*अनुवाद शब्द की व्युुत्पत्ति**

### **अनुवाद शब्द की व्युुत्पत्ति**  
"अनुवाद" शब्द की व्युत्पत्ति **संस्कृत भाषा** के मूल शब्द **"अनु + वद्"** से हुई है, जिसका अर्थ है **"पुनः कहना"** या **"अनुसरण करते हुए व्यक्त करना"**। इस शब्द के दो घटक हैं:  

1. **अनु (उपसर्ग)**:  
   - संस्कृत में "अनु" का अर्थ है **"पश्चात्"**, **"अनुसरण"**, या **"पुनः"**। यह किसी क्रिया के **दोहराव** या **नकल** को दर्शाता है।  
   - उदाहरण: अनुकरण (नकल करना), अनुशासन (नियमों का पालन)।  

2. **वद् (धातु)**:  
   - संस्कृत धातु "वद्" का अर्थ है **"बोलना"**, **"कहना"**, या **"व्यक्त करना"**।  
   - उदाहरण: वाद-विवाद (बहस), वक्ता (बोलने वाला)।  

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#### **शाब्दिक और प्रयोगात्मक अर्थ**:  
- **शाब्दिक अर्थ**: "अनुवाद" = **"किसी के बाद बोलना"** या **"मूल को दोहराना"**।  
- **प्रयोगात्मक अर्थ**: मूल भाषा के संदेश, भाव, या विचार को दूसरी भाषा में **सांस्कृतिक और भाषाई संदर्भ के साथ पुनः प्रस्तुत करना**।  

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#### **ऐतिहासिक संदर्भ**:  
- **वैदिक साहित्य में**: "अनुवाद" शब्द का प्रयोग मंत्रों या श्लोकों के **भाष्य (टीका)** या **व्याख्या** के लिए होता था।  
- **पाणिनी की व्याकरण परंपरा**: संस्कृत व्याकरण में "अनुवाद" को **अनुवृत्ति** (पुनरावृत्ति) से जोड़ा गया, जहाँ नियमों को दोहराया जाता था।  
- **आधुनिक हिंदी में**: यह शब्द **भाषांतर** या **Translation** का पर्याय बन गया, जो अंग्रेजी शब्द "Trans-lation" (एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना) के समानांतर है।  

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#### **महत्वपूर्ण तथ्य**:  
- "अनुवाद" शब्द में **"अनु"** उपसर्ग यह संकेत देता है कि यह प्रक्रिया **मूल के प्रति वफादारी** और **सृजनात्मक पुनर्निर्माण** दोनों की मांग करती है।  
- संस्कृत के "वद्" से ही हिंदी के शब्द जैसे **वाद**, **विवाद**, और **संवाद** बने हैं, जो संचार और अभिव्यक्ति से जुड़े हैं।  

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### **सारांश**:  
"अनुवाद" शब्द की व्युत्पत्ति **भाषाई नकल** और **सृजनात्मक पुनर्प्रस्तुति** के द्वंद्व को दर्शाती है। यह न केवल शब्दों का स्थानांतरण है, बल्कि संस्कृति, इतिहास, और मानवीय संवाद को जीवित रखने का माध्यम भी है। जैसा कि **आचार्य रामचंद्र शुक्ल** ने कहा: **"अनुवाद मूल की छाया है, पर छाया में भी मूल की आत्मा होती है।"**

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