रासो साहित्य की विशेषताएं-प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे
रासो साहित्य मध्यकालीन हिंदी साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा है, जो मुख्यतः **वीरगाथात्मक** और **शौर्यपूर्ण** रचनाओं से जुड़ी है। यह मुख्यतः **राजस्थानी और ब्रजभाषा** में लिखा गया और इसकी प्रमुख रचनाएँ **चारण एवं भाट कवियों** द्वारा रचित हैं।
### **रासो साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ:**
1. **वीर रस प्रधान:**
- रासो साहित्य में युद्ध, शौर्य, बलिदान और वीरता के प्रसंग मुख्य हैं।
- इसमें राजाओं, योद्धाओं और सामंतों की वीरगाथाएँ वर्णित हैं।
2. **ऐतिहासिकता एवं पौराणिकता का मिश्रण:**
- रासो काव्यों में ऐतिहासिक घटनाओं के साथ-साथ पौराणिक और लोककथाओं का समावेश होता है।
- इनमें वास्तविक इतिहास और कल्पना का सुंदर संयोजन मिलता है।
3. **चारण एवं भाट कवियों की रचनाएँ:**
- ये रचनाएँ मुख्यतः चारण और भाट कवियों द्वारा गाई जाती थीं, जो राजदरबारों में राजाओं की प्रशंसा में गाथाएँ सुनाते थे।
4. **राजस्थानी एवं ब्रजभाषा का प्रयोग:**
- रासो साहित्य की भाषा सरल, ओजस्वी और प्रभावशाली है, जिसमें राजस्थानी और ब्रजभाषा का मिश्रण है।
5. **अलंकारिक शैली:**
- इसमें उपमा, रूपक, अतिशयोक्ति जैसे अलंकारों का भरपूर प्रयोग होता है।
- छंद और लयबद्धता पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
6. **प्रमुख रचनाएँ:**
- **पृथ्वीराज रासो** (चंदबरदाई द्वारा)
- **बीसलदेव रासो** (नरपति नाल्ह द्वारा)
- **खुमाण रासो**
- **हम्मीर रासो**
7. **लोकप्रियता एवं मौखिक परंपरा:**
- रासो ग्रंथों को मौखिक रूप से गाया और सुनाया जाता था, जिससे ये जनसामान्य में लोकप्रिय हुए।
### **निष्कर्ष:**
रासो साहित्य मध्यकालीन भारत के वीरों की गाथाओं का प्रतीक है, जिसमें ऐतिहासिकता, वीर रस और लोकसंस्कृति का अनूठा संगम है। यह हिंदी साहित्य के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
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