महापंडित राहुल सांकृत्यायन: एक बहुआयामी जीवन और युगांतरकारी योगदान-प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे

# महापंडित राहुल सांकृत्यायन: एक बहुआयामी जीवन और युगांतरकारी योगदान

## जीवन परिचय और व्यक्तित्व

महापंडित राहुल सांकृत्यायन (9 अप्रैल 1893 - 14 अप्रैल 1963) आधुनिक भारत के सर्वाधिक विलक्षण बौद्धिक व्यक्तित्वों में से एक थे। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के पंदहा गाँव में एक संपन्न ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका मूल नाम केदारनाथ पाण्डे था, जो बाद में बौद्ध धर्म अपनाने पर 'राहुल' और गोत्र के आधार पर 'सांकृत्यायन' हो गया ।

राहुल जी का बचपन ननिहाल में बीता जहाँ उनके नाना पंडित राम शरण पाठक के फौजी अनुभवों और यात्रा वृतांतों ने उनके मन में घुमक्कड़ी के बीज बोए। एक घटना जब घी की मटकी फूट गई और नाना के डर से वे घर से भाग गए, ने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी ।

उनका व्यक्तित्व अद्भुत विरोधाभासों से भरा था - एक ओर वे कट्टर सनातनी परिवार से थे तो दूसरी ओर साम्यवादी विचारधारा को अपनाया; एक ओर बौद्ध भिक्षु बने तो दूसरी ओर पुनर्जन्मवाद को नहीं मानते थे । उन्हें "महापंडित", "त्रिपिटकाचार्य", "घुमक्कड़ राज" जैसे उपाधियों से सम्मानित किया गया ।

## साहित्यिक योगदान

राहुल सांकृत्यायन ने हिंदी साहित्य को एक नई दिशा दी और उन्हें "हिंदी यात्रा साहित्य का जनक" कहा जाता है । उन्होंने 120 से अधिक पुस्तकें लिखीं जिनमें 50,000 से अधिक पृष्ठों का साहित्य समाहित है ।

### प्रमुख रचनाएँ:
- **यात्रा वृतांत**: 'वोल्गा से गंगा', 'मेरी जीवन यात्रा', 'किन्नर देश की ओर', 'कुमाऊ', 'दार्जिलिंग परिचय', 'यात्रा के पन्ने', 'ल्हासा की ओर', 'मेरी लद्दाख यात्रा' 
- **दार्शनिक ग्रंथ**: 'बौद्ध दर्शन', 'दर्शन-दिग्दर्शन', 'वैज्ञानिक भौतिकवाद' 
- **ऐतिहासिक कृतियाँ**: 'मध्य एशिया का इतिहास', 'बौद्ध संस्कृति'
- **सामाजिक उपन्यास**: 'सतमी के बच्चे', 'जीने के लिए', 'सिंह सेनापति' 
- **आत्मकथा**: 'मेरी जीवन यात्रा' (चार भागों में) 

राहुल जी ने यात्रा साहित्य को एक नया आयाम दिया। उनके यात्रा वृतांतों में केवल भौगोलिक विवरण नहीं होते थे बल्कि उस क्षेत्र के इतिहास, संस्कृति, आर्थिक स्थिति और सामाजिक संरचना का गहन विश्लेषण होता था । उनकी पुस्तक 'घुमक्कड़ शास्त्र' में उन्होंने यात्रा को मानव मुक्ति का साधन बताया ।

## त्रिपिटक का अध्ययन और बौद्ध धर्म में योगदान

राहुल सांकृत्यायन ने बौद्ध धर्म के मूल ग्रंथ त्रिपिटक का गहन अध्ययन किया। उन्होंने पाली भाषा सीखी और 'मध्यम निकाय' जैसे महत्वपूर्ण बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन किया जिसमें बौद्ध प्रवचनों का वर्णन है ।

1927 में वे श्रीलंका गए जहाँ उन्होंने 19 महीने तक बौद्ध धर्म का अध्ययन किया और त्रिपिटक पर महारत हासिल की । 1930 में श्रीलंका में ही उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकार किया और 'रामोदर साधु' से 'राहुल' बने ।

राहुल जी ने बौद्ध दर्शन पर कई मौलिक ग्रंथ लिखे जिनमें 'बौद्ध दर्शन' विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इस पुस्तक में उन्होंने बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों - चार आर्य सत्य, अष्टांगिक मार्ग, करुणा और अहिंसा के दर्शन को विस्तार से समझाया ।

## तिब्बत की यात्राएँ और बौद्ध ग्रंथों का भारत में आगमन

राहुल सांकृत्यायन ने तिब्बत की चार ऐतिहासिक यात्राएँ कीं (1926, 1933-34, 1936, 1938) जिनका उद्देश्य भारत के खोए हुए बौद्ध ग्रंथों को वापस लाना था ।

### प्रमुख यात्राएँ और उपलब्धियाँ:
1. **1926 की पहली यात्रा**: अधिकतर पैदल, केवल एक कुत्ता साथी था। नेपाली वेशभूषा धारण करनी पड़ी क्योंकि तिब्बती अंग्रेजी साम्राज्य के विस्तार के कारण भारतीयों से सतर्क थे ।
2. **1933-34 की दूसरी यात्रा**: इस यात्रा में उनकी मुलाकात तिब्बती दार्शनिक गेदुन चोफेल से हुई जो उनके घनिष्ठ मित्र बने और भारत भी आए ।
3. **1936 की तीसरी यात्रा**: सबसे महत्वपूर्ण यात्रा, जिसमें उन्होंने 15,000 फीट की ऊँचाई पर न्यालम से शिगात्से तक यात्रा की और संस्कृत में ताड़ के पत्तों पर लिखी अमूल्य पांडुलिपियाँ खोजीं ।
4. **1938 की चौथी यात्रा**: साम्ये मठ का दौरा किया जहाँ नालंदा के विद्वान संतरक्षित ने पहले सात तिब्बती भिक्षुओं को दीक्षा दी थी ।

इन यात्राओं के दौरान राहुल जी ने नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालयों के अनेक दुर्लभ ग्रंथों को खोज निकाला जिन्हें 12वीं शताब्दी में मुस्लिम आक्रमणों के समय बौद्ध भिक्षु तिब्बत ले गए थे । उन्होंने संस्कृत, पाली और अन्य भाषाओं में लिखित हजारों पांडुलिपियों को खच्चरों पर लादकर भारत लाया जो अब पटना संग्रहालय में सुरक्षित हैं ।

## अनुवाद कार्य और भाषाई योगदान

राहुल सांकृत्यायन एक प्रख्यात बहुभाषाविद् थे जिन्हें संस्कृत, हिंदी, भोजपुरी, अंग्रेजी, तमिल, कन्नड़, पाली, उर्दू, सिंहली, तिब्बती और रूसी सहित कई भाषाओं का ज्ञान था ।

### उनके प्रमुख अनुवाद कार्य:
- बौद्ध ग्रंथों का संस्कृत और हिंदी में अनुवाद
- रूसी साहित्य का हिंदी अनुवाद
- तिब्बती ग्रंथों का हिंदी में रूपांतरण
- 'मध्यम निकाय' जैसे पाली ग्रंथों का हिंदी अनुवाद 

उन्होंने कई भाषाओं के कोश भी तैयार किए और व्याकरण पर कार्य किया। भाषा विज्ञान के क्षेत्र में उनका योगदान अतुलनीय है ।

## श्रीलंका में बौद्ध अध्ययन और भिक्षु जीवन

1927 में राहुल जी पहली बार श्रीलंका गए जहाँ उन्होंने 19 महीने तक बौद्ध धर्म का गहन अध्ययन किया । इस दौरान उन्होंने पाली भाषा सीखी और त्रिपिटक ग्रंथों पर महारत हासिल की।

1930 में श्रीलंका में ही उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकार किया और 'राहुल' नाम धारण किया । वे भिक्षु बने और बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में लग गए। हालाँकि बाद में उन्होंने बौद्ध धर्म के पुनर्जन्मवाद को नहीं स्वीकारा और मार्क्सवाद की ओर उन्मुख हुए ।

## पुरातात्विक खोजें और बौद्ध तीर्थ यात्राएँ

राहुल सांकृत्यायन ने बौद्ध तीर्थ स्थलों की व्यापक यात्राएँ कीं और कई पुरातात्विक खोजें कीं:
- बोधगया, सारनाथ, कुशीनगर जैसे प्रमुख बौद्ध तीर्थों का भ्रमण
- नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालयों के अवशेषों का अध्ययन
- तिब्बत में साम्ये मठ जैसे प्राचीन बौद्ध केंद्रों की खोज 
- भारतीय शैली की प्राचीन स्क्रॉल पेंटिंग्स की खोज 

उनकी यात्राओं ने भारत और तिब्बत के बीच के प्राचीन सांस्कृतिक संबंधों को फिर से उजागर किया ।

## अंतर्राष्ट्रीय यात्राएँ और विश्व दर्शन

राहुल सांकृत्यायन ने भारत के अलावा कई देशों की यात्राएँ कीं जिनसे उनके विश्वदर्शन का विस्तार हुआ:

### रूस की यात्रा:
- 1935 में पहली बार सोवियत संघ गए
- 1937 में लेनिनग्राद (अब सेंट पीटर्सबर्ग) में संस्कृत के शिक्षक रहे 
- सोवियत समाजवाद से प्रभावित हुए और कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बने 

### जापान, कोरिया और मंचूरिया:
- 1935 में जापान, कोरिया और मंचूरिया की यात्रा की 
- वहाँ के बौद्ध मठों और विद्वानों के साथ संवाद किया

### यूरोप की यात्रा:
- 1932-33 में इंग्लैंड और यूरोप के विभिन्न देशों का भ्रमण 
- वहाँ के पुस्तकालयों में भारतीय ग्रंथों का अध्ययन

### ईरान की यात्रा:
- 1936 में ईरान गए 
- वहाँ के प्राचीन सभ्यता के अवशेषों का अध्ययन

## 'मेरी जीवन यात्रा' और दार्शनिक विकास

राहुल सांकृत्यायन की आत्मकथा 'मेरी जीवन यात्रा' चार भागों में उनके सम्पूर्ण जीवन दर्शन को प्रस्तुत करती है। इसमें उनके धार्मिक और दार्शनिक विकास का विस्तृत वर्णन है:

1. **सनातन धर्म से आर्य समाज**: प्रारंभ में सनातन धर्म से जुड़े, फिर आर्य समाज की ओर उन्मुख हुए 
2. **आर्य समाज से बौद्ध धर्म**: आर्य समाज की सीमाओं को पार कर बौद्ध धर्म अपनाया 
3. **बौद्ध धर्म से मानव धर्म**: अंततः मानव कल्याण को केन्द्र में रखकर मार्क्सवाद की ओर उन्मुख हुए 

उनका मानना था कि "उपदेश पार उतरने के लिए हैं, सिर पर ढोये-ढोये फिरने के लिए नहीं" । यही कारण था कि वे किसी एक विचारधारा में बंधकर नहीं रहे।

## सम्मान और विरासत

राहुल सांकृत्यायन को उनके अतुलनीय योगदान के लिए कई सम्मान मिले:
- 1958: साहित्य अकादमी पुरस्कार 
- 1963: पद्म भूषण (मरणोपरांत) 
- 'महापंडित' और 'त्रिपिटकाचार्य' की उपाधि 

14 अप्रैल 1963 को दार्जिलिंग में उनका निधन हो गया । आज भी उनकी विद्वता, घुमक्कड़ी और बहुआयामी प्र

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