ण संगीतियों (सम्मेलनों) का योगदान रहा :
1. **प्रथम संगीति** (483 ईसा पूर्व): बुद्ध के निर्वाण के चार माह बाद राजगृह में आयोजित। महाकाश्यप की अध्यक्षता में 500 भिक्षुओं ने बुद्ध के उपदेशों को स्मृति से संकलित किया।
2. **द्वितीय संगीति** (383 ईसा पूर्व): वैशाली में 700 भिक्षुओं द्वारा आयोजित। इसमें विनयपिटक में संशोधन किया गया।
3. **तृतीय संगीति** (250 ईसा पूर्व): सम्राट अशोक के शासनकाल में पाटलिपुत्र में मोग्गलिपुत्त तिस्स की अध्यक्षता में आयोजित। इसी में अभिधम्मपिटक को अंतिम रूप दिया गया।
पालि त्रिपिटक को पहली बार लिखित रूप में श्रीलंका में पहली शताब्दी ईसा पूर्व में संरक्षित किया गया था ।
## 5. त्रिपिटक का आकार और संरचना
- **सूत्रों की संख्या**: त्रिपिटक में हजारों सूत्र समाहित हैं। केवल सुत्तपिटक के पाँच निकायों में ही 10,000 से अधिक सूत्र हैं ।
- **शब्दों की संख्या**: सम्पूर्ण त्रिपिटक में लगभग 15,000 पृष्ठों का साहित्य है जिसमें लाखों शब्द हैं। एक अनुमान के अनुसार, केवल सुत्तपिटक में ही लगभग 1.5 मिलियन शब्द हैं।
- **ग्रंथों की संख्या**: तीनों पिटकों को मिलाकर कुल 45 ग्रंथ हैं (विनयपिटक - 5, सुत्तपिटक - 5 निकायों में 30+ ग्रंथ, अभिधम्मपिटक - 7 ग्रंथ) ।
## 6. पालि भाषा का महत्व
त्रिपिटक की भाषा के रूप में पालि के चयन के कई कारण हैं :
1. **लोकभाषा**: पालि उस समय की जनसामान्य की भाषा थी जिसे अधिकांश लोग समझ सकते थे, जबकि संस्कृत केवल विद्वानों तक सीमित थी।
2. **बुद्ध की भाषा नीति**: बुद्ध ने जानबूझकर अपने उपदेश स्थानीय भाषाओं में दिए ताकि वे सामान्य जन तक पहुँच सकें।
3. **सरलता**: पालि संस्कृत की तुलना में सरल थी जिसमें ऋ, क्ष, त्र, ज्ञ, ऐ, औ जैसे जटिल अक्षर नहीं थे ।
4. **प्रामाणिकता**: पालि में बुद्ध के मूल उपदेश संरक्षित हुए जबकि संस्कृत अनुवादों में कई परिवर्तन हुए।
5. **ऐतिहासिक निरंतरता**: पालि भाषा को 'प्रथम प्राकृत' की संज्ञा दी जाती है और यह भारत की प्राचीनतम ज्ञात भाषाओं में से एक है ।
## 7. निष्कर्ष
पालि त्रिपिटक न केवल बौद्ध धर्म बल्कि सम्पूर्ण भारतीय दर्शन और संस्कृति की अमूल्य धरोहर है। इसकी भाषा पालि ने इसे जनसामान्य तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। त्रिपिटक की विशालता, विविधता और गहन दार्शनिक विवेचन इसे विश्व साहित्य की अनुपम कृति बनाते हैं। आज भी यह बौद्ध धर्म के अध्ययन का केन्द्रीय ग्रंथ है और विश्वभर के विद्वानों द्वारा इसका अध्ययन किया जाता है ।
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