14वें दलाई लामा: जीवन, कार्य एवं विश्व प्रभाव** -प्रा डॉ संघप्रकाश दुड्डे
# **14वें दलाई लामा: जीवन, कार्य एवं विश्व प्रभाव**
## **जीवन परिचय**
14वें दलाई लामा, **तेनज़िन ग्यात्सो**, का जन्म **6 जुलाई 1935** को तिब्बत के आमदो प्रांत के छोटे गाँव **तकछेर** में एक किसान परिवार में हुआ था। दो वर्ष की आयु में उन्हें **13वें दलाई लामा, थुबतेन ग्यात्सो**, का पुनर्जन्म माना गया और औपचारिक रूप से **1940** में ल्हासा लाया गया। उन्हें **अवलोकितेश्वर (करुणा के बोधिसत्व)** का अवतार माना जाता है, जो तिब्बती बौद्ध धर्म के **गेलुग** परंपरा के प्रमुख हैं ।
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## **दीक्षा एवं शिक्षा**
- **मठीय शिक्षा**: छह वर्ष की आयु में उनकी औपचारिक शिक्षा शुरू हुई, जिसमें **पाँच महाविद्या** (प्रमाण, शिल्प, शब्द, चिकित्सा, आध्यात्मिक विद्या) और **पाँच लघु विद्या** (काव्य, नाटक, ज्योतिष, छंद, अभिधान) शामिल थीं ।
- **गेशे ल्हारम्पा की उपाधि**: 1959 में उन्होंने **ल्हासा के जोखंग मंदिर** में अपनी अंतिम परीक्षा उत्तीर्ण की और **बौद्ध दर्शन में डॉक्टरेट** के समकक्ष यह उपाधि प्राप्त की ।
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## **तिब्बत से भारत आगमन का सफर**
- **पृष्ठभूमि**: 1950 में चीन ने तिब्बत पर आक्रमण किया और 1959 में ल्हासा में विद्रोह के बाद दलाई लामा के जीवन को खतरा हो गया। उन्हें **10 मार्च 1959** को चीनी सेना द्वारा आमंत्रित किया गया, जिसे उन्होंने एक **जाल** समझकर ठुकरा दिया ।
- **भागने की योजना**: **17 मार्च 1959** की रात, भेष बदलकर (एक सैनिक के वेश में) वे अपने परिवार और अंगरक्षकों के साथ ल्हासा से निकले। 13 दिनों की कठिन यात्रा के बाद, **31 मार्च 1959** को वे **भारत की सीमा में प्रवेश** कर गए ।
- **भारत में शरण**: तत्कालीन प्रधानमंत्री **जवाहरलाल नेहरू** ने उन्हें **धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश)** में शरण दी, जो आज **तिब्बती निर्वासित सरकार** का मुख्यालय है ।
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## **शिष्य गण एवं तिब्बती परंपरा**
- **गेलुग परंपरा**: दलाई लामा इस परंपरा के प्रमुख हैं, जिसकी स्थापना **जे त्सोंखापा** ने 14वीं शताब्दी में की थी। यह **पीले टोपी** वाले भिक्षुओं की परंपरा है ।
- **प्रमुख शिष्य**:
- **देशांग नोरबु (निर्वासित तिब्बती सरकार के प्रधानमंत्री)**
- **कर्मापा (काग्यु परंपरा के प्रमुख)**
- **सक्या त्रिजिन (सक्या परंपरा के प्रमुख)**
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## **तिब्बती संस्कृति, भाषा एवं जीवनशैली**
- **भाषा**: तिब्बती भाषा (ल्हासा बोली) को संरक्षित करने के लिए उन्होंने **तिब्बती स्कूलों** की स्थापना की।
- **वेशभूषा**:
- **भिक्षु**: लाल-भगवा चोगा (वस्त्र) और पीली टोपी।
- **सामान्य जन**: चूबा (ऊनी कोट) और बख्खू (बेल्ट)।
- **भोजन**:
- **त्सम्पा** (जौ का आटा), **मोमो** (पकौड़े), **बटर टी** (घी वाली चाय)।
- **रहन-सहन**: तिब्बती समुदाय **मठों** और **गाँवों** में रहता है, जहाँ **प्रार्थना, ध्यान और कृषि** प्रमुख हैं ।
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## **बौद्ध गुरु परंपरा में योगदान**
- **नालंदा विश्वविद्यालय की शिक्षा का प्रचार**: दलाई लामा ने **प्राचीन नालंदा की बौद्ध शिक्षा पद्धति** को पुनर्जीवित किया। उन्होंने **मध्यमिक (मध्यम मार्ग) दर्शन** और **प्रज्ञापारमिता (ज्ञान की पूर्णता)** का प्रसार किया ।
- **वैश्विक बौद्ध संवाद**: उन्होंने **विपश्यना, ज़ेन और थेरवाद** परंपराओं के साथ संवाद बढ़ाया।
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## **विश्व को संदेश**
- **अहिंसा एवं करुणा**: "**शांति बाहर से नहीं, भीतर से आती है**" – यह उनका प्रमुख संदेश है।
- **धर्मनिरपेक्ष नैतिकता**: उन्होंने **वैज्ञानिकों, मनोवैज्ञानिकों और दार्शनिकों** के साथ मिलकर **मानवीय मूल्यों** पर जोर दिया।
- **पर्यावरण संरक्षण**: तिब्बती पठार को **"दुनिया की छत"** बताते हुए जलवायु परिवर्तन के प्रति जागरूकता फैलाई ।
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## **पुरस्कार एवं सम्मान**
- **नोबेल शांति पुरस्कार (1989)** – तिब्बत के लिए अहिंसक संघर्ष हेतु।
- **कांग्रेसनल गोल्ड मेडल (2007)** – अमेरिकी कांग्रेस द्वारा।
- **टेम्पलटन पुरस्कार (2012)** – आध्यात्मिक अनुसंधान के लिए ।
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## **भारत में तिब्बती मठ एवं शिक्षा केंद्र**
- **धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश)**:
- **त्सुगलाखंग मंदिर** (मुख्य मंदिर)
- **तिब्बती चिल्ड्रन्स विलेज** (शिक्षा केंद्र)
- **कर्नाटक**:
- **बाइलाकुप्पे** (बड़ी तिब्बती बस्ती)
- **सेरा, द्रेपुंग एवं गंडेन मठ** (नालंदा परंपरा के अनुयायी) ।
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### **निष्कर्ष**
14वें दलाई लामा ने **तिब्बती संस्कृति, बौद्ध धर्म और वैश्विक शांति** के लिए अद्वितीय योगदान दिया है। भारत में उनका निर्वासन तिब्बती पहचान को बचाए रखने का प्रतीक बन गया है। उनका जीवन **सरलता, सहिष्णुता और सार्वभौमिक मानवता** का उदाहरण है।
> *"मेरा धर्म सरल है – दया और प्रेम।"* — दलाई लामा
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