भदन्त जगदीश काश्यप: जीवन, कार्य एवं धम्म-प्रचार का अग्रदूत -प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे

### भदन्त जगदीश काश्यप: जीवन, कार्य एवं धम्म-प्रचार का अग्रदूत  

#### **1. जीवन परिचय एवं आध्यात्मिक परिवर्तन**  
- **जन्म एवं शिक्षा**: जगदीश नारायण काश्यप का जन्म 2 मई 1908 को राँची, बिहार (अब झारखण्ड) के एक कायस्थ परिवार में हुआ। उन्होंने 1929 में पटना कॉलेज से बी.ए. और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में एम.ए. किया।  
- **आर्य समाज से मोहभंग**: प्रारम्भ में आर्य समाज से जुड़े रहे, परन्तु जातिगत भेदभाव देखकर विरक्त हो गए। राहुल सांकृत्यायन के सम्पर्क में आने के बाद बौद्ध धर्म के प्रति आकर्षित हुए।  
- **दीक्षा**: 1934 में श्रीलंका में भिक्षु धम्मानंद महाथेर से प्रवज्या ली और "भिक्षु जगदीश काश्यप" नाम धारण किया। श्रीलंका के विद्यालंकार परिवेण से 'ति-पिटकाचार्य' की उपाधि प्राप्त की।  

#### **2. साहित्यिक योगदान: पालि एवं बौद्ध ग्रन्थों का संरक्षण**  
- **प्रमुख कृतियाँ**:  
  - **पालि व्याकरण**: *पालि महाव्याकरण*, *पालि निस्सेनी* (लघु व्याकरण), और *अभिधम्म फिलॉसफी* जैसे ग्रंथों के माध्यम से पालि भाषा का व्यवस्थित अध्ययन संभव बनाया।  
  - **अनुवाद कार्य**: *दीघनिकाय* (हिन्दी अनुवाद), *मिलिंद प्रश्न*, *संयुत्तनिकाय* (भाग-2), और *सुत्तनिपात* जैसे ग्रन्थों को हिन्दी में अनूदित कर जनसुलभ बनाया।  
  - **मौलिक ग्रंथ**: *बुद्धिज्म फॉर एवरीबडी*, *बुद्धिस्ट आउटलुक* जैसी रचनाओं में बौद्ध दर्शन को आधुनिक संदर्भों से जोड़ा।  
- **पालि भाषा पर शोध**:  
  - "पालि" शब्द की व्युत्पत्ति पर मौलिक विवाद। पारम्परिक "पंक्ति" (पाठ की पंक्ति) के स्थान पर *परियाय* (पर्याय) शब्द से उत्पत्ति का सिद्धांत प्रस्तुत किया, जो सम्राट अशोक के भाब्रू शिलालेख में "धम्म पलियाय" से समर्थित है।  

#### **3. त्रिपिटक अनुवाद में भूमिका: हिन्दी में ज्ञान का प्रसार**  
- **ऐतिहासिक परियोजना**: भदन्त आनन्द कौसल्यायन और राहुल सांकृत्यायन के साथ मिलकर सम्पूर्ण त्रिपिटक का हिन्दी अनुवाद किया। यह कार्य 41 भागों में *नागरी लिपि में प्रकाशित त्रिपिटक* के रूप में पूरा हुआ।  
- **शैक्षिक महत्व**: अनुवाद के दौरान मूल पालि पाठों की टीकाएँ और व्याख्याएँ जोड़कर शोधार्थियों के लिए प्रामाणिक सन्दर्भ निर्मित किया।  

#### **4. धम्म प्रचार-प्रसार: शिक्षा एवं सामाजिक सुधार**  
- **नालन्दा पुनरुद्धार**: 1951 में **नव नालन्दा महाविहार** की स्थापना कर बौद्ध अध्ययन को संस्थागत आधार दिया। राहुल सांकृत्यायन के साथ तिब्बती पांडुलिपियों के संग्रह को भारत वापस लाने में भूमिका निभाई।  
- **जनशिक्षण**: सारनाथ की महाबोधि सोसायटी के साथ दलित बच्चों के लिए स्कूल चलाकर शिक्षा का प्रसार किया। वाराणसी विद्यापीठ में पालि पढ़ाकर छात्रों को प्रशिक्षित किया।  
- **व्यावहारिक धम्म**: "कालाम सुत्त" के सिद्धांत को आधार बनाया, जिसमें बुद्ध ने बिना तर्क के किसी बात को स्वीकार न करने का संदेश दिया है। यह तर्कसंगत चिंतन को बढ़ावा देने वाला दृष्टिकोण था।  

#### **5. भाषा शैली: वैज्ञानिकता एवं सरलता का समन्वय**  
- **शैक्षिक लेखन**: पालि व्याकरण और दर्शन पर ग्रंथों में **तकनीकी शुद्धता** पर बल, जैसे—तर्क शास्त्र पर *आगमन* एवं *निगमन* जैसे ग्रंथ।  
- **जनसुलभ भाषा**: अनुवादों में सरल हिन्दी का प्रयोग कर आम पाठकों तक बौद्ध सिद्धांतों को पहुँचाया। *बुद्धिज्म फॉर एवरीबडी* जैसी कृतियों में जटिल विचारों को सरल उदाहरणों से समझाया।  

#### **6. जीवन संदेश: तर्क, साधना एवं सामाजिक दायित्व**  
- **वैज्ञानिक दृष्टिकोण**: बुद्ध के "कालाम सुत्त" को आदर्श मानते हुए **तर्कपूर्ण स्वीकृति** पर जोर दिया।  
- **ध्यान साधना**: श्रीलंका के शालागल जंगल में एक वर्ष तक *सतिपट्ठान* (विपश्यना) का गहन अभ्यास किया, जिसे उन्होंने आध्यात्मिक विकास के लिए अनिवार्य माना।  
- **सामाजिक समता**: शिक्षण संस्थाओं में दलित वर्ग के बच्चों को शिक्षित कर जातिगत विषमता के विरुद्ध कार्य किया।  

#### **7. विशेषताएँ: बहुआयामी व्यक्तित्व**  
- **अध्ययन-अध्यापन का समन्वय**: विद्वता के साथ शिक्षण कार्य को जोड़ा। नव नालन्दा महाविहार में पालि के पाठ्यक्रम विकसित किए।  
- **अन्तर्राष्ट्रीय प्रभाव**: जापान और मलयेशिया (पेनांग) में बौद्ध ग्रंथों के अनुवाद कार्य को आगे बढ़ाया। चीनी भाषा सीखकर पूर्व एशियाई बौद्ध परम्पराओं का अध्ययन किया।  
- **साहसिक निर्णय**: गृहत्याग, विवाह न करने का संकल्प, और जंगल में एकांत साधना जैसे कठोर विकल्पों के माध्यम से धम्म के प्रति समर्पण प्रदर्शित किया।  

#### **8. विरासत: धम्म सेनानी के रूप में**  
भिक्षु काश्यप ने बुद्ध के विचारों को **तर्कसंगत धर्म** के रूप में स्थापित किया, जो अंधविश्वासों से मुक्त है। उनकी स्थापित संस्था **नव नालन्दा महाविहार** आज भी बौद्ध अध्ययन का प्रमुख केंद्र है। 22 जून 1976 को उनका निधन हुआ, परन्तु उनका साहित्य और शैक्षिक योगदान बौद्ध जगत को निरंतर प्रेरित करता है।  

> ✍️ **सारांश**: भदन्त काश्यप ने पालि साहित्य के संरक्षण, त्रिपिटक के हिन्दी अनुवाद, और धम्म के तर्कपूर्ण प्रसार के माध्यम से बौद्ध धर्म को एक **वैज्ञानिक जीवन-दर्शन** के रूप में स्थापित किया। उनका जीवन "ध्यान, ज्ञान और कर्म" के त्रिविध समन्वय का अनूठा उदाहरण है।

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